क्या है पूर्ण, अर्ध व महाकुंभ में अंतर . . .

अगले साल की शुरुआत में लगने वाले प्रयागराज कुंभ मेले की तैयारियां जोरों पर हैं। यह महाकुंभ न केवल भारत बल्कि विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है।

कुंभ मेला हर 12 साल में चार पवित्र नदियों – गंगा, यमुना, सरस्वती का संगम प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित किया जाता है।

कुंभ, अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ में क्या अंतर है?

आइए जानते हैं इन सभी के बीच का अंतर:

प्रकारआवृत्तिस्थानखगोलीय स्थितिविशेषता
कुंभ मेलाहर 12 सालचारों पवित्र स्थलसूर्य, चंद्रमा और गुरु विशेष स्थिति मेंसभी चारों स्थलों पर आयोजित
अर्धकुंभ मेलाहर 6 सालहरिद्वार और प्रयागराजकुंभ और पूर्णकुंभ के बीचकुंभ चक्र का मध्य चरण
पूर्णकुंभ मेलाहर 12 सालकेवल प्रयागराजविशेष खगोलीय स्थितिकुंभ मेले का उच्चतम धार्मिक स्तर
महाकुंभ मेलाहर 144 सालकेवल प्रयागराजविशेष खगोलीय स्थितिसबसे भव्य और दुर्लभ

महाकुंभ का स्थान कैसे तय होता है?

महाकुंभ का आयोजन स्थल ग्रहों की स्थिति, विशेषकर गुरु (बृहस्पति) और सूर्य की स्थिति के आधार पर निर्धारित होता है।

हरिद्वार: जब गुरु कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं।

उज्जैन: जब सूर्य मेष राशि में और गुरु सिंह राशि में होते हैं।

नासिक: जब गुरु और सूर्य दोनों सिंह राशि में होते हैं।

प्रयागराज: जब गुरु वृषभ राशि में और शनि मकर राशि में होते हैं।

2025 का महाकुंभ क्यों खास है?

2025 का महाकुंभ प्रयागराज में 12 साल बाद आयोजित हो रहा है।

यह सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि लाखों लोगों के लिए आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और खगोलीय महत्व रखता है। इस आयोजन में शामिल होकर भक्त न केवल अपने पापों का क्षय मानते हैं, बल्कि मोक्ष की ओर अग्रसर होने का अनुभव भी करते हैं।

कुंभ मेले का महत्व

कुंभ मेला भारतीय संस्कृति और परंपराओं का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। यह सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि खगोलीय घटनाओं से जुड़ी एक विशेष परंपरा है। कुंभ मेले के अवसर पर देश-विदेश से अनेक श्रद्धालु, साधु-संत यहां पहुंचते हैं।

मान्यता है कि इस समय इन स्थानों की नदियों का जल बेहद पवित्र माना जाता है।

(साई फीचर्स)

 

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