राहुल प्रकरण, कांग्रेस के लिए आपदा या अवसर!

राहुल गांधी को चाहिए कि वे काश्मीर से कन्याकुमारी तक ‘न्याय यात्रा‘ का आगाज करें!
(लिमटी खरे)


आधी सदी से ज्यादा समय तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस की राह में लगभग एक दशक से शूल ही शूल बिखरे पड़े दिख रहे हैं। कांग्रेस नेतृत्व का रवैया कहा जाए या उनके सलाहकारों के द्वारा दी जाने वाली सलाह को दोष दिया जाए कि कांग्रेस के लिए दुश्वारियां कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं।
राहुल गांधी पर मानहानि के एक मुकदमे पर सूरत की अदालत का फैसला आने के बाद इस समय सबसे हाट टापिक यही है। हलांकि जो कुछ भी हुआ है वह नियम कायदों के तहत ही हुआ है इसलिए इस पर उंगली उठाने की जहमत लोग नहीं कर पा रहे हैं। कांग्रेस भले ही इस मामले में हाय तौबा मचा रही हो पर आम जनता का रूख कुछ और ही नजर आ रहा है। राहुल गांधी के द्वारा 2013 में तत्कालीन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के द्वारा लाए जा रहे इस तरह के कानून से राहत दिलाने वाले अध्यादेश की प्रति ही फाड़ दी थी। आज लोग उस बात को याद करते हुए यही कह रहे हैं कि अगर राहुल गांधी जिस नियम के हिमायती रहे हैं, उस पर अगर अमल हो रहा है तो हाय तौबा कैसी!
राहुल गांधी के द्वारा विश्वविख्यात कैंब्रिज विश्वविद्यालय में एक लेक्चर के दौरान कहा कि शायद महिलाओं को गैस सिलिंडर देना और लोगों के बैंक अकाउंट खुलवाना अच्छा क़दम है। ऐसे क़दम को ग़लत नहीं कहा जा सकता, लेकिन मेरे विचार में मोदी भारत की बनावट को बर्बाद कर रहे हैं। वह भारत पर एक ऐसा विचार थोप रहे हैं, जिसे भारत स्वीकार नहीं कर सकता।’
राहुल गांधी ने कहा कि, ‘भारत राज्यों का संघ है। भारत में धार्मिक विविधता है। यहां सिख, मुस्लिम, ईसाई सभी हैं, लेकिन मोदी इन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक समझते हैं। मैं इससे सहमत नहीं हूं। जब आपका विरोध इतना बुनियादी हो तो फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आप किन दो-तीन नीतियों से सहमत हैं।’
राहुल गांधी के द्वारा जो बातें वहां कहीं गईं, उन बातों को कहने के लिए उन्हें सखम मंच अर्थात लोकसभा का उपयोग करना चाहिए था। उन्हें सदन में इन बातों को पुरजोर तरीके से रखना चाहिए था। सदन से बर्हिगमन करना, शोर शराबा कर सदन का समय नष्ट करने के बजाए सारगर्भित बातों को कम शब्दों में अगर सदन में पेश किया जाता तो शायद विदेश में जाकर इस तरह का रोना रोने की आवश्यकता नहीं पड़ती। आम भारतीय शायद ही इसे सही माने।
राहुल गांधी की सदस्यता जिस आनन फानन तरीके से समाप्त की गई है वह भी अपने आप में एक उदहारण से कम नहीं माना जा सकता है। भविष्य में लोग इसे दशकों तक याद रखेंगे। किस रूप में इसे याद रखा जाएगा यह अलहदा बात मानी जा सकती है।
सोशल मीडिया पर राहुल गांधी की छवि को किसने किस तरह पेश किया है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। भाजपा के द्वारा राहुल गांधी पर लगातार ही हमले किए जाते रहे हैं। यहां तक कि आलू से सोना वाले कथन को भी जिस तरह से पेश किया गया, वह किसी से छिपा नहीं है। सवाल यही उठता है कि अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष पर इस तरह के कटाक्ष होते रहते हैं और कांग्रेस का आईटी सेल, कांग्रेस के प्रवक्ताओं को मानो पक्षाघात हो जाता है! क्या इस बारे में कभी कांग्रेस के नेतृत्व ने विचार किया है!
