अवैध – अ = एमपी में सब “वैध”….

अपना एमपी गज्जब है…76

(अरुण दीक्षित)

ऊपर की लाइन पढ़कर आप चौंकिए नहीं! जो लिखा गया है, वह पूरे होशोहवास में लिखा गया है। यह ऐलान खुद राज्य के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने किया है! उन्होंने एमपी में अवैध को ही “अवैध” घोषित कर दिया है।

अब चूंकि घोषणा मुख्यमंत्री की है सो कोई सवाल नही पूछ सकता है। न नियम की बात न कानून की! मुख्यमंत्री की मर्जी सबसे ऊपर! उन्होंने जो कह दिया सो होगा!

मंगलवार , 23 अप्रैल 2023 को उन्होंने मुख्यमंत्री निवास में उन लोगों को बुलाया जो अब तक, सरकार की नजर में , अवैध कालोनियों में रह रहे थे। उन्होंने करीब 500 लोगों को बिल्डिंग परमिशन देते हुए एक शानदार, भावनाओं और संवेदनशीलता से भरपूर भाषण दिया। उन्होंने सरकारी मशीनरी द्वारा अवैध घोषित की गई कालोनियों के साथ खड़े होते हुए सवाल किया- काहे की अवैध? लोगों ने गाढ़ी कमाई लगा कर अपना आशियाना बना लिया! अब उन्हें अवैध कहा जा रहा है। यह अवैध ठहराने का निर्णय ही अवैध है! मैं इस निर्णय को ही समाप्त करता हूं!

उनके इस ऐलान के साथ ही प्रदेश की हजारों “अवैध” कालोनियां “वैध” होने की कतार में आ गईं। उनसे जुड़े लाखों लोग खुश हो गए! वे खुश जिन्होंने सरकारी नियमों की अनदेखी कर , बिना छानबीन किए घर बनाने के लिए जमीनें खरीदी। वे भी खुश जिन्होंने सरकारी मशीनरी से साठगांठ कर, बिना जरूरी अनुमति के, कालोनियां काट दीं। दलाल खुश, सरकारी अफसर खुश, नेता खुश और सबसे ऊपर मुख्यमंत्री खुश! मतलब ऊपर से नीचे तक सब खुश!

इस एक लोकलुभावन फैसले का क्या असर होगा? इस बारे में कौन सोचे! चुनाव सामने हैं! फिर सरकार बनानी है! उसके लिए वोट चाहिए! वोटों के लिए “अवैध” को ही “वैध” कर दिया अब काहे की चिंता !

लेकिन यह एक फैसला कई सवालों का जनक बन गया है। पर मुखिया से सवाल कौन पूछे! मुखिया तो मुखिया हैं जो चाहे कह सकते हैं, कर सकते हैं। किसकी हिम्मत है जो पूछ ले कि ये कालोनियां जब बसाई जा रही थीं तब आप ही राज्य के मुखिया थे। ये अवैध थीं तो बस कैसे गईं? चलिए बस गईं सो बस गईं! साथ ही यह भी आपके रहते इन्हें “अवैध” कहा किसने? वह किसका निर्णय था जिसके तहत इन्हें अवैध ठहराया गया! आपने जिस “अवैध निर्णय” का अंतिम संस्कार किया है उसका जन्मदाता कौन था?

वैसे सरकार के दस्तावेजों में न तो ऐसे नियम हैं और न कानून, जिनके तहत राज्य भर में कुकुरमुत्तों की तरह उगी अवैध कालोनियों को एक झटके में वैध कर दिया जाए। लेकिन मुख्यमंत्री तो मुख्यमंत्री हैं। उनके अपने विशेषाधिकार हैं! अपना विवेक है! वे कुछ भी कर सकते हैं! खास कर चुनावी साल में तो कुछ भी! लेकिन उनसे यह कौन पूछे कि अवैध को वैध करते समय आपने जो सवाल उठाए, उनका उत्तर तो आपको ही देना है! आप ही बताइए कि आपके रहते यह सब हुआ कैसे?

पूछना तो यह भी है कि अगर आपको ऐसे ही फैसले लेने हैं तो फिर 1973 में बनाए गए एमपी टाउन प्लानिंग एक्ट को बनाए रखने का क्या औचित्य! भूमि विकास नियम 1984, जिन्हें आपकी कैबिनेट ने 2012 में संशोधित किया था, अब किस काम के हैं। और जो म्युनिसिपल एक्ट आपके जन्म से पहले, 1956 में बना था, उसकी अब क्या भूमिका बची है। और हां..जो रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथारिटी (रेरा) सबसे ज्यादा अहमियत पा रही है, वह आगे चलेगी या फिर बंद कर दी जाएगी! या फिर अवैध अवैध खेलने वालों के आगे रिरियाती रहेगी! क्योंकि अंत में आपको इन सबके अस्तित्व को नकारना ही है तो फिर ये किस काम के?

