शिक्षा को लेकर आखिर कब तक होते रहेंगे देश में प्रयोग!

लिमटी की लालटेन 509

रोजगार परक एवं बदलते दौर के अनुसार क्यों नहीं बनाई जाती शिक्षा नीतियां!

(लिमटी खरे)

देश में शिक्षा को लेकर जितने प्रयोग किए गए हैं, उतने शायद ही किसी अन्य विभाग में किए गए हों। हाल ही में नेशनल काऊॅसिल ऑफ एजूकेशन रिसर्च एण्ड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) के द्वारा छटवीं कक्षा से बरहवीं कक्षा तक के पाठ्यक्रम में बदलाव किए गए हैं। समय समय पर बदलाव किए जाने अवश्यंभावी हैं। बदलते दौर को देखते हुए इनमें बदलाव की आवश्यकता महसूस होती ही है। बदलाव होना चाहिए किन्तु ये बदलाव इस तरह के होना चाहिए जो रोजगार के रास्ते प्रशस्त करें।

शिक्षा का पूरा का पूरा मसला नियंत्रित होता है मानव संसाधन विकास मंत्रालय से। पता नहीं रोजगार परक शिक्षा नीति बनाने में हुक्मरानों को परेशानी क्या है। अस्सी के दशक के उपरांत शिक्षा नीतियों में हुए परिवर्तनों पर अगर नजर डाली जाए तो शिक्षा नीतियां कहीं न कहीं सरकार में काबिज दल के एजेंडे से परोक्ष तौर पर प्रभावित ही दिखती आई हैं। कभी किसी एचआरडी मिनिस्टर का बयान आता है कि शिक्षा से हिंसा को दूर करना है, तो कोई इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश करने की बात कहता है। कुल मिलाकर सियासी नफा नुकासान को ही शिक्षा नीति में परिवर्तन किए जाते रहे हैं। 2014 में एनडीए सरकार के आने के बाद यह तीसरा मौका है जबकि पाठ्यक्रम में बदलाव किया जा रहा है।

यह सच है कि बीसवीं सदी के अंतिम दशकों में बहुत ज्यादा उबाऊ और भारी भरकम पाठ्यक्रम लागू किए गए थे। विद्यार्थियों को पढ़ाई से दीगर एक्टीविटीज के लिए समय ही नहीं मिल पाता है। आज बच्चे मोहल्ले में खेलते नहीं दिखते। सुबह शाम मैदानों में क्रिकेट, हाकी, फुटबॉल, बेडमिंटन, खिप्पड़, नमक, खो खो आदि जैसे खेल खेलते नहीं दिखते। शालाओं में ही जितना खेल हो गया सो हो गया। विद्यार्थियों को प्रोजेक्ट असाईंमेंट का बोझ है। इसके अलावा उन्हें बहुत ही ज्यादा कोर्स से लाद दिया गया है।

आज प्रौढ़ हो रही पीढ़ी के लोगों से आप पूछें तो पता चलेगा कि शालाएं 01 जुलाई से खुला करती थीं। दशहरे से दीपावली तक अवकाश हुआ करते थे। सर्दी में बड़े दिन की छुट्टी 25 दिसंबर से 31 दिसंबर तक होती थी। मार्च या मध्य अप्रैल माह में परीक्षाएं समाप्त हो जाती थीं और 30 अप्रैल को परीक्षा परिणाम आ जाते थे। इसके बाद मई और जून माह आराम।

इस आलेख को वीडियो में देखने के लिए क्लिक कीजिए

आज क्या हो रहा है! शालाएं आरंभ हो रही हैं 01 अप्रैल से, इसके बाद 15 मई से 15 जून तक अवकाश, फिर शालाएं आरंभ। दीपावली, एवं दशहरे का आवकाश महज एक दो दिन का। शीतकालीन अवकाश में भी कटौति हो गई है। मार्च में परीक्षाएं और परीक्षा परिणाम भी उसी माह में। ऐसा लगता है मानो विद्यार्थियों को भी मशीन बना दिया गया हो, उनका नैसर्गिक विकास कब होगा इस बात की चिंता शायद किसी को नहीं है। कोर्स में बदलाव के लिए बाकायदा समिति का गठन होता है। एक्सपर्ट कमेटी दिल्ली में वातानुकूलित कक्षों में बैठकर ही निर्णय लेती है। ऐसे में जमीनी स्तर पर क्या चाहिए यह पता कैसे चल पाएगा।