बहरहाल, वर्तमान प्रकरण में आम जनता पर क्या असर हुआ है अथवा होगा, इस बारे में पता कुछ समय बाद ही लगेगा, पर इस पूरे मामले में विपक्ष की लगभग हर पार्टी राहुल गांधी के समर्थन में दिख रही है। यह एक अच्छा संकेत है कांग्रेस के लिए, अगर वह इसे भुना सके तब! यह हालात इस बात के बाद भी बने हैं जबकि मनीष सिसोदिया के मामले में कांग्रेस और राहुल गांधी मौन रहे थे।
कहा जाता है कि राजनीति में मंझा हुआ खिलाड़ी उसे ही माना जाता है जो अपने ऊपर आए संकट में भी हवा अपने पक्ष में बहाने का माद्दा रखता हो। राजनीति की परिभाषा ही एक लाईन में यह है कि जिस ‘नीति‘ से ‘राज‘ हासिल हो वही ‘राजनीति‘ कहलाती है। इस मूल मंत्र को साधकर सियासी दंगल में उतरने वाले शायद ही कभी पीछे देखते हों।
एआईसीसी के वरिष्ठ नेता ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर ‘समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया‘ से चर्चा के दौरान इसी मामले में एक रोचक किस्सा सुनाया। इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री थीं, तब आपातकाल लगाया गया और उसके बाद जनता की नाराजगी उन्हें झेलना पड़ा। जैसे ही मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने वैसे ही इंदिरा गांधी को जेल भेजने के लिए ताना बाना बुना जाने लगा। उन पर आरोप लगाया गया कि चुनाव प्रचार के लिए 100 जीप खरीदी गईं थीं, वे कांग्रेस के पैसे के बजाए सरकारी नुमाईंदों और उद्योगपतियों का पैसा था।
तत्कालीन गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह ने इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने के लिए सीबीआई के तेज तर्रार अधिकारी एन.के. सिंह को चुना। 01 अक्टूबर की तारीख मुकर्रर हुई, पर दो अक्टूबर को गांधी जयंति पर इंदिरा गांधी के पक्ष में कांग्रेस माहौल बना सकती थी, इसलिए तारीख को 03 अक्टूबर चुना गया।
इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के लिए शाम का समय चुना गया ताकि वे रात जेल में बिताएं। तय समय अनुसार शाम लगभग सवा पांच बजे सीबीआई का दल इंदिरा गांधी के निवास पर पहुंचा और उनके निज सचिव आर.के. धवन के साथ बातचीत में लगभग एक सवा घंटा जाया हो गया। इसके बाद इंदिरा गांधी सामने आईं और सीबीआई के साथ चलने के लिए उन्होंने कुछ समय मांगा। इसके बाद वे अपने कमरे में चली गईं और फिर रात आठ बजे बाहर आईं।
शाम पांच बजे से आधी रात तक हाई वोल्टेज ड्रामा चलता रहा। मीडिया के पहुंचने तक सीबीआई को रोके रखा गया। इंदिरा गांधी को गिरफ्तार कर जब हरियाणा ले जाया जाने लगा तो उन्होंने दो टूक शब्दों में कह दिया था कि गिरफ्तारी दिल्ली में हुई है इसलिए दिल्ली में ही उन्हें रखा जाए। उक्त नेता का कहना था कि इस पूरे प्रसंग को बताने का तातपर्य महज इतना ही था कि विषम परिस्थितियों में भी इंदिरा गांधी ने सब्र नहीं खोया और उन्हें इस पूरे प्रकरण का पूरा पूरा सियासी लाभ भी मिला।
हालात देखकर ऐसा लग रहा है कि राहुल गांधी को इतिहास गहराई और बारीकी पढ़ने और समझने की जरूरत है। जिस तरह लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने छोटी सी चिंगारी से बहुत बड़ा दावानल खड़ा कर दिया था उसी तर्ज पर आज राहुल गांधी चाहें तो विपक्ष को एक छतरी के नीचे वे ला सकते हैं।
विपक्ष की एकता के उदहारण मोरारजी सरकार के रूप में उनके सामने है। इसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भी विपक्ष को एक साथ एक छत के नीचे लाया गया था। लोकसभा चुनावों में अब एक साल से भी कम समय रह गया है। यह वही समय है जब राहुल गांधी अपने सटीक सलाहकारों और रणनीतिकारों, फ्लोर मैनेजर्स के जरिए विपक्ष को एकजुट करने में अगर सफल रहे तो 2024 में परिदृश्य बदलने में देर नहीं लगने वाली। इसके अलावा राहुल गांधी को चाहिए कि वे भारत जोड़ो यात्रा की तर्ज पर अब काश्मीर से कन्याकुमारी तक ‘न्याय यात्रा‘ का आगाज करें। इसके लिए उन्हें कुशल प्रबंधकों की आवश्यकता होगी।
(साई फीचर्स)