(ऋतुपर्ण दवे)
यूं तो मौत का मुकर्रर वक्त किसी को पता नहीं होता. लेकिन कैसे मान लें उन्हें पता नहीं था! भले ही दुनिया कहे कि सुषमा स्वराज का एकाएक चले जाना भौंचक्का करने वाला है पर इस सच्चाई का जवाब भी तो किसी के पास नहीं है कि उन्हें कैसे सब कुछ पता था!
मौत की दस्तक से लगभग डेढ़ घण्टे पहले शाम 7 बजकर 23 मिनट पर किए उनके प्रधानमंत्री को भेजे आखिरी ट्वीट के एक-एक शब्द बहुत कुछ कहते हैं और पूर्वाभास का अहसास भी कराते हैं. यकीनन उनके आखिरी शब्द यादगार रहेंगे जो उनकी बेमिशाल देश भक्ति की बानगी और जिन्दा दिली के साथ कर्तव्यों का भी बोध कराते हैं- प्रधानमंत्री जी आपका हार्दिक अभिनन्दन. मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी. अब यह सवाल ही रह जाएगा कि ऐसा उन्होंने क्यों लिखा. क्या बीमारी से जूझते हुए भी कश्मीर की असली आजादी देखने की मोहलत मांग रहीं थीं? अब तो सिर्फ बातें हैं.
विलक्षण प्रतिभाओं से भरी वह सहज इंसान जो रिश्तों की कद्रदान थी, जिसे ओहदे का गुमान नहीं, मदद के लिए दोस्त और दुश्मन तक में फर्क न करने वाली दिल्ली की पहली मुख्यमंत्री और कई केन्द्रीय मंत्रालयों को सम्हाल चुकी पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुषमा स्वराज का उतनी ही सहजता से चले जाना हर किसी को झकझोर गया.
विदेश मंत्री के रूप में जीवन के बेमिशाल आखिरी 5 साल बेहद यादगार रहेंगे. एक ट्वीट पर हर किसी की मदद कर गजब की मिशाल कायम की. आखिरी समय तक सोशल मीडिया खासकर ट्वीटर पर आम और खास सभी से सीधे जुड़ी रहीं. मदद के इस हुनर ने हर किसी को उनका कायल बना दिया. एक ट्वीट और सरहद पार फंसे देशवासियों तक मदद पहुंचाना. चाहे सऊदी अरब का यमन पर हमला हो जिसमें 4 हजार से ज्यादा भारतीयों सहित 41 देशों के साढ़े 5 हजार से ऊपर नागरिकों की सुरक्षित वापसी हो या पाकिस्तान में फंसी गूंगी-बहरी गीता को सुरक्षित लाना हो या फिर जरूरतमंद पाकिस्तानियों को तुरंत मेडिकल वीजा दिलाकर यहां इलाज मुहैया कराना हो. वो काम हैं जिसके लिए सुषमा स्वराज हमेशा याद रहेंगी. इसी कारण पाकिस्तानी भी उन्हें हिन्दुस्तान में अपनी दूसरी माँ कहते रहे.
सुषमा स्वराज सक्रिय राजनीति के 41 वर्षों में 3 बार विधानसभा 4 बार लोकसभा और 3 बार राज्य सभा सदस्य के रूप में चुनीं गईं. देश की पहली पूर्णकालिक महिला विदेश मंत्री के अलावा स्वास्थ्य मंत्री, सूचना प्रसारण मंत्री, संसदीय कार्य मंत्री, दूरसंचार मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार सहित लोकसभा में विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी भी बखूबी संभाली. किसी भी राष्ट्रीय राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता का रिकार्ड भी सुषमा स्वराज के ही नाम है.