अब ये कौन बताए कि आपको सिर्फ वोट की चिंता है, लेकिन समाज में एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो शहरों, कस्बों और गांवों की सुनियोजित बसावट चाहता है। यह तबका यह चाहता है हर बस्ती एक आदर्श बस्ती हो। उसमें सड़क, पार्क, स्कूल, सामाजिक स्थल, बाजार और अन्य सुविधाएं उपलब्ध हों। लेकिन जिन लोगों ने पैसे के लालच में एक एक इंच जमीन को बेचा हो क्या वे इन सब बातों के बारे में सोचते हैं?

और जब सब अनियोजित और मनमाने ढंग से होगा तो उन बस्तियों और झुग्गी बस्तियों में कितना अंतर रह जायेगा! कौन पूछे कि बढ़ती आबादी को ध्यान में रखकर जो तैयारी की जानी थी, उसे कौन करेगा? आपने तो अवैध को वैध कर दिया, पर इन्हें नरक बनने से कैसे रोका जाएगा! यह सवाल किससे पूछा जाए! जब सही नियोजन ही नही होगा तो फिर बाकी सुविधाएं किस आधार पर सोची जाएंगी!

सवाल यह भी है कि जब यही करना है तो शहरों के मास्टर प्लान क्यों बनाए जा रहे हैं!

आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश भर में 6 हजार से ज्यादा अवैध कालोनियां अब वैध हो जाएंगी! पहले यह कहा गया था कि दिसंबर 2016 तक बसी कालोनियों को ही वैध किया जायेगा। लेकिन घोषणा के समय यह अवधि बढ़ा कर दिसंबर 2022 कर दी गई। एक साथ 6 साल का जंप! साथ ही हजारों नई कालोनियां “वैध”! अकेले भोपाल में ही “वैध” होने वाली कालोनियों की संख्या 900 के आसपास पहुंच जाएगी। वैसे सच तो यह है कि जब मुख्यमंत्री अवैध को वैध कर रहे थे तब उनके सरकारी अमले के पास भी सही आंकड़े नही थे। फिलहाल वे आंकड़े एकत्र कर रहे हैं। इस “एकत्रीकरण” की अवधि में यह संख्या और बढ़ने की पूरी संभावना है! क्योंकि चुनाव सिर पर हैं! उनका “बोझ” बहुत ही भारी होता है। यह सब में थोड़ा थोड़ा बंट जाएगा तो “सब” खुश रहेंगे!

सबसे अहम सवाल है कि अवैध कालोनियों के आगे से तो “अ” हटा लिया गया है! लेकिनअब क्या नर्मदा सहित प्रदेश की सभी नदियों में चल रहे अवैध खनन के आगे से भी “अ” हटेगा। केंद्र सरकार के सख्त निर्देशों के बाद भी प्रदेश की सीमाओं पर चल रही परिवहन विभाग की रोज होने वाली करोड़ों की वसूली भी अब “वैध” मानी जायेगी!

सबसे अहम सवाल यह है कि क्या अब सरकार विधानसभा में प्रस्ताव लाकर “अवैध” शब्द को ही विलोपित कराएगी? क्योंकि ऐसा हो जाने के बाद तो चुनाव से जुड़ी हर व्यवस्था सरल और सुगम हो जायेगी? फिर चाहे नए बने बांध और पुल बहें, व्यापम कांड हो, नर्सिंग कालेज फ्रॉड हो, आयुष्मान का खेल हो, कुपोषित बच्चों के पोषण आहार का मामला हो या फिर मुख्यमंत्री कन्यादान योजना से करोड़ों रुपए निकाले जाने का मामला , सब खुद ब खुद वैध हो जायेंगे! न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी! न कोई सवाल न कोई जवाब! हर चीज सिर्फ वैध और वैध!

संभव है कि मंत्रियों , अफसरों , सरकारी कर्मचारियों और इन सबके दलालों के साथ जितना कुछ “अवैध” जुड़ा है वह सब भी “वैधता” प्रमाण पत्र हासिल कर ले! खाली और फटी जेबों वाले जो “रिश्तेदार” पिछले कुछ सालों में हजारों करोड़ के आसामी हो गए हैं, उन्हें भी वैधता हासिल हो जायेगी?

अब जब एक अवैध “वैध” हो ही गया है तो दूसरों को अवैध रखना तो नाइंसाफी होगी! वैसे भी अब बेईमानों को जमीन में गाड़ने की मुहिम तो अभी खुद जमीन में गड़ी हुई है।

फिर कुछ भी हो सकता है। हर अवैध का “अ” विलोपित कराया जा सकता है। कुछ का ऐलानियां तो कुछ का चुपचाप! फिलहाल एमपी में अवैध की नो एंट्री! सब वैध है वैध!

तो फिर बताइए कि अपना एमपी गजब है कि नहीं! बोलिए बोलिए! ! ! ! !

(साई फीचर्स)