गाय, बैल के प्रति स्नेह, दुलार, देखभाल का पर्व माना जाता है पोला को
पोला पर्व मूलतः मध्य प्रदेश महाराष्ट्र, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ में मनाया जाने वाला एक प्रमुख कृषि पर्व है। यह पर्व बैलों की पूजा को समर्पित है, जो किसानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। पोला पर्व भाद्रपद मास की अमावस्या को मनाया जाता है और यह खेती-किसानी से जुड़े लोगों के लिए एक विशेष दिन होता है।
पोला इस वर्ष सोमवार 2 सितंबर को मनाया जाएगा। पोला से पहले ही अनेक शहरों के बाजारों में मिट्टी के बर्तन, जांता व लकड़ी के बैल सजाए गए। पोला पर्व पर किसान बैलों की विशेष रूप से पूजा करते हैं। इस अवसर पर बैलों का श्रृंगार किया जाता है। साथ ही कहीं कहीं बैल दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है, ग्रामीण क्षेत्रों में जहां पोला त्योहार बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है, वहीं शहरी क्षेत्रों में धीरे-धीरे इसकी रौनक कम होती नजर आ रही है।
पोला पर्व का महत्व जानिए
पोला पर्व सिर्फ एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह किसानों के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। माना जाता है कि बैल किसानों के लिए सबसे अच्छे दोस्त होते हैं और वे खेतों में काम करने में उनकी बहुत मदद करते हैं। पोला पर्व पर बैलों की पूजा करके किसान उनका धन्यवाद करते हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करते हैं।
इस पर्व के पीछे कई धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं। कुछ लोग मानते हैं कि इस दिन बैलों की पूजा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
जानकार विद्वानों का कहना है कि पोला पर्व को बड़े उत्सव के रूप में मध्य प्रदेश महाराष्ट्र, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है। इन अंचलों में पोला और तीजा खास महत्व रखता है। तीजा और पोला पर्व में महिलाएं अपने मायके में इस पर्व को मनाने के लिए आती हैं। मायके से मिला हुआ साड़ी पहनकर महिलाए तीजा का पर्व मनाती हैं। कुल मिलाकर यह पर्व किसानों के बैलों के उत्सव का पर्व है।
पोला पर्व की तैयारी किस तरह होती है यह जानिए
पोला पर्व की तैयारी काफी पहले से शुरू हो जाती है। किसान अपने बैलों को अच्छी तरह से स्नान कराते हैं और उन्हें नए कपड़े पहनाते हैं। बैलों के सींगों पर रंग-बिरंगे रिबन बांधे जाते हैं और उनके गले में घंटियां लगाई जाती हैं। घरों में महिलाएं विशेष प्रकार के पकवान बनाती हैं, जैसे कि ठेठरी, खुरमी आदि।
पोला पर्व पर पूजा विधि
पोला पर्व के दिन सुबह जल्दी उठकर किसान अपने बैलों को स्नान कराते हैं और उन्हें रंग-बिरंगे कपड़े पहनाते हैं। पोला पर्व के एक दिन भादो अमावस्या के दिन बैल और गाय की रस्सियां खोल दी जाती है और उनके पूरे शरीर में हल्दी, उबटन, सरसों का तेल लगाकर मालिश की जाती है। इसके बाद पोला पर्व वाले दिन इन्हें अच्छे से नहलाया जाता है। इसके बाद उन्हें सजाया जाता है और गले में खूबसूरत घंटी युक्त माला पहनाई जाती है। जिन गाय या बैलों के संग होते हैं उन्हें कपड़े और धातु के छल्ले पहनाएं जाते हैं। इसके बाद बैलों को एक विशेष मंडप में बैठाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। पूजा में बैलों को फूल, फल और मिठाई चढ़ाई जाती है। इसके साथ ही किसान बैलों से आशीर्वाद भी लेते हैं।