छात्र राजनीति में 1977 में आईं सुषमा स्वराज 1975 की इमरजेंसी में काफी सक्रिय थीं और जयप्रकाश नारायण से प्रभावित थीं. इंदिरा गांधी के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन किए. इन्हीं सब काबिलियत से राजनीति के पायदान बहुत तेजी से चढ़ती चली गईं. उनके राजनीतिक कौशल का नतीजा था कि केवल 25 साल की उम्र में 1977 में हरियाणा के अम्बाला छावनी विधानसभा से विधायक बनते ही चौधरी देवीलाल सरकार में 1979 तक श्रम मन्त्री बनकर देश में सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री बनीं तथा 1979 में 27 साल की उम्र में मिली हरियाणा राज्य जनता पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी बखूबी निभाई.
उन्होंने मप्र सहित 6 राज्यों में सक्रिय चुनावी राजनीति की. हरियाणा, दिल्ली के अलावा सन् 2000 में उप्र से राज्यसभा सदस्य बनीं बाद में विभाजन से बने उत्तराखंड में भी वहां के राज्यसभा सदस्य के नाते सक्रिय रहीं. जबकि कर्नाटक में 1999 में सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा और केवल 7 प्रतिशत वोटों से हारीं. सुषमा स्वराज ने मध्यप्रदेश को 11 साल दिए. विदिशा लोकसभा से दो बार 2004 और 2009 में सांसद बनीं. यहां उनकी याददाश्त की सभी दाद देते हैं. जब पहला चुनाव लड़ने पहुंचीं तो बहुत जल्दी उन्हें एक-एक बूथ, मंडल के अध्यक्ष व कार्यकर्ताओं के नाम याद हो गए. उनके इस हुनर का हर कोई मुरीद बन गया और वो यहां कभी भी बाहरी नहीं लगीं. जब भी कोई सामने आता तो सीधे नाम लेकर बुलातीं जिससे घर जैसे रिश्ते बनते गए. स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए 2004 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में सुषमा स्वराज ने भोपाल एम्स की आधारशिला रखी जबकि विदेश मंत्री रहते हुए वह सोशल मीडिया पर शिकायतों को सुनने और उनके निपटारे तरीकों से लोकप्रिय थीं.
एक सफल नेता के साथ ही बेहद कुशल गृहणी सुषमा स्वराज ने कॉलेज के दोस्त स्वराज कौशल से 13 जुलाई 1975 को प्रेम विवाह किया जो देश के एडवोकेट जनरल, मिजोरम के नौजवान गवर्नर तथा 1998 से 2004 तक हरियाणा से राज्यसभा सांसद भी रहे. इकलौती बेटी बांसुरी वकील है. गजब की वक्ता उतनी ही शालीन, हाजिर जवाब और मजाकिया लहजे वाली दबंग नेता ने पक्ष-विपक्ष सबका दिल जीता. राजनीति से परे पारिवारिक रिश्ते बनाए वो किसी की मां थी, किसी की बहन तो किसी की मार्गदर्शक. वर्तमान रक्षामंत्री निर्मला सीतारण को उनकी काबिलियत देखते हुए भाजपा में सुषमा स्वराज ही लाईं थीं.
यूनाइटेड नेशंस में बतौर विदेश मंत्री हिंदी में दिए भाषण के साथ उसे नसीहत देने के लिए भी सुर्खियों में रहीं. वहीं बतौर विपक्ष के नेता यूपीए के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में लगातार उजागर हो रहे घोटालों पर लोकसभा में कहे शेर पर खूब दाद मिली- तू इधर-उधर की बात न कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा? मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है. थोड़े दिन बाद इसी शेर को यूं आगे बढ़ाया- मैं बताऊं कि काफिला क्यों लुटा, तेरा रहजनों से वास्ता था और इसी का हमें मलाल है. यह तो उनकी बानगी भर है. ऐसे जिन्दा दिल, लोकप्रिय, विनम्र कर्मयोगी, संवेदनशील और सदा मुस्कुराते रहने वाला दबंग चेहरे का असमय चले जाना देश की अपूरणीय क्षति है.
(साई फीचर्स)