भीषण बारिश का दौर थमने के बाद अब मौसम खुलने लगा है। आसमान पर से बादल गायब हो रहे हैं तो सिवनी की सड़कें धूल से सराबोर होने लगी हैं। यह धूल कहीं बाहर से नहीं आयी है बल्कि उसका कारण कृत्रिम रूप से यहाँ के जन प्रतिनिधियों और बाहर से आने वाले अधिकारियों ने बनाकर रख दिया है।
सिवनी में हाल ही में पाईप लाईन के लिये नालीनुमा गड्ढे खोदे गये और फिर उन्हें बेतरतीब तरीकों से पूर दिया गया, जो धूल का सबसे बड़ा कारण बन रहे हैं। कुछ स्थानों पर ठेकेदार के द्वारा थिगड़े अवश्य लगा दिये गये हैं लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि कुछ लोग इन थिगड़ों से ही खुश होकर बैठ गये हैं। नगर पालिका के इस ठेकेदार के द्वारा सीमेन्टेड सड़कों को तक खोद दिया गया लेकिन अधिकारी और जन प्रतिनिधि चुप ही बैठे रहे, यहाँ तक कि खबर ये भी है कि उक्त ठेकेदार को भुगतान किये जाने में कोई कमी भी नहीं छोड़ी जा रही है।
निश्चित रूप से सिवनी आने वाले अधिकारी भविष्य में अन्यत्र चले जायेंगे इसलिये उन्हें शायद ही इस बात से कोई सरोकार होगा कि अनाप-शनाप निर्माण कार्यों के चलते बाद में सिवनी का क्या होगा। यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि सिवनी के जन प्रतिनिधि क्यों शांत बैठे हैं जिन्हें तो शायद सिवनी में ही रहना है। सिवनी के प्रत्येक मोहल्लों में ऐसे नेता भी हैं जिन्हें उनके संगठन में विभिन्न पद भी प्राप्त हैं लेकिन वे भी इस दिशा में कोई आपत्ति करते नज़र नहीं आ रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे उनके क्षेत्र में ठेकेदार ने नियमानुसार ही काम कराया हो जबकि वास्तविकता यही है कि ठेकेदार ने सिवनी को खोदकर रख दिया है। उसके द्वारा बाद में पुराई अवश्य करायी गयी है लेकिन वह कतई संतोष जनक नहीं मानी जा सकती है।
सिवनी में जहाँ-तहाँ सड़कों का सीमेन्टीकरण कर दिया गया है लेकिन उन क्षेत्रों में भी धूल, लोगों का पीछा नहीं छोड़ रही है। इसका कारण यही है कि वहाँ सीमेन्टेड सड़कों के किनारे तक ठेकेदार के द्वारा खुदवा दिये गये लेकिन बाद में वहाँ उसे पूर्ववत स्थिति में नहीं लाया गया। बड़े नेता हो सकता है प्रदेश की राजनीति में रूचि रख रहे हों और उन्हें सिवनी से कोई सरोकार न हो लेकिन छुटभैये नेता आखिर क्या कर रहे हैं? सिवनी में कहीं से ठेकेदार की कार्यप्रणाली के विरोध में कोई स्वर न उठने को क्या कहा जायेगा। सिवनी की भोली-भाली जनता का यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि यहाँ के नेताओं को जनता की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है।
देखने वाली बात यह भी है कि सिवनी के नेता बाहर के बड़े नेताओं को गरियाने में कोई चूक नहीं करते हैं लेकिन यहाँ के स्थानीय नेता तो जैसे स्वयं ही सिवनी का बेड़ागर्क करने पर तुले हुए दिखायी देते हैं। सिवनी में स्थिति यह है कि कौन पक्ष में है और कौन विपक्ष में, यह किसी के समझ में ही नहीं आता है। ज्वलंत मुद्दों पर सभी नेता शांत बैठे नज़र आते हैं। एक कहावत सुनी थी कि सभी नेता एक थैली के चट्टे-बट्टे….. और यह बात सिवनी के नेताओं पर शायद खरी ही उतरती है।
बलराम बल्लू सिंह