डॉ.ढाल सिंह की जीत के मायने!

24 मई 2019 को ढाल सिंह की विजय पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में प्रसारित संपादकीय . . .
(लिमटी खरे)
लगभग ग्यारह साल बाद सिवनी जिले का निवासी सांसद बन पाया है। 1977 में अस्तित्व में आयी सिवनी लोकसभा सीट को बिना किसी प्रस्ताव के तहत 2008 में विलोपित कर दिया गया था। सिवनी जिले की पाँच में से घंसौर विधान सभा को भी इसमें समाप्त कर दिया गया था। शेष बची चार विधान सभाओं में से बरघाट और सिवनी को बालाघाट लोकसभा तो लखनादौन और केवलारी को मण्डला लोकसभा का अंग बना दिया गया था।
परिसीमन के दौरान सिवनी के नेताओं की चुप्पी पर भी अनेक सवालिया निशान खड़े होते आये हैं। जिले की राजनीतिक घोड़ागाड़ी को हांकने वाले कथित सारथियों के इशारे पर जिले का भविष्य निर्धारित करने वाले और जिले की सियासत को दिशा और दिशा देने वाले अनेक नेताओं का मौन भी लंबे समय तक चर्चित रहा। लोकसभा सीट का जैसे ही विलोपन हुआ वैसे ही इन नेताओं के द्वारा घड़ियाली आँसू भी जमकर बहाये गये। लोगों का कहना था कि लोकसभा का विलोपन तो हो चुका है पर अपनी सियासत के घड़े को चमकाने के लिये इस तरह का विधवा प्रलाप क्यों!
परिसीमन का जिक्र इसलिये करना आवश्यक था क्योंकि परिसीमन के पूर्व सिवनी जिले की बरघाट विधान सभा अनारक्षित थी और इस विधान सभा पर सालों से काँग्रेस का कब्जा रहता आया था। इस विधान सभा क्षेत्र में 1990 में भारतीय जनता पार्टी के द्वारा डॉ.ढाल सिंह बिसेन पर दांव लगाया गया।
उस समय उनका मुकाबला काँग्रेस की कद्दावर नेत्री प्रभा भार्गव से हुआ। प्रभा भार्गव उस समय बहुत ही दमदाद प्रत्याशी मानी जाती थीं। वे प्रदेश में स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री भी थीं। डॉ.ढाल सिंह बिसेन के द्वारा जिस तरह की रणनीति से चुनाव लड़ा गया उसे प्रभा भार्गव के हाथ पराजय ही लगी। इसके बाद डॉ.ढाल सिंह बिसेन के द्वारा बरघाट विधान सभा क्षेत्र को विकास से सींचना आरंभ किया गया।
1993 में हुए चुनावों में उन्होंने काँग्रेस के महेश प्रसाद मिश्रा को पराजित किया। 1998 में हुए विधान सभा चुनावों में काँग्रेस के द्वारा महानंद राहंगडाले को मैदान में उतारा गया किन्तु महानंद राहंगडाले भी डॉ.ढाल सिंह बिसेन के तिलिस्म को तोड़ नहीं पाये। इस विधान सभा क्षेत्र से डॉ.ढाल सिंह बिसेन ने अंतिम चुनाव 2003 में लड़ा। इस बार उनका मुकाबला भोयाराम चौधरी से हुआ। डॉ.ढाल सिंह बिसेन ने भोया राम चौधरी को भी धूल चटाकर लगातार चौथी बार परचम लहराया।
इसके बाद प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी और डॉ.ढाल सिंह बिसेन के कद के कारण उन्हें प्रदेश में उमा भारती के नेत्तृत्व वाली सरकार में त्रिविभागीय मंत्री बनाया गया। इक्कीसवीं सदी में सिवनी जिले में डॉ.ढाल सिंह बिसेन ही आखिरी मंत्री माने जा सकते हैं। उनके बाद किसी को भी मंत्री बनने का सौभाग्य नहीं मिल पाया।
