कब है अरब सागर में समाहित होने वाली माता नर्मदा का अवतरण दिवस!
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भारत में नदियों को देवी और मां के रूप में माना जाता है और उनकी पूजा की जाती है। नदियों से लोगों की धार्मिक आस्थाएं जुड़ी हुई हैं। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार गंगा नदी को सबसे पवित्र नदी माना जाता है और उसे देवी गंगा कहा जाता हैं। देश में अधिकांश नदियों को महिला रूप में ही दर्शाया गया है। केवल ब्रम्हपुत्र नदी एकमात्र अपवाद है, जिसे पुरुष माना जाता है। भारत में लगभग 400 नदियों का जाल है, लेकिन उल्टी दिशा में बहने वाली नदी केवल एक है, वह है नर्मदा।
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी, माता नर्मदा जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः, जय नर्मदा मैया लिखना न भूलिए।
नर्मदा जयंती, माँ नर्मदा के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। इसे माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। माँ नर्मदा, जिन्हें रेवा के नाम से भी जाना जाता है, भारत की सात पवित्र नदियों में से एक हैं और इनका भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह जयंती न केवल नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक में, बल्कि इसके तट पर बसे सभी शहरों और गाँवों में भी बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है।
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जानकार विद्वानों का मानना है कि इसका मतलब यह है कि जहां एक ओर ज्यादातर नदियां पश्चिम दिशा से पूर्व दिशा की ओर बहती हैं और उनका समापन बंगाल की खाड़ी में होता है। वहीं, नर्मदा नदी पूर्व दिशा से पश्चिम की ओर जाती है और उसका मिलन अरब सागर से होता है। नर्मदा नदी को आकाश की बेटी और भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक माना जाता है। इस नदी के साथ प्रेम, विश्वासघात और अकेलेपन की कहानी जुड़ी हुई है। मां नर्मदा अविवाहित क्यों रहीं, इसके पीछे पौराणिक मान्यता है।
नर्मदा जयंति पर पूजन का शुभ महूर्त जानिए,
सप्तमी तिथि प्रारम्भ होगी 4 फरवरी 2025 को सुबह 4 बजकर 37 मिनिट से, एवं सप्तमी तिथि समाप्त होगी 5 फरवरी 2025 को मध्य रात्रि 2 बजकर 30 मिनिट पर,
पूजा का शुभ मुहूर्त जानिए
प्रातः सन्ध्या मुहूर्त रहेगा सुबह 5 बजकर 49 मिनिट से 7 बजकर 8 मिनिट तक, अभिजीत मुहूर्त रहेगा दोपहर 12 बजकर 13 मिनिट से 12 बजकर 57 मिनिट तक, अमृत काल रहेगा दोपहर 3 बजकर 3 मिनिट से 4 बजकर 34 मिनिट के बीच, एवं सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा सुबह 7 बजकर 8 मिनिट से रात्रि 9 बजकर 49 मिनिट तक।
पुण्य सलिला माता नर्मदा जी का महत्व जानिए,
नर्मदा नदी को मध्य प्रदेश की जीवन रेखा कहा जाता है। यह न केवल राज्य की कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर भी अतुलनीय है। नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक, मैकल पर्वत श्रृंखलाओं में स्थित है, जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ से निकलकर, नर्मदा नदी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों से बहती हुई अंततः खंभात की खाड़ी में जाकर अरब सागर में मिल जाती है।
नर्मदा नदी का पुराणों में भी विस्तृत वर्णन मिलता है। स्कंद पुराण, रेवा खंड, और मत्स्य पुराण जैसे ग्रंथों में नर्मदा की महिमा का बखान किया गया है। माना जाता है कि नर्मदा के तट पर स्नान करने और इसके जल का सेवन करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कई धार्मिक मान्यताएं और किंवदंतियाँ नर्मदा नदी के उद्गम और इसके महत्व से जुड़ी हुई हैं।
नर्मदा जयंती के उत्सव के बारे में जानिए,
नर्मदा जयंती के अवसर पर, नर्मदा के तट पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु अमरकंटक और अन्य तटवर्ती क्षेत्रों में एकत्रित होते हैं। नदी में स्नान करके, दीपदान किया जाता है और माँ नर्मदा की स्तुति में भजन गाए जाते हैं। इस दिन, नर्मदा के तट पर मेले लगते हैं, जिनमें स्थानीय संस्कृति और परंपराओं की झलक देखने को मिलती है।
अमरकंटक में नर्मदा जयंती का उत्सव विशेष रूप से भव्य होता है। यहाँ स्थित नर्मदा मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है और विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालु नर्मदा कुंड में स्नान करते हैं और माँ नर्मदा की प्रतिमा की पूजा करते हैं। इस अवसर पर, भंडारे का आयोजन किया जाता है, जिसमें सभी श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते हैं।
नर्मदा मैया के बारे में प्रचलित पौराणिक कथाएँ जानिए,
नर्मदा नदी के उद्गम और इसके महत्व के बारे में कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, नर्मदा को भगवान शिव की पुत्री माना जाता है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव ने अपनी जंघा से एक दिव्य कन्या को उत्पन्न किया, तो उन्होंने उसका नाम नर्मदा रखा। एक अन्य कथा के अनुसार, नर्मदा को भगवान विष्णु के पसीने से उत्पन्न माना जाता है।
एक अन्य प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक समय विंध्याचल पर्वत को अपनी ऊंचाई पर बहुत गर्व था। उसने सूर्य के मार्ग को भी अवरुद्ध करने का प्रयास किया। इससे देवताओं में भय व्याप्त हो गया। तब देवताओं ने नर्मदा से प्रार्थना की कि वह विंध्याचल के अहंकार को शांत करें। नर्मदा ने अपनी दिव्य शक्ति से विंध्याचल के गर्व को चूर कर दिया और देवताओं को भयमुक्त किया।
नर्मदा मैया को क्यों माना जाता है कुंवारी . . .