पोला पर्व के दिन कई तरह के आयोजन किए जाते हैं।
कई जगहों पर पोला पर्व के दिन बैल दौड़ का आयोजन किया जाता है। इस दौड़ में किसान अपने-अपने बैलों को दौड़ाते हैं।
अनेक स्थानों पर बच्चे मिट्टी के बैल बनाते हैं और उनसे खेलते हैं।
कई गांवों में पोला पर्व के दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
इस पर्व का संबंध देव पूजन से कम है लेकिन कृषि पूजन से ज्यादा है। इस वर्ष भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की जो अमावस्या है वह 2 सितंबर को पड़ रही है। कुछ जगह पर इस पर्व को पिठोरी अमावस्या और कुछ जगहों पर कुशोदपाटनी अमावस्या के नाम से जानते हैं। आज के दिन ब्राम्हाण जन कुशा को खेत से बाहर निकाल कर स्नान करते हैं जिसे कुशोदपाटनी अमावस्या कहते हैं।
इस पर्व को पिठोरी अमावस्या के नाम से भी जानते हैं लोग। कुछ जगहों पर पिठोरी की पूजा होती है तो पिठोरी अमावस्या के नाम से जानी जाती है। श्रद्ध की अमावस्या होने के कारण स्नान करना भगवान शिव की पूजा करना मंदिर जाना इत्यादि चीज होती है। लेकिन छत्तीसगढ़ में आज के दिन वृषभ यानी बैलों की पूजा होती है। 2 सितंबर को संपूर्ण दिवस पोला का पर्व मनाया जाएगा जो कि अगले दिन सुबह 5 बजकर 42 मिनिट तक अमावस्या तिथि रहेगा।
इस दिन होती है गाय और बैलों की होती है पूजा। गाय और बैलों को लक्ष्मी जी के रूप में देखा जाता है और इसे पूजनीय माना गया है। पोला पर्व में बैलों की विशेष रूप से पूजा आराधना की जाती है, जिनके पास बैल नहीं होते हैं वह र्मिीी के बैलों की पूजा आराधना करके चंदन टीका लगाकर उन्हें माला पहनाते हैं।
आईए जानते हैं कि आखिर पोला पर्व क्यों मनाया जाता है!
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान विष्णु से कृष्ण अवतार लेकर जन्माष्टमी के दिन जन्म लिया था। जब इसे बारे में कंस को पता चला, तो उसने कान्हा को मारने के लिए अनेकों असुर भेजे थे। इन्हीं असुरों में से एक था पोलासुर। राक्षस पोलासुर ने अपनी लीलाओं से कान्हा ने वध कर दिया था। कान्हा से भाद्रपद की अमावस्या तिथि के दिन पोला सुर का वध किया था। इसी कारण इस दिन पोला कहा जाने लगा। इसी कारण इस दिन बच्चों का दिन कहा जाता है।
पोला पर्व का भारतीय समाज पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। यह पर्व हमें प्रकृति और पशुओं के प्रति सम्मान करना सिखाता है। यह पर्व हमें एक-दूसरे से जुड़ने और मिलकर त्योहार मनाने का मौका देता है।
आज के आधुनिक युग में भी पोला पर्व का महत्व कम नहीं हुआ है। हालांकि, बदलते समय के साथ इस पर्व में कुछ बदलाव भी आए हैं। आजकल लोग पोला पर्व को अधिक धूमधाम से मनाते हैं और इसमें कई तरह के आधुनिक तत्वों को भी शामिल किया जाता है।
पोला पर्व भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। यह पर्व हमें प्रकृति और पशुओं के प्रति सम्मान करना सिखाता है। पोला पर्व को मनाने से हमें एक-दूसरे से जुड़ने और मिलकर त्योहार मनाने का मौका मिलता है। आइए हम सभी मिलकर इस पर्व को जीवंत रखें और इसे आने वाली पीढ़ियों को सौंपें।
अगर आप पोला पर्व मनाते हैं तो आप कमेंट बाक्स में जय भोलेनाथ लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)