11 अक्टूबर लोक नायक जय प्रकाश नारायण जयंति पर विशेष
(मो. याहया आरिफ कुरैशी, अधिक्वता)
11 अक्टूबर 1902 में जय प्रकाश नारायण का जन्म सिताब दियारा नामक एक छोटे से कस्बे में हुआ। उनके जीवन की एक ही साधना थी , वे दुनिया के सभी मनुष्यों की हर तरह की गुलामी, शोषण और अभावों से मुक्ति चाहते थे। छात्रा जीवन में वे देश की गुलामी से संतप्त होकर स्वतंत्राता संग्राम में जुड़े। सन् 1942 की अगस्त क्रांति के समय वे हजारी बाग जेल से भाग खड़े हुए और अपनी अनूठी दक्षता से भूमिगत रहकर ‘‘भारत छोड़ों आंदोलन‘‘ को उन्होंने बेहतर आयाम दिया।
लेकनायक जयप्रकाश का आज़ाद भारत का अपना एक अलग सपना था, वे समाज की विषमताओं, विंडबनाओं और कुरीतियों के उन्मूलन के लिये ‘‘सत्ता‘‘ को एकमात्रा साधन नहीं मानते थे, इसीलिए उन्होंने अपने आप को सदैव सत्ता से दूर रखा और राजनैतिक स्वतंत्राता के बाद महात्मा गांधी के ‘‘सर्वोदय मिशन‘‘ और बिनोबा जी के भूदान आंदोलन में अपने आप को समर्पित किया। वास्तव में जे.पी. समता, समानता और भ्रातत्व की भावना की के आधार पर एक नये समाज की रचना चाहते थे ताकि एक नये मनुष्य का निर्माण हो सके।
जिस तेजी से आजाद भारत के 2-3 दशक बीत जाने पर भ्रष्टाचार, भुखमरी, गरीबी, उत्पीड़न ने देश की तस्वीर बिगाड़ी, राजनैतिक सत्ता दिशा विहीन हो गयी, तब जे.पी. अपने आपको रोक नहीं सके और उन्होंने ‘‘डेमोक्रेसी फार यूथ‘‘ (युवकों के लिए लोकतंत्रा) नाम से अपील प्रसारित कर देश की तरूणाई को आव्हान कर उन्हें उनकी शक्ति का एहसास दिलाया, फलतः 1973 में गुजरात और बिहार में छात्रा-नौजवानों का आंदोलन प्रस्फुटित हुआ। आंदोलन की यह चिनगारी जे.पी. के नेतृत्व में कुछ इस तरह भड़की की कि देखते ही देखते पूरे देश में दावानल में तब्दील हो गई और जेपी ने इसे ‘‘सम्पूर्ण क्रांति‘‘ का नारा दिया।
क्रांति शब्द तो परिवर्तन और नवनिर्माण का प्रतीक है, जे.पी. की सम्पूर्ण या समग्र क्रांति का नारा आम जन के लिए है, वे इस क्रांति का मोर्चा हर स्तर पर अर्थात हर शहर, कस्बे, चौक, चौपाल, कार्यालय, विद्यालय और परिवार में चाहते थे और इस क्रांति के माध्यम से सरकार, समाज, शिक्षा, चुनाव, बाजार, विकास की योजनाओं में परिवर्तन चाहते थे। इसके माध्यम से खुदगरजी के स्थान पर पारस्परित सहयोग स्थापित करना चाहते थे, उन्होंने लोकशक्ति को सामाजिक परिवर्तन का साधन बनाया था। जेपी क्रांति के माध्यम से समाज के अंतिम छोर में खड़े व्यक्ति का विकास चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने नया शब्द खोजा था- ‘‘अन्त्योदय‘‘ अर्थात जो सबसे गरीब, असहाय है, इसकी चिंता पहले की जाये और उसका उदय पहले हो ताकि वह भी अपनी पीठ सीधी कर सके, अपने अधिकारों की मांग कर सके, उसके लिए लड़ सके।
