यात्रा के संस्मरणों को लिपिबद्ध कर उन पर अमल करें तो राहुल के लिए होगा बेहतर

लिमटी की लालटेन 460

भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस के पक्ष में सकारात्मक संदेश का होगा प्रवाह

(लिमटी खरे)

लगभग साढ़े तीन हजार किलोमीटर का सफर पैदल तय करते हुए 150 दिनों में 12 राज्यों, दो केंद्र शासित प्रदेशों से गुजरती हुई राहुल गांधी के नेतृत्व वाली भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस के नेताओं का उत्साह से लवरेज होना स्वाभाविक ही है। इसके पहले उत्तर भारत से दक्षिण भारत तक की पैदल यात्रा जगतगुरू शंकराचार्य के अलावा शायद ही किसी ने की हो।

दक्षिण से आरंभ हुई राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जब जम्मू काश्मीर पहुंची तब दृश्य देखने लायक था। काश्मीर में इस यात्रा के समापन के साथ ही देश भर में एक सकारात्मक संदेश की बयार बहना आरंभ हुई है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। अब आवश्यकता इस बात की है कि इस हवा को, फिजा को, बयार को कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ता बरकरार रख पाएं।

देखा जाए तो देश के राजनैतिक दलों के द्वारा इस तरह की यात्राएं लगातार ही की जाती रहीं हैं, पर उन यात्राओं और राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में जमीन आसमान का अंतर है। राहुल गांधी छः माह तक निरंतर ही चलते रहे, रास्ते में उनके द्वारा जिस तरह के अनुभव बटोरे होंगे उन अनुभवों को वे ही समझ सकते हैं। इन अनुभवों को उन्हें धीरे धीरे साझा करना चाहिए ताकि वे कांग्रेस के लिए माहौल तैयार कर सकें।

काश्मीर के लाल चौक पर ध्वज लहराना एक समय में बहुत ही कठिन माना जाता था। इतिहास गवाह है कि जब जब किसी भी राजनैतिक दल के द्वारा लाल चौक पर झंड़ा फहराया है, तब तब न केवल इतिहास ही बना है, वरन इससे राष्ट्र को मजबूती भी मिली है। संभवतः यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी के द्वारा जम्मू और काश्मीर की तरफ अपना ध्यान ज्यादा केंद्रित किया हुआ था।

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भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस के पक्ष में सकारात्मक संदेश का होगा प्रवाह

राहुल गांधी के नेतृत्व वाली इस भारत जोड़ो यात्रा को लोग अलग अलग चश्मों से देखेंगे, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। कुछ इसे आलोचना की दृष्टि से देखेंगे तो कुछ इसके सकारात्मक पहलू को उजागर करने का प्रयास करेंगे। आलोचकों ने इस यात्रा की आलोचना का एक भी मौका नहीं गंवाया, इसके बावजूद भी राहुल गांधी बिना विचलित हुए धूप में भी चले, बारिश में भी भीगे और गिरती बर्फ के बीच भी वे नजर आए।

जैसा कि राहुल गांधी सदैव कहते आए हैं कि यह यात्रा गैर सियासी है। इस लिहाज से उन्हें भारत को करीब से जानने का मौका मिला है। यात्रा का मकसद मनोरंजन, खुशी, रोमांच हो सकता है, पर अलग अलग जगह के लोगों से मिलकर उनसे बातचीत कर उन्हें जानने का मौका भी इस तरह की यात्राओं में मिलता है। पर अगर इस यात्रा का मकसद केवल राजनैतिक है तो इसका भान आने वाले चुनावों में ही सामने आ सकेगा।

आपको बताना चाहेंगे कि आदि शंकराचार्य महाराज के द्वारा यात्राओं के जरिए ही देश की एक आंतरिक धार्मिक वर्जना या सीमा तय की थी। महात्मा गांधी रहे हों या स्वामी विवेकानंद सभी ने अपने अपने स्तर पर की यात्राओं के जरिए ही देश को टटोला और पहचाना था। यह बात सोलह आने सही है कि जो भी नेता देश को बेहतर समझने का प्रयास करेगा, वह उतना ज्यादा सियासी लाभ लेने में सक्षम होगा।

भारत जोड़ो यात्रा के समापन के बाद इसकी प्रतिध्वनि सुनाई देना आरंभ हो गई है। यह प्रतिध्वनि सकारात्मक ही दिख रही है। इस सकारात्मकता को कांग्रेस के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से लेकर ग्रामीण अंचलों के नेता कब तक और कितना बरकारार रख पाते हैं इस पर सब कुछ निर्भर कर रहा है।

इस यात्रा में राहुल गांधी पर अनेक आरोप भी लगे। कहा जाता है कि क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। सियासी बियावान में आप जिस तरह की ध्वनि के साथ तीर छोड़ेंगे वही ध्वनि जब प्रतिध्वनि बनकर वापस आती है तो उसमें ध्वनि की गूंज कुछ ज्यादा ही तेज सुनाई देती है, इसी तर्ज पर जब राहुल गांधी पर 41 हजार रूपए की टी शर्ट पहनने के आरोप मढ़े गए तो प्रतिक्रिया स्वरूप दस लाख के सूट की बात सामने आई।

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(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)

(साई फीचर्स)