बसाहट में वन्य जीवों की आहट . . .

(शरद खरे)
आबादी का दबाव किस कदर तेजी से बढ़ रहा है.. इस बात का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। कभी आप इंटरनेट की सहायता से गूगल मैप से किसी भी शहर या सिवनी को देखें तो आपको शहर के आसपास नयी बसाहट आसानी से दिखायी दे जायेंगी। यही आलम ग्रामीण अंचलों का है।
जंगलों के आसपास ग्रामीणों के द्वारा बसाहट के जरिये वन्य जीवों के प्राकृतिक रिहाईश वाले क्षेत्रों को कम किया जा रहा है। सिवनी शहर से महज तीन-चार किलोमीटर दूर ही काले हिरणों के झुण्ड आसानी से देखे जा सकते हैं। शहर में ज्यारत नाके से भैरोगंज होकर नागपुर मार्ग के लगभग पाँच किलोमीटर की परिधि में दक्षिण की ओर इन हिरणों की भरमार हुआ करती थी जो अब एकाएक कम हो गए हैं, यह भी शोध का ही विषय माना जा सकता है।
गर्मी के आते ही आबादी वाले क्षेत्रों में वन्य जीवों की धमक सुनायी देने लगी है। हाल ही में अनेक मामले इस तरह के प्रकाश में आ चुके हैं जिसमें वन्य जीवों का आबादी वाले क्षेत्र में आने की धमक सुनाई दी है। विशेषकर हिंसक वन्य जीवों का आबादी की ओर रूख करना अच्छे संकेत कतई नहीं माना जा सकता है।
सवाल यह उठता है कि आखिर वन्य जीव अपने प्राकृतिक आवास को छोड़कर आबादी की ओर रूख क्यों कर रहे हैं? इस बारे में वन विभाग के आला अधिकारियों को शोध करने की आवश्यकता है। सिवनी जिले में अचानक ही ऐसा क्या हो गया है कि वन्य जीव विशेषकर बाघ जैसा खूंखार जानवर गाँवों की ओर रूख करने पर मजबूर हो रहा है।
बाघ के बारे में यही कहा जाता है कि नर बाघ व्यस्क होते ही अपना क्षेत्र निर्धारित कर लेता है। इसके क्षेत्र में मादा बाघ तो घूम सकतीं हैं पर दूसरा वयस्क नर बाघ अगर इसके क्षेत्र में प्रवेश करता है तो इनके बीच वर्चस्व की जंग आरंभ हो जाती है। जो जीता वही सिकंदर की तर्ज पर जीतने वाला ही उस क्षेत्र का राजा होता है। वर्चस्व की इस जंग में बाघों की जान जाने के अनेक उदाहरण भी उपलब्ध हैं।
अगर बाघ जंगल से निकलकर बाहर आ रहा है तो या तो वह भोजन की तलाश में है या फिर अपने क्षेत्र निर्धारण के लिये ऐसा कर रहा है। कहते हैं पेंच नेशनल पार्क में नर शावकों की तादाद भी ज्यादा हो चुकी है। वन विभाग के अधिकारियों को चाहिये कि अभी से इसके लिये कार्ययोजना तैयार कर ली जाये, वरना आने वाले समय में वर्चस्व की जंग में, और बाघ काल-कलवित हो जायें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिये।
वनाधिकारियों से अपेक्षा है कि वे अपने-अपने स्तर पर सिर जोड़कर इस समस्या के निदान के लिये जुटे ही होंगे। संवेदनशील कलेक्टर डॉ. राहुल हरिदास फटिंग सहित दोनों सांसदों एवं चारों विधायकों से भी जनापेक्षा है कि जंगली जीवों के स्वच्छंद जीवन जीने के मार्ग प्रशस्त करने में वे भी महती भूमिका अदा करें।