पति‍ जबरन संबंध बनाए तो पत्‍नी को गर्भपात कराने का हक

सुप्रीम कोर्ट ने कहा पत्‍नी से जबरदस्‍ती भी रेप ही है

(ब्यूरो कार्यालय)
नई दिल्ली (साई)। सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात को लेकर कहा है कि अविवाहित और विवाहित महिलाओं के बीच भेदभाद नहीं हो सकता है। सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार(29 सितंबर) को कहा कि सभी महिलाएँ सुरक्षित गर्भपात कराने का अधिकार रखती हैं। वो चाहे अविवाहित हों या विवाहित।
दरअसल अभी तक सिर्फ विवाहित महिलाओं को ही 20 सप्ताह से अधिक और 24 हफ्ते से कम समय तक ही गर्भपात का अधिकार था। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अविवाहित महिलाओं को भी इस समय सीमा तक गर्भपात कराने का अधिकार होगा। अदालत ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में 2021 का संशोधन विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव नहीं करता है। यह फैसला जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने सुनाया है।
अदालत ने कहा कि सिर्फ शादीशुदा महिलाओं को ही अनुमति मिलना अविवाहित महिला के लिए संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।
जबरदस्ती यौन संबंध रेप के दायरे में:
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि पति द्वारा जबरदस्ती यौन संबंध बनाना भी रेप की श्रेणी में आएगा। कोर्ट ने कहा कि जिन पत्नियों ने अपने पतियों द्वारा जबरदस्ती बनाए गए यौन संबंध के बाद गर्भधारण किया है, उनका मामला भी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स के नियम 3 बी (ए) के तहत यौन उत्पीड़न या बलात्कार के दायरे में आता है।
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि गर्भपात के लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत पति द्वारा को मेरि बिना मर्जी के यौन संबंध बनाए जाने को मैरिटल रेप के अर्थ में शामिल किया जाना चाहिए।
24 सप्ताह तक गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए पात्र:
बलात्कार या यौन अनाचार का शिकार हुई पीड़िता
नाबालिग
चल रही गर्भावस्था के बीच विधवा और तलाकशुदा महिला
शारीरिक रूप से दिव्यांग महिलाओं को
मानसिक रूप से बीमार महिलाएं
बच्चे के पैदा होने के बाद किसी गंभीर शारीरिक या मानसिक रूप से दिव्यांग होने का खतरा वाली स्थिति में
भूल या आपातकालीन स्थितियों में गर्भाधारण करने वाली महिलाएं
क्या है मामला:
गौरतलब है कि 25 वर्षीय एक अविवाहित महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट में 23 सप्ताह और 5 दिनों की गर्भपात कराने की मांग को लेकर याचिका दायर की थी। याचिका में महिला ने कहा कि एक सहमति से उसकी गर्भावस्था हुई थी। लेकिन शादी न होने की स्थिति में वह बच्चे को जन्म नहीं दे सकती। महिला ने कहा कि उसके पुरुष साथी ने उससे शादी करने से मना कर दिया था।
इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने महिला को अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था। जिसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट इस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी।