जुड़वों के अनोखे गांव की कहानी जानिए . . .

(एल.एन. सिंह)
प्रयागराज (साई)। जुड़वाँ  का  नाम  सुनकर  हर  किसी  के  मन में फिल्मो की याद आने लगती है सीता गीता,जुड़वाँ जैसी ना जाने कितनी फिल्मे बनी है..

लेकिन इलाहाबाद में एक छोटा सा गाव ऐसा भी है जहा सदियों से जुड़वाँ बच्चो का जन्म होता है..इस गाव में अस्सी साल से लेकर छे माह तक के बच्चे मौजूद है जो जुड़वाँ है…गाव के बुजुर्ग बताते है…इंसान ही नहीं जानवर भी जुड़वाँ बच्चो को जनम देते है…

गाए,भैंस ,बकरी ही नहीं मुर्गी भी डबल जर्दी के अंडे देती है…कई बार तो बच्चे आपने जुड़वाँ हमशकल होने पर सैतानिया भी करते है…वैज्ञानिको का इस मसले पर कहना है की जुड़वाँ होने के कारण वहा पर पी जाने वाली जड़ी बूटी है जिसे गाव के लोग नहीं जान पा रहे है…रिसर्च की जाये तो बात सामने आएगी…

जुडवा बच्चो की कहानी पर बाली वूड में फिल्मे बनाकर वैसे तो कई फिल्म निर्माता मालामाल हो गए लेकिन उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में एक ऐसा गाँव है जहा हर परिवार में हमशकल जुडवा पाए जा रहे है और जिनकी तकदीर को इन्तजार है पटकथा लिखने  वालो का ……

इलाहाबाद के  उमरी गाँव जहा घर घर में जुडवा बच्चे पैदा होते है .इतना ही नहीं इस गाँव के  जानवर भी जुडवा बच्चे पैदा करते . दो हजार की आबादी वाले इस गाँव में 156  परिवार है जिसमे आधे से ज्यादा घरो में जुडवा बच्चे है  घर में किलकारी गुजने का इन्तेजार किसको नहीं होता और अगर यह किलकारी दुगनी हो जाए तो क्या कहना.

उमरी गाँव के जुडवा मोहमद इरफ़ान के साथ भी ऐसा हुआ .खुद भी जुडवा है और घर में जुडवा बेटियाँ इवा और तहा भी है . मोहमद इरफ़ान और उनके भाई मोहमद रेहान की तरह पूरा उमरी गाँव जुडवा हमसकल से भरा हुआ है .और इन जुडवा हम शक्लो ने अपने हम शक्ल  होने का खूब फायदा भी उठाया .
जुडवा हम शक्ल होने का सबसे दिलचस्प वाकया तो तब हुआ जब इन हमशक्लो का दिल किसी हमसफ़र के लिए धडकने लगता है .मोहमद रेहान का दिल धडका जरूर अपनी मासुका के लिए लेकिन उसकी मासुका ने प्यार का इजहार गलती से कर दिया उसके जुडवा भाई मोहमद इरफ़ान से .

इतना ही नहीं इनकी पत्नी भी कभी कभी इनके जुडवा होने की वजह से इनको पहचान नहीं पाती.उमरी गाँव का इतिहास काफी पुराना है गाँव के बुजुर्ग इस गाँव का अस्तित्व लगभग 250 साल पहले का बताते है और 80 साल पहले से जुडवा हमसकल पैदा होने की बात भी बताते है लेकिन प्रशासनिक बेरुखी की वजह से इस गाँव में सरकारी अस्पताल तक नहीं है ….कई बार सरकारी डाक्टरों की टीमे आई लेकिन खाना पूर्ति करके चली गई।घर में जुडवा बच्चे होने की खुशी किसी नहीं होती और जब उमरी गाँव के हर घर की यह कहानी हो तो बात ही क्या .

लेकिन उमरी की अर्शी बानो की मुश्किल तब बढ़ जाती है जब उनकी जुडवा बेटियों में एक को दुलार करो तो दुसरी का मूड खराब हो जाता है…बच्चे बड़े होंगे तो तालीम के लिए स्कूल जायेंगे लेकिन इन हमशक्लो से स्कूल की टीचरों की दिक्कत भी खासी बढ़ जाती है….

इलाहाबाद के एयर फोर्स स्टेशन बमरौली के पास स्थित इस गाँव उमरी में घर घर में जुडवा बच्चे होने को कुदरत का करिश्मा कहा जाए या और कुछ लेकिन इसका जवाब डाक्टरों के पास भी नहीं. डाक्टर इसके लिए उमरी गाँव के लोगो के खान पान और वहा साग सब्जियों के साथ पायी जाने वाली जड़ी बूटियों को इसका कारण मानते हैजुड़वाँ बच्चे पैदा होने का राज़ आज भी राज़ बना है …अगर इस राज़ से पर्दा उठ जायेगा तो देश में जुड़वाँ बच्चे पैदा करने या निसंतान लोगो के जीवन में नया प्रकाश आ जायेगा….