25 साल पहले सूअर का दिल इंसान में लगाने वाले डॉ बरुआ खुश, पर छलका दर्द

(ब्यूरो कार्यालय)
नई दिल्ली (साई)। अमेरिकी डॉक्‍टरों ने 7 जनवरी को एक बड़ा कारनामा किया था। उन्‍होंने सूअर के दिल को एक मरीज में सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट किया था। दावा का किया गया था कि यह मेडिकल साइंस में अपनी तरह का पहला ट्रांसप्‍लांट है। हालांकि, इस दावे को चुनौती दी जा सकती है।

25 साल पहले ही एक भारतीय डॉक्टर ने यह चमत्‍कार किया था। उनका नाम डॉक्‍टर धनी राम बरुआ है। हालांकि, यह कारनामा करने के लिए उन्‍हें शाबाशी नहीं सजा मिली थी। उन्‍हें जेल जाना पड़ा था। जब अमेरिकी डॉक्‍टरों ने ऐसा किया तो वह बेहद खुश हो गए। लेकिन, उनका दर्द भी छलका।

डॉ बरुआ अब बोल नहीं सकते। वह 72 साल के हो चुके हैं। रिसर्च साइंटिस्‍ट डॉ सैगीता आचरेकर ने 1990 से डॉ बरुआ के साथ मिलकर काम किया है। वह भी अमेरिकी डॉक्टरों की उपलब्धि की प्रशंसा करती हैं।

वेबसाइट टाइम्‍स ऑफ इंडिया डॉट कॉम ने डॉ बरुआ से संपर्क किया। डॉ बरुआ की तरफ से उनकी मौजूदगी में सैगीता ने बताया कि डॉ बरुआ ने जो प्रक्रिया अपनाई थी, वह अलग थी। अमेरिका से आई खबर से बरुआ बेहद खुश और उत्‍साहित हैं। अपनी शुरुआती उपलब्धि पर वह गर्व महसूस कर रहे हैं। हालांकि, उन्‍हें वो दर्द भी है, जो उन्‍हें झेलना पड़ा था।

1997 में किया चमत्‍कार, पर…
बात 1997 की है। तब ब्रिटेन में प्रशिक्षित सर्जन डॉ बरुआ ने सूअर के दिल को इंसान में ट्रांसप्लांट किया था। यह मरीज 7 दिन ही जिंदा रह पाया था। मरीज की मौत के बाद उस समय की असम सरकार ने बरुआ को ऑर्गन ट्रांसप्लांट एक्ट का उल्लंघन करने के आरोप में जेल भेज दिया था।

जब वे 40 दिनों के बाद अपने शोध संस्थान और एनिमल फार्म में लौटे, तो उन्होंने पाया कि उन्‍हें तहस-नहस कर दिया गया था। उस अपमान की यादें और जेल में उन्हें जिस ‘यातना’ का सामना करना पड़ा, वह आज भी उन्हें परेशान करता है।

रिसर्च में ढूंढ ली थीं बड़ी बातें
डॉक्टर बरुआ ने कहा, ’25 साल पहले ही मैंने इंसान के शरीर में सूअर का दिल लगाया था। अमेरिकी डॉक्टर अब यह काम कर रहे हैं। काफी रिसर्च के बाद मैंने पता लगाया था कि इंसान के शरीर में सूअर का दिल समेत कई अंग लग सकते हैं। इसकी वजह यह है कि सूअर और इंसान के अंगों में कई तरह की समानताएं हैं।’

असम के रहने वाले डॉक्‍टर धनी राम बरुआ ने हांगकांग के सर्जन डॉ जोनाथन हो केई-शिंग (Jonathan Ho Kei-shing) के साथ मिलकर गुवाहाटी 1997 में एक इंसान के शरीर में सूअर का दिल और फेफड़ा ट्रांसप्‍लांट किया था। ऑपरेशन गुवाहाटी के पास सोनपुर में स्थित धनी राम बरुआ हार्ट इंस्टीट्यूट में किया गया था। इस प्रत्‍यारोपण के बाद वह मरीज 7 दिनों तक जीवित रहा था।

ट्रांसप्‍लांट की खबर जैसे ही मीडिया में आई, बवाल हो गया था। दोनों डॉक्‍टरों पर गैर इरादतन हत्या और मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 के आरोपों के तहत गिरफ्तार कर लिया गया और 40 दिनों के लिए जेल में डाल दिया गया। असम सरकार की जांच में पाया गया कि यह प्रत्यारोपण प्रक्रिया अनैतिक थी। ये भी पता चला कि डॉ धनी राम हार्ट इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर ने प्रत्यारोपण कानूनों के तहत न तो आवेदन किया था और न ही पंजीकरण कराया था।

प्रत्‍यारोपण से पहले एक इंटरव्‍यू में डॉ धनी राम बरुआ ने कहा था, ‘मैंने जर्मनी 9 सितंबर 1995 में कहा था कि सूअर एकमात्र ऐसा जानवर है जो ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के लिए सूटेबल है। एक्सपेरिमेंटल स्टडी के लिए भी। साइंटिस्ट दो तरह के होते हैं- मेड साइंटिस्ट, रियल साइंटिस्ट। रियल साइंटिस्ट हमेशा विवादास्पद होते हैं। साइंस एक परिकल्पना से शुरू होती है और जब परिकल्पना सच्चाई बन जाती है तो साइंटिस्ट और उसका काम कंट्रोवर्शियल बन जाता है।

कहां चूक गए हम?
चाहे महामारी की वजह से हो या भारत से लगातार हो रहे ब्रेन ड्रेन के कारण केंद्र और राज्य सरकारें अब बुनियादी ढांचे का विकास कर रही हैं। बड़े पैमाने पर चिकित्सा अनुसंधान में निवेश किया जा रहा है। लेकिन, देशभर के हजारों प्रतिभाशाली चिकित्सकों को डॉ बरुआ याद दिलाते रहेंगे कि अगर उन्हें समय पर सहयोग नहीं मिला तो उनकी आशाएं और सपने तिनके की तरह बिखर सकते हैं। उस समय सरकारों ने डॉक्‍टर बरुआ की उपलब्धि की सराहना तो दूर जेल तक भिजवा दिया। ऐसे में उनका दर्द छलकना लाजिमी है।

कौन हैं डॉक्‍टर धनी राम बरुआ?
धनी राम बरुआ एक हर्ट सर्जन हैं जो गुवाहाटी के बाहर सोनपुर में धनी राम बरुआ हार्ट इंस्टीट्यूट और इंस्टीट्यूट ऑफ एप्लाइड ह्यूमन जेनेटिक इंजीनियरिंग चलाते हैं। वो चिकित्‍सा क्षेत्र में खोजों के लिए प्रसिद्ध हैं। 1997 में उन्‍होंने पहली बार जेनोट्रांसप्लांटेशन किया। धनी राम बरुआ हार्ट इंस्टीट्यूट, सोनापुर, गुवाहाटी में ही उन्‍होंने 32 वर्षीय पूर्णो सैकिया में सूअर का दिल लगाया। उसके दिल में छेद था। डॉ बरुआ के साथ हांगकांग के डॉ जोनाथन हो के-शिन भी थे। इस वजह से दोनों को जेल जाना पड़ा।

(नवभारत टाईम्स से साभार)