करोड़ों शालेय विद्यार्थी पुस्तकालयीन सेवा-सुविधाओं के अधिकार से वंचित

(डॉ. प्रितम भी. गेडाम)

(राष्ट्रीय पुस्तकालय सप्ताह विशेष 14 -20 नवंबर 2024)

जीवन में शिक्षा का स्थान अमूल्य है और शिक्षा में पुस्तकालय का स्थान अतुलनीय है। शिक्षा मनुष्य को जीवन में विश्व के हर क्षेत्र में उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए बेहतर अवसर प्रदान करके प्रगतिपथ पर अग्रसर होने के लिए प्रोत्साहित करती है, शिक्षा रूपी प्रकाश मनुष्य के जीवन का अंधकार खत्म करने के लिए है। शिक्षा का आधार पुस्तक होती है और बेहतर पुस्तक का संग्रह पुस्तकालय कहलाते हैं। शाला, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय के ज्ञान स्त्रोत केंद्र अर्थात पुस्तकालय शिक्षा के मूल उद्देश्य को पूर्ण रूप से साकार करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। पुस्तकालय के बिना शिक्षा केन्द्र अधूरा है। आज हम आधुनिक युग में उन्नत शिक्षा संस्थानों को देखते हैं, पुस्तकों का स्वरूप भी अब डिजिटल और वर्चुअल हो चुका है, दुनिया भर का ज्ञान, अद्ययावत सुचना, पुस्तके, कागजात इंटरनेट के एक क्लिक पर हमें घर बैठे तुरंत प्राप्त होते है। शिक्षा के साथ-साथ हर क्षेत्र, सरकारी विभाग, निजी संस्थान, समाज में भी पुस्तकालय का विशेष स्थान है। सार्वजनिक पुस्तकालय, शैक्षणिक पुस्तकालय, सरकारी विभाग पुस्तकालय, विशिष्ट विषय संबद्ध पुस्तकालय, निजी पुस्तकालय ऐसे हमें पुस्तकालय के विविध रूप अंतरराष्ट्रीय से स्थानीय स्तर तक देखने मिलते हैं।

मनुष्य के जीवन की प्राथमिक स्तर की शिक्षा विद्यालय की होती है, जहां जीवन विकास की नींव, नैतिकता, सभ्यता-संस्कार, ज्ञान का बीज बोया जाता है ताकि बड़ा होकर यह हरा-भरा, फलदार वृक्ष की भांति विकसित होकर देश की उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें। जिस प्रकार कुम्हार गिली मिट्टी को विशिष्ट रूप देकर उसका आकार बदलकर मूल्यवान बनाता है, उसी प्रकार शालेय शिक्षा विद्यार्थी जीवन में विविध विषयों के ज्ञान के साथ-साथ अच्छी बातें, ईमानदारी, बेहतर इंसान और सुजान नागरिक बनने में, कलागुणों को निखारने का अवसर देती है। शालेय बच्चे बड़े तेजी से विविध विषयों के ज्ञान को आत्मसात करते हैं, जल्दी नई बातें सीख जाते हैं। ऐसे शैक्षिक वातावरण में शिक्षा की ज्ञान रूपी आत्मा अर्थात पुस्तकालय सबसे बड़ी जिम्मेदारी निभाते है। विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए विकसित पुस्तकालय बेहद आवश्यक है।

हम सभी शिक्षा के महत्व को अच्छे से जानते है, भारत सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय प्रशासन भी शिक्षा में लगातार सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहकर नई उपलब्धियां हासिल कर रही हैं। शिक्षा समृद्धि के लिए नित नए कार्यक्रम किये जाते है। समग्र शिक्षा अभियान जैसे अनेक प्रेरणात्मक अभियान चलाए जा रहे है। केंद्रीय विद्यालय संगठन, जवाहर नवोदय विद्यालय, सैनिक स्कूल, स्कूल ऑफ स्पेशलाइज्ड एक्सलन्स जैसे सरकारी शालाये देश में गुणवत्तापूर्ण शिक्षाप्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, इसी प्रकार निजी शिक्षण संस्थानों में भी कुछ स्कूल राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानकों का पालन करके बेहतर प्रदर्शन करते है। यहां उच्च शिक्षित कर्मचारी वर्ग, नियमित पद भर्ती और शालेय सेवा-सुविधाओं का ध्यान रखा जाता है, पुस्तकालयों के विकास पर भी विशेष नीति-नियमों का कड़ाई से पालन किया जाता है, निश्चित ही ऐसे स्कूलों से प्रतिभावान विद्यार्थी निकलते है, जो आगे जाकर अपना, स्कूल और देश का नाम रोशन करते है। लेकिन देश में ऐसे शालाओं की संख्या बहुत कम है।

