उन चिकित्सकों से मुझे शिकायत है जिनके द्वारा मरीजों को अनावश्यक रूप से महंगी-महंगी दवाएं लिखी जा रही हैं। इसके चलते साधारण से साधाराण रोग में भी मरीजों की जेबें ढीली हो रही हैं।
सिवनी में कमीशनखोरी का खेल इतना बढ़ गया है कि भगवान का दर्जा दिये जाने वाले चिकित्सक अपने मरीजों को दवा के नाम पर महंगी-महंगी दवाएं लिख रहे हैं। ऐसे चिकित्सकों का कहर सबसे ज्यादा गरीब लोगों पर बरपता दिख रहा है। शायद यही कारण भी है कि गरीब वर्ग के लोग महंगी दवाओं से बचने के फेर में नीम हकीमों का सहारा लेते हैं जो अपेक्षाकृत कम खर्चे में मरीज का उपचार कर देते हैं।
सिवनी में नामी-गिरामी चिकित्सक चाहें तो जेनेरिक दवाएं लिख सकते हैं लेकिन दवा कंपनियों से चिकित्सकों को मिलने वाला कमीशन इसके चलते मार खाता है। शायद यही कारण है कि चिकित्सक जितनी महंगी दवाएं लिख सकते हैं, उसमें वे कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।
देखा जाये तो एक फॉर्मूले की दवा का एक पत्ता जहाँ 10 रूपये में उपलब्ध हो सकता है, उसी फॉर्मूले की दवा जब चिकित्सक के द्वारा महंगी कंपनी की लिख जाती है तो मरीज को वहीं दवा 10 रूपये के स्थान पर 180 रूपये तक में खरीदना पड़ती है जबकि यह दवा भी उतना ही असर करती है जितना 10 रूपये वाली दवा कर सकती है। यहाँ बात कंपनी को मुनाफा पहुँचाने की आ जाती है जिसके कारण सिवनी के अधिकांश चिकित्सकों के द्वारा अपने मरीज को होने वाली आर्थिक परेशानी को नजर अंदाज कर दिया जाता है।
सिवनी में चिकित्सकों की छवि ही इस तरह की बन गयी है कि उनसे अब सस्ती दवाएं लिखे जाने की उम्मीद लोगों को नहीं रह गयी है। कई संपन्न लोग ऐसे चिकित्सकों के पास जाने की बजाय नागपुर या जबलपुर की ओर रूख कर लेते हैं क्योंकि उनके द्वारा ऐसा किया जाना लोकल इलाज से सस्ता ही पड़ता है।
यहाँ परेशानी कम संपन्न लोगों को उठाना पड़ती है जिनके पास इस बात की जानकारी ही नहीं रहती है कि नागपुर जाकर उन्हें किस चिकित्सक से उपचार करवाना अच्छा रहेगा। सिर्फ इसी बात का फायदा अधिकांश स्थानीय चिकित्सक उठाते हैं और वे मरीजों को लूटने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते हैं। जिला चिकित्सालय में दवाएं तो लिख दी जाती हैं लेकिन स्टोर में उपलब्ध न होने के कारण मरीजों को उसके विकल्प के लिये बाहरी दुकानों की ओर रूख करना पड़ता है। ऐसे में कई मेडिकल स्टोर वाले जानते – बूझते महंगी दवा विकल्प के तौर पर थमा देते हैं।
सिवनी के ऐसे चिकित्सक जिन्होंने चिकित्सा के व्यवसाय को समाज सेवा नहीं अपितु धंधे के लिये अपनाया हुआ है उनसे अपेक्षा है कि वे गरीब मरीजों की आर्थिक परिस्थिति को देखते हुए उनका उपचार करें जिससे लोगों को राहत मिल सके।
परमेश्वर चौधरी