वर्ष 1977 के इस छात्रा आंदोलन का नेतृत्व लोकनायक जयप्रकाश ने संभाला और यह एक व्यवस्था परिवर्तन के राष्ट्रीय आंदोलन में परिवर्तित हुआ। उसी दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्राी श्रीमति इंदिरा गांधी के निर्वाचन को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अवैध घोषित कर उन्हें 6 वर्षो तक के लिये चुनाव लड़े के लिए अयोग्य भी घोषित कर दिया था, जिससे दमनकारी सत्ता शक्ति के विरूद्ध जनमानस तैयार हुआ और श्रीमति गांधी से तत्काल पद छोड़ने की मांग समूचे देश में गूंजने लगी। जय प्रकाश बाबू ने 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में एतिहासिक जन सैलाब के माध्यम से तानाशाह शक्ति को ललकारा, जिसके प्रतिवाद में रातोंरात देश में आपातकाल घोषित कर दिया गया, जो हमारे गौरवशाली जनतंत्रा के इतिहास में ‘‘काले अध्याय‘‘ के रूप में जाना जाता है। आंतरिक सुरक्षा कानून (मीसा) की ज़द में आंदोलनकारियों को जेलों में डालकर उनका उत्पीड़न किया गया। सन् 1977 के लोकसभा चुनाव में संघर्ष के परिणाम सामने आए। यह एक ऐसा चुनाव था जिसमें जनता आगे थी, नेता पीछे। समूचा विश्व जे.पी. के करिश्माई नेतृत्व में इस शांतिपूर्ण, अहिंसक आंदोलन और उसके परिणाम देखकर स्तब्ध हो गया, जिसमें छात्रा, नौजवानों की एकता और प्रौढ़ मतदाताओं का निर्णायक प्रभाव था। एक दुर्भाग्यजनक पहलू यह रहा कि जे.पी. के इस आंदोलन के गर्भ से निकले छात्रा नेता राजनीति की चकाचौंध और सत्ता लोलुपता में इस तरह डूबे कि उन्होंने नैतिक मूल्यों, आदर्शों को तिलांजलि देकर सम्पूर्ण क्रांति को ही विस्मृत कर दिया और उसकी भ्रूण हत्या कर दी।
मौजूदा परिस्थितियों में देश पिछले दशकों की तुलना में और अधिक बदहाली का शिकार हुआ है। आज देश का संसदीय जनतंत्रा अपराधी, औद्योगिक घरानों और राजनेताओं के ताने बाने में टिका है, हमारे बहुदलीय तंत्रा में राजनैतिक दल वैचारिक विभेद की रेखाओं को मिटाकर स्वार्थपरक हो गये हैं। कोई संसद सदस्य अपने चुनाव खर्चो का सही हिसाब देने को तैयार नहीं है। देश के प्रधानमंत्राी अपने दायित्व से विमुख हो रहे हैं, सत्ता के विकेन्द्रीकरण के साथ भ्रष्टाचार का विकेन्द्रीकरण ग्राम पंचायतों के स्तर पर व्याप्त है, आर्थिक उदारवाद और वैश्विक अर्थव्यवस्था के मौजूदा दौर में गांव और ग्रामीण अर्थव्यवस्था देश की मुख्यधारा से कहीं कटते चले जा रही है। ग्रामीणजन की कृषि भूमि, औद्योगिकरण के नाम पर अधिग्रहण के मुद्दे ने राजसत्ता की ग्राम स्वराज्य की नियत पर सवालिया निशान लगा दिया है। इस प्रकार मूलरूप से सत्ता और समाज में नैतिक मूल्यों और दायित्वों का ह्नास हुआ है। आज आवश्यकता है सामाजिक परिवर्तन के संघर्ष की, जैसे जे.पी. की समग्र/सम्पूर्ण क्रांति की वैचारिक शक्ति के साथ लोकशक्ति के माध्यम से किया जा सकता है। देश को युवा शक्ति से अपेक्षाएं हैं, युवा शक्ति ही इस क्रांति को देश के हर कोने, कस्बे तक नई ऊर्जा से पहुंचा सकती है। जे.पी. ने स्वंय कहा- ‘‘………क्रांति आरोहरण की एक प्रक्रिया होगी। इस कठिन चढ़ाई में तरूणों को ही आगे आना होगा‘‘
बस स्टेण्ड सिवनी, जिला सिवनी (म.प्र.)
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(साई फीचर्स)