19 फरवरी 2008 को परिसीमन लागू होने के बाद बरघाट विधान सभा आरक्षित हो गयी और डॉ.ढाल सिंह बिसेन को केवलारी में जमे जमाये स्व.हरवंश सिंह के सामने खड़ा किया गया। 2008 का विधान सभा चुनाव वे हार गये। इसके बाद हरवंश सिंह के अवसान के उपरांत 2013 में संपन्न हुए विधान सभा चुनावों में रजनीश हरवंश सिंह के हाथों वे एक बार फिर पराजित हुए।
डॉ.ढाल सिंह बिसेन के साथ एक और अद्भुत बात जुड़ गयी है। वे पहले विधायक बने फिर सांसद चुने गये। इसके पहले स्व.सुश्री विमला वर्मा के खाते में यह उपलब्धि जाती है। सुश्री विमला वर्मा पहले केवलारी की विधायक रहीं, फिर सांसद बनीं, इसी तरह डॉ.ढाल सिंह बिसेन बरघाट से चार बार विधायक रहे फिर सांसद बने।
डॉ.ढाल सिंह बिसेन को लोक सभा का टिकिट दिया गया। सिवनी के लोगों के मन में उत्साह की लहर दौड़ी क्योंकि इसके पहले मण्डला और बालाघाट संसदीय क्षेत्र से चुने गये सांसद सिवनी के निवासी नहीं थे। लोगों का आरोप था कि दोनों ही संसदीय क्षेत्र के प्रतिनिधियों की प्राथमिकता में सिवनी जिला पहली पायदान पर कभी भी नहीं आ पाया। सिवनी जिले के विकास के लिये दोनों ही संसदीय क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखायी।
चुनाव के पूर्व सोशल मीडिया पर डॉ.ढाल सिंह बिसेन के खिलाफ अनेक तरह की टीका टिप्पणियों के चलते लोगों को लगा कि वे डॉ.ढाल सिंह बिसेन को मानसिक रूप से परेशान कर देंगे पर डॉ.ढाल सिंह बिसेन के द्वारा जिस शिद्दत के साथ यह चुनाव लड़ा गया उसे देखकर ही लग रहा था कि इस बार वे रिकॉर्ड मतों से विजयश्री का वरण करेंगे।
निर्वतमान संसद सदस्य बोध सिंह भगत के द्वारा निर्दलीय रूप से मैदान में उतरने के कारण लोगों को लग रहा था कि वे डॉ.ढाल सिंह बिसेन के मार्ग में शूल बोने का काम करेंगे पर संभवतरू भाजपा से नाराज लोगों ने काँग्रेस की बजाय बोध सिंह भगत का दामन थामा गया जिसके चलते डॉ.ढाल सिंह बिसेन को नुकसान तो हुआ माना जा सकता है पर इससे काँग्रेस अपनी लाईन लंबी शायद नहीं कर पायी। सिवनी के साथ ही साथ बालाघाट जिले के लोगों ने नरेंद्र मोदी और डॉ.ढाल सिंह बिसेन पर ऐतबार जताया है।
डॉ.ढाल सिंह बिसेन के चुनाव जीतने के बाद अब सिवनी के प्रति उनकी जवाबदेहियां बढ़ गयी हैं। सिवनी के विकास को लगभग ढाई दशकों से ग्रहण लगा हुआ है। केंद्र प्रोषित योजनाओं की जिले में बुरी स्थिति है। लोकसभा में भी सिवनी की आवाज बुलंद करने की फुर्सत किसी को नहीं थी। सिवनी में ब्रॉडगेज, फोर लेन पर ट्रामा केयर, पासपोर्ट ऑफिस, आकाशवाणी का रिले सेंटर आदि आज भी अधूरे ही माने जा सकते हैं। उम्मीद की जानी चाहिये कि संसद सदस्य बनने के बाद डॉ.ढाल सिंह बिसेन के द्वारा तत्काल ही इन समस्याओं की ओर संबंधितों का ध्यान आकर्षित कराया जाकर सिवनी के रीते कलश को भरने का प्रयास किया जायेगा।