देश के बहुत से राज्यों में शिक्षा व्यवस्था में बहुत बड़ी समस्याएं है, जो विकास में रोड़े के रूप में है। आज भी बहुत से शालाओं में आधारभूत सुविधाएं नहीं है। बिजली, शुद्ध पानी, खेल का मैदान, खेल सामग्री, प्रयोगशाला, कंप्यूटर लैब और संपन्न पुस्तकालय का अभाव नजर आता है। कही पद रिक्त पड़े है, कई पदों पर बरसो से भर्ती नहीं, कई पुस्तकालय सामग्री के लिए निधि नहीं तो कही फर्नीचर नहीं, तो कही शालाओं की खंडहरनुमा बदरंग स्कूल भवन और अद्यावत तकनिकी ज्ञान कौशल से अनभिज्ञ कर्मचारी नजर आते है। बड़े शहरों और महानगरों में हालात फिर भी थोड़े ठीक है, पर ग्रामीण क्षेत्रों और दूरदराज के पिछड़े इलाकों में शालेय शिक्षा व्यवस्था और आधारभूत सुविधाओं का अकाल नजर आता है।

महाराष्ट्र राज्य सरकार की शालेय शिक्षण विभाग के पोर्टल से प्राप्त जानकारी अनुसार, राज्य के 111879 शालाओं में 20989572 विद्यार्थी अभी पढ़ रहे है। इनमें निजी स्कूल 67842 और निजी अनुदानित (सहायता प्राप्त) शाला 44037 है। इन दोनों प्रकार के स्कूल में कुल 686495 कर्मचारी है, उसमे से टीचिंग 613181 और नॉन टीचिंग कर्मचारी 73314 हैं। महाराष्ट्र सरकार के इसी शालेय शिक्षा और खेल विभाग मंत्रालय का जी.आर. जो 28 जनवरी 2019 को प्रसिद्ध किया गया था, उसमें साफ शब्दों में बताया गया था कि निजी अनुदानित अर्थात सहायता प्राप्त स्कूल में कुल कार्यरत 1600 अंशकालिक लाइब्रेरियन के सेवानिवृत्ति के बाद यह पद समाप्त किये जायेंगे। निजी अनुदानित (सहायता प्राप्त) कुल 44037 शालाओं में से पूर्णकालिक लाइब्रेरियन के केवल 2118 पद ही मंजूर किये गए है, अर्थात दोनों मिलाकर 3718 शालाओं में ही पुस्तकालय कर्मचारी कार्यरत है, यह जीआर के तारीख से लेकर अब तक बहुत से कर्मचारी भी सेवानिवृत्त हुए ही होंगे, तो यह संख्या उससे भी कम हो जाती है। इस हिसाब से महाराष्ट्र राज्य सरकार के 44037 में से निजी अनुदानित स्कूलों के 40319 में पुस्तकालय कर्मचारी कार्यरत नहीं है, या फिर कह सकते है कि पुस्तकालय सेवा-सुविधा ही नहीं है। महाराष्ट्र सरकार ने 1001 से अधिक विद्यार्थी वाले उच्च विद्यालय में ही पुस्तकालयाध्यक्ष पद का नियम बनाया है। बड़े दुर्भाग्य की बात है कि सरकार हर महीने इन शालेय शिक्षकों के तनख्वाह पर तो अरबों रुपया खर्च करती है, लेकिन पुस्तकालय के विकास के बारे में नजरअंदाजी करोड़ों विद्यार्थियों के शैक्षिक जीवन को बुनियादी सेवा सुविधाओं से वंचित कर देती है।