वर्तमान में एक्सपर्ट कमेटी के द्वारा इतिहास, गणित, भूगोल, विज्ञान सहित हर विषय में कंटेट कम किए गए हैं। जो कंटेंट बदले गए हैं, वे कंटेंट किसकी सिफारिश पर और क्यों बदले गए हैं, इस बारे में पारदर्शिता का अभाव साफ तौर पर झलकता दिखता है। अब विपक्ष इस बात को लेकर सड़कों पर उतरेगा। यक्ष प्रश्न यही है कि सक्षम मंच, लोकसभा और राज्य सभा में जब बात वजनदारी से रखने की बात आती है तब विपक्ष (चाहे विपक्ष में कांग्रेस हो अथवा भाजपा) बर्हिगमन का आसान रास्ता अपना लेता है, जबकि जो बात जनता के बीच जाकर रखी जा रही है उस बात को सदन में रखने के बजाए वाक आऊट का रास्ता अपनाना क्या उचित है!

रही बात सरकार की तो प्राचीन, मध्यकालीन एवं समकालीन इतिहास के जिन तथ्यों में बदलाव किया गया है, उन तथ्यों में बदलाव क्यों और किसके कहने पर किया गया, यह भी सार्वजनिक होना चाहिए। लोगों का आरोप है कि आरएसएस और भाजपा के द्वारा जो बात प्रचारित की जाती रही है उससे यह सब कुछ मेल खाता दिखता है। सियासी और गैर सियासी दलों को अपनी बात कहने और सबके सामने रखने का पूरा अख्तियार है किन्तु पाठ्यक्रमों में बदलाव सरकार में बैठे दल की मर्जी से शायद नहीं होना चाहिए। आज भाजपा सत्ता में है, कल दूसरा दल आएगा। अगर आज भाजपा की मर्जी से बदलाव हो रहे हैं तो आने वाले समय में दूसरे दल की मर्जी से होगा।

इस तरह क्या विद्यार्थियों के साथ यह खिलवाड़ नहीं माना जाएगा। आखिर कब तक सियासी नुमाईंदे विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे! आखिर क्या वजह है कि नैतिकता, मानव जरूरतों, सामाजिक समरसता, रोजगार आधारित शिक्षा नीति या पाठ्यक्रम को तैयार क्यों नहीं किया जाता! आपने हमने पहली कक्षा से पढ़ाई समाप्त करने तक अनेक बातें इस तरह की भी पढ़ी हैं जिनका उपयोग प्रश्न पत्र के अलावा दैनिक जीवन में शायद ही कभी किसी ने भी किया हो! हमारी नितांत निजी राय में पाठ्यक्रम हो अथवा शिक्षा नीति इसमें बदलावों को भारत गणराज्य के संविधान में निहित लोकतांत्रिक मूल्यों वाले दृष्टिकोण से जुड़े आदर्शों और मूल्यों की कसौटी पर खरा उतारकर ही लागू किया जाना चाहिए।

लिमटी की लालटेन के 509वें एपीसोड में फिलहाल इतना ही। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की साई न्यूज में लिमटी की लालटेन अब हर रोज सुबह 07 बजे प्रसारित की जा रही है। आप समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की वेब साईट या साई न्यूज के चेनल पर जाकर इसे रोजाना सुबह 07 बजे देख सकते हैं। अगर आपको लिमटी की लालटेन पसंद आ रही हो तो आप इसे लाईक, शेयर व सब्सक्राईब अवश्य करें। हम लिमटी की लालटेन का 510वां एपीसोड लेकर जल्द हाजिर होंगे, तब तक के लिए इजाजत दीजिए . . .

(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)

(साई फीचर्स)