अतिक्रमण लील चुका है सड़कों को, बस स्टैण्ड के स्थान परिवर्तन का फिर निकला है जिन्न!

तीसरी बार बस स्टैण्ड को हटाए जाने . . . 02
सड़कों को मूल चौड़ाई में लाया जाए न कि बस स्टैण्ड को मूल स्थान से हटाया जाए
(लिमटी खरे)


सिवनी शहर का भी अजब दस्तूर है। सड़कों पर से अतिक्रमण हटाने में असफल रहने वाले अधिकारियों पर कार्यवाही न की जाकर यातायात जाम या सड़कों पर वाहनों का दबाव दिखाया जाकर सिवनी में सरकारी अथवा निजी यात्री बस स्टैण्ड को स्थानांतरित करने का शिगूफा छोड़ दिया जाता है। 1992 के बाद 2013 में बस स्टैण्ड को मूल स्थान से बाहर किए जाने का असफल ताना बाना बुना गया और उसके बाद अब 2023 में एक बार फिर यही आवाज उठती दिख रही है।
प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि दरअसल, सिवनी शहर में आबादी का घनत्व, सड़कों पर यातायात का दबाव, सड़कों को चौड़ा करने में आने वाली परेशानियों को देखते हुए सिवनी शहर का यात्री बस स्टैण्ड शहर से बाहर ले जाने का प्रस्ताव एक बार फिर तैयार किया जा रहा है।
मूल बात यह है कि शहर के अंदर की सड़कों को अतिक्रमण का जिन्न पूरी तरह निगल चुका है। शहर के अंदर की सड़कों की मूल चौड़ाई कितनी है, यह बात ही प्रशासन के द्वारा अगर सार्वजनिक की जाकर सड़कों की चौड़ाई को ईमानदारी से नपवाकर निशान लगवा दिए जाएं तो लोग दातों तले उंगली दबा लेंगे।
सवाल यही उठता है कि आखिर जिस जिम्मेदारी के लिए सरकारी नुमाईंदों को जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से संचित राजस्व से पगार मिल रही है उस जिम्मेदारी का निर्वहन वे ईमानदारी से क्यों नहीं करते। अगर जनता के प्रति सरकार के द्वारा आहूत जवाबदेहियों का निर्वहन ही सरकारी नुमाईंदे करने लगें तो सुशासन आने में देर नहीं लगने वाली।
1992 में पटवा सरकार के बुलडोजर मंत्री के नाम से विख्यात स्व. बाबू लाल गौर के निर्देश पर चले अतिक्रमण विरोधी अभियान को तत्कालीन जिलाधिकारी पुखराज मारू ने बखूबी अंजाम दिया था। इसके बाद भरत यादव के कार्यकाल में अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया गया था, किन्तु यह महज माडल रोड या यूं कहा जाए कि ज्यारत नाके तक ही सीमित रहा था तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। पूर्ववत जिलाधिकारी प्रवीण सिंह अढ़ायच के द्वारा अलबत्ता बेहतर तरीके से अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया गया था। उस वक्त नेहरू रोड, बुधवारी बाजार में भी अतिक्रमण को हटाया गया था।


हमारी निजी राय में शहर के मुख्य और प्राईवेट बस स्टैण्ड को अपने मूल स्थान से हटाया जाना वर्तमान में प्रासंगिक नहीं होगा। जब तक स्थानीय परिहवन जैसे सिटी बस, निर्धारित रूट पर चलने वाले शेयरिंग आटो, मिनी बस आदि की मुकम्मल व्यवस्थाएं नहीं हो जातीं तब तक बस स्टैण्ड के स्थान परिवर्तन की बात सोचना भी बेमानी ही होगा।
रही बात सड़कों पर यातायात के दबाव या यातायात जाम की तो सबसे पहले जिले के नीति निर्धारक आला अधिकारियों को चाहिए कि वे शहर से बाहर निकलने वाले हर रास्ते का मुआयना करें। जबलपुर, बबरिया, मुंगवानी, बरघाट, कटंगी, नागपुर या छिंदवाड़ा रोड से आप अंदर आते हैं या बाहर जाते हैं तो आपको ये सड़कें बहुत चौड़ी मिलती हैं। फिर क्या वजह है कि सौ से पांच सौ मीटर चलने के बाद ये सड़कें शहर के अंदर सकरी हो जाती हैं।
जाहिर है कि जितनी चौड़ी सड़क शहर के नाकों पर है उतनी ही चौड़ाई की भूमि सड़क की अंदर भी होगी। वास्तव में हो अथवा न हो, पर नक्शे में तो निश्चित तौर पर होगी ही। अस्सी के दशक तक सिवनी शहर के अंदर से ही देश का सबसे लंबा और व्यस्ततम राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात गुजरता था। उस दौर में फर्राटे भरते लदे फदे ट्रक आसानी से गुजर जाया करते थे, बाद में नब्बे के दशक में सड़कों को अतिक्रमण ने लीलना आरंभ किया और सड़कों की सांसें फूलने लगीं।
निश्चित तौर पर सिवनी की आंतरिक सड़कों की चौड़ाई का मिलान नक्शे से किया जाना चाहिए और उसके बाद निशान लगाए जाकर अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही वह भी सख्ती से की जाकर सड़कों को चौड़ा किया जाना चाहिए न कि बस स्टैण्ड को शहर से बाहर ले जाने की कवायद की जानी चाहिए।
इस मामले में सिवनी के विधायक दिनेश राय एवं बालाघाट के सांसद डॉ. ढाल सिंह बिसेन को चाहिए कि वे सर्वदलीय बैठक बुलाकर सुझाव एकत्र करें, प्रबुद्ध नागरिकों से विमर्श करें, पत्रकारों से उनका नजरिया जानें और उसके उपरांत प्रशासन के सामने ठोस बात रखें ताकि शहर का विकास सुनिश्चित किया जा सके, न कि प्रशासन के द्वारा लिए गए निर्णय को चुपचाप शिरोधार्य करें, क्योंकि जनता ने अपने, जिले एवं नगर के हितों के संवंर्धन के लिए जनादेश देकर उन्हें विधानसभा एवं संसद की सीढ़ियां चढ़ने के काबिल बनाया है …..

(क्रमशः जारी)
(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)