महाराष्ट्र राज्य के बहुत कम स्कूलों में पुस्तकालयाध्यक्ष हैं। मैंने बरसों से महाराष्ट्र राज्य के सरकारी अनुदानित शालाओं के पुस्तकालय हेतु पद भर्ती नहीं देखी है। यह भी स्पष्ट है कि संबंधित विभाग, प्रशासन, सरकारी अधिकारी स्कूलों में पुस्तकालयाध्यक्षों की नियुक्ति में उदासीन हैं। विभिन्न समितियों और आयोगों की रिपोर्टों, सरकारी निर्णयों आदि के बावजूद आश्चर्य की बात है कि महाराष्ट्र सरकार के पास सरकारी स्कूलों में लाइब्रेरियन नियुक्त करने की कोई नीति नहीं है। पुस्तकालयाध्यक्षों के बगैर आज के शालेय विद्यार्थी अर्थात कल के भावी नागरिकों का भविष्य अंधकार में रहेगा। ऐसी दुखद स्थिति जहां एक लाइब्रेरियन की नियुक्ति केवल उच्च विद्यालयों से जुड़े स्कूलों में ही की जा सकती है, यह दर्शाता है कि सरकार प्राथमिक विद्यालयों में लाइब्रेरियन के साथ पुस्तकालय सुविधाएं प्रदान करने में उपेक्षा कर रही है। और उन विद्यार्थियों का आने वाला कल अर्थात देश का भविष्य डगमगाता नजर आता है। विद्यार्थियों को स्कूल के प्रथम कक्षा से ही पुस्तकालय सेवा सुविधा मिलनी चाहिए। यह बात हुई देश के एक राज्य के सरकारी सहायता प्राप्त शालाओं की, अगर सभी राज्यों की स्थिति देखे तो बुनियादी सुविधाओं से वंचित विद्यार्थियों की संख्या भयावह रह सकती है। ऐसी परिस्थिति में देश की शिक्षा प्रणाली कैसे मजबूत होगी और विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास किस बलबूते पर साकार होगा।

स्कूल लाइब्रेरी मेनिफेस्टो के अनुसार, हर स्कूल में पूर्णकालिक योग्य लाइब्रेरियन होना चाहिए। स्कूल पुस्तकालय विकास योजना और व्यवस्थापन महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। लाइब्रेरियन की सहायता के लिए पर्याप्त सहायक कर्मचारी नियुक्त किए जाने चाहिए। आम धारणा यह भी है कि भारत में अधिकांश स्कूल पुस्तकालय योग्य पुस्तकालयाध्यक्षों द्वारा नहीं चलाए जाते हैं। जब इन सभी पुस्तकालयों को प्रशिक्षित, कुशल, योग्य पुस्तकालयाध्यक्षों द्वारा संचालित किया जाएगा, तो पुस्तकालयाध्यक्षता का विस्तार, आकार और विद्यालय की स्थिति बदल जाएगी। एक प्रतिबद्ध केंद्र व राज्य सरकार, मजबूत स्कूल लाइब्रेरी एसोसिएशन, स्कूल पुस्तकालयों पर एक राष्ट्रीय नीति, एलआईएस पाठ्यक्रम में स्कूल पुस्तकालयाध्यक्ष को शामिल करना और स्कूल पुस्तकालयों पर एक मजबूत राष्ट्रीय मिशन बनाना चाहिए। देश में ऐसे शालाओं में पुस्तकालय की वास्तविक समस्या और हल क्या हो सकता है हम सभी जानते है। समग्र शिक्षा अभियान की सफलता और सभी शालेय विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए केंद्रीय विद्यालय संगठन के समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, पदभरती पर अमल करना अत्यावश्यक हैं। प्रत्येक शालेय विद्यार्थी को उसकी बुनियादी सुविधाएं पाना अधिकार है।

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