लोककथाओं के अनुसार एक सुंदर राजकुमार के रूप में पहचाने जाने वाले सोनभद्र से प्यार करती थीं। नर्मदा और सोनभद्र का सुंदर मिलन होना था, लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था। विवाह से पहले नर्मदा को पता चला कि सोनभद्र उनकी दासी जुहिला को पसंद करता है। दोनों प्रेमियों के दिल में गहरी दरार पैदा हो गई। दिल टूटने और धोखा खाने के बाद नर्मदा ने सोनभद्र से दूर अपने पूर्व मंगेतर के व्यक्तित्व के विपरीत पश्चिम की ओर बहने के लिए अपना रास्ता तय करने का फैसला किया। साथ ही नर्मदा ने कुंवारी रहने का फैसला किया। इसीलिए नर्मदा उल्टी दिशा में बहती है।
अब जानिए उल्टे बहने का वैज्ञानिक कारण क्या है,
वैज्ञानिकों का मानना है कि नर्मदा नदी के उल्टे बहने की वजह रिफ्ट वैली है। जिसका मतलब है कि नदी के प्रवाह के लिए जो उसका ढलान बनता है, उल्टी दिशा में है। जिस ओर नदी का ढलान होता है, उसी दिशा में नदी का प्रवाह होता है। नर्मदा मध्य प्रदेश और गुजरात की प्रमुख नदी है।
आखिर क्यों माना जाता है नर्मदा मैया को सबसे अनोखी नदी,
नर्मदा का उद्गम मध्य प्रदेश के अनूपपूर जिले के अमरकंटक पठार से होता है। इस नदी ने सदियों से सभ्यताओं का पोषण किया है और अनगिनत किवंदितियों को जन्म दिया है। यह नदी लाखों लोगों के दिलों में एक पवित्र स्थान रखती है। नर्मदा नदी का बेसिन लगभग 98,796 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करता है और मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तक फैला हुआ है। ताप्ती, माही, साबरमती, लूनी और कई छोटी नदियां भी पश्चिम की ओर बहती हैं। लेकिन नर्मदा अरब सागर में गिरने वाली एकमात्र प्रमुख नदी है।
क्या आपको पता है माता नर्मदा हैं, पांचवीं सबसे बड़ी नदी,
नर्मदा देश की पांचवीं सबसे बड़ी नदी है। यह एक हजार 77 किलोमीटर का कुल मार्ग तय करती है। इस नदी को कुछ स्थानों पर रीवा नदी भी कहा जाता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में शुमार होने वाला ओंकारेश्वर मंदिर भी नर्मदा नदी के तट पर बना हुआ है। प्रमुख नदियां जिन क्षेत्रों से होकर गुजरती हैं, वहां के भूगोल, अर्थव्यवस्था और संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यही भूमिका नर्मदा भी निभाती है।
जानिए नर्मदा परिक्रमा के बारे में,
माता नर्मदा जी की परिक्रमा का भी बहुत महत्व है। यह एक लंबी और कठिन यात्रा होती है, जिसमें श्रद्धालु नर्मदा नदी के तट के साथ-साथ पैदल चलते हैं। परिक्रमा कई महीनों तक चलती है और इसमें श्रद्धालु विभिन्न धार्मिक स्थलों के दर्शन करते हैं। नर्मदा परिक्रमा को अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है और इसे करने से सभी पापों का नाश होता है। माता नर्मदा की परिक्रमा बारहों महीने लगातार ही लोग करते दिख जाते हैं।
माता नर्मदा के संरक्षण के होने चाहिए उपाय,
आज के समय में, नर्मदा नदी के प्रदूषण और इसके घटते जल स्तर की समस्या एक गंभीर चिंता का विषय है। नर्मदा के तट पर स्थित कई औद्योगिक इकाइयों और शहरों के कारण नदी का जल प्रदूषित हो रहा है। इसके अलावा, नदी के किनारे अवैध खनन और वनों की कटाई के कारण भी नर्मदा के जल स्तर में कमी आ रही है।
नर्मदा जयंती के अवसर पर, हमें नर्मदा नदी के संरक्षण का संकल्प लेना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम नदी के जल को प्रदूषित न करें और इसके तट पर किसी भी प्रकार का अतिक्रमण न करें। हमें वनों की कटाई को रोकने और अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए, ताकि नर्मदा के जल स्तर को बढ़ाया जा सके।
नर्मदा जयंती एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहार है। यह हमें माँ नर्मदा की महिमा और इसके महत्व का स्मरण कराता है। इस अवसर पर, हमें न केवल धार्मिक अनुष्ठान करने चाहिए, बल्कि नर्मदा नदी के संरक्षण का भी संकल्प लेना चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि नर्मदा नदी हमारी जीवन रेखा है और इसका संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है। यदि हम नर्मदा को स्वच्छ और स्वस्थ रखने में सफल होते हैं, तो यह न केवल मध्य प्रदेश के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी। नर्मदा जयंती हमें प्रकृति के प्रति अपनी श्रद्धा और समर्पण को व्यक्त करने का एक अवसर प्रदान करती है। यह हमें यह भी याद दिलाती है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और इसे संरक्षित करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। हरि ओम,
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी, माता नर्मदा जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः, जय नर्मदा मैया लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)

हर्ष वर्धन वर्मा का नाम टीकमगढ़ जिले में जाना पहचाना है. पत्रकारिता के क्षेत्र में लंबे समय तक सक्रिय रहने के बाद एक बार फिर पत्रकारिता में सक्रियता बना रहे हैं हर्ष वर्धन वर्मा . . .
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