(हरी शंकर व्या स)
चाहे तो शीर्षक को विपक्ष का मनोबल बढ़ाने की कोशिश माने। बावजूद इसके जान लेंकि आंधी वाले 2014 के लोकसभा चुनाव और महाआंधी वाले 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के तराजू के भाजपा पलड़े के मोदी वोट बनाम सपा-बसपा-रालोद एलायंस को मिले कुल वोटों केदोनों पलड़ों को तौलें तो 23 मई को ऐसा ही नतीजा आना है। आंकड़ों की इस गणित के साथ नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, लखनऊ, अयोध्या-फैजाबाद घूमते हुए, जातीय समीकरणों और जमीनी हकीकत का अनुभव जोड़ यदि केमिस्ट्री जांचें तो भाजपा की 15 सीट में भी संदेह बनेगा। मगर मध्य प्रदेश, झारखंड में मतदान के बाद मोदी-शाह की प्रोपेगेंडा मशीनरी ने आंधी आने का जो ताजा झूठ बनाया है तो उसमें श्रीवास्तवजी, प्रभुजी की जुबानी परसों सुनने को मिला कि हमने तो सुना कि कन्नौज से डिंपल यादव हार रही हैं और गाजीपुर, चंदौली में अचानक हवा बदली है। मनोज सिन्हा और महेंद्र नाथ पांडे मजे से जीतेंगे।तुरंत समझ आया कि यूपी के दो चरणों के लिए मोदी-शाह की झूठ मशीन पूर्वी उत्तर प्रदेश में आसमान गूंजा देने के मोड में है।
हां, लग रहा है कि मध्यप्रदेश, झारखंड और उत्तरप्रदेश तीनों में मोदी-शाह का सोशल मीडिया अपने विशाल ब्लोअरों से ऐसी आंधी फेंक रहा है, जिससे झूठ प्रचारित हो कि फलां लोकसभा सीट की एक फलां विधानसभा में भाजपा को 50 हजार की लीड मिल रही है तो बाकी क्षेत्रों में भले विपक्ष की बढ़त हो लेकिन भाजपा एक क्षेत्र की बढ़त से जीत जाएगी। मतलब छह-सात विधानसभा क्षेत्र में से एक सीट पर बढ़त के हवाले भाजपा जीत का हल्ला प्रचारित कर रही है। इनके लिए यह दलील फालतू है कि विरोधी उम्मीदवार बाकी विधानसभा सीटों में पांच, दस, बीस हजार वोट बढ़त बनाता गया तो वह कैसे भाजपा की एक सीट की बढ़त से ज्यादा नहीं बन सकती?
मगर मोदी-शाह इतने घबराए हुए हैं कि आखिरी दो चरण के लिए झूठ, प्रोपेगेंडा की सुनामी लाना इसलिए जरूरी है ताकि विरोधी उम्मीदवार, पार्टी नवर्स हो जाए। विपक्षी नेताओं का मनोबल टूट जाए और मतदान के अगले चरण से पहले सब तरफ हल्ला बन जाए कि विरोधियों को वोट दे कर भी क्या होगा, मोदीजी की तो आंधी है!
मगर हकीकत के लिए जरा2014 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों परगौर करें। यूपी में 27 लोकसभा सीटों का चुनाव बाकी है। 12 और 19 मई की इन सीटों के तराजू में 2014 के आंकड़ों के अनुसार 16 पर एलायंस के पलड़े में भाजपा से अधिक वोट रखे हुए हैं। पहले एक-एक कर बसपा-सपाएलायंस के ज्यादा वोटों वाली सीट पर गौर करें। सुल्तानपुर में एलायंस को मिले 48प्रतिशत और भाजपा को 42 प्रतिशत वोट। फूलपुर के 2018 के उपचुनाव में एलायंस के 47 प्रतिशत तो भाजपा के 39 प्रतिशत वोट, इलाहाबाद में एलायंस के 46 प्रतिशत वोट तो भाजपा के 35 प्रतिशत वोट। श्रावस्ती में एलायंस के 46 प्रतिशत व भाजपा के 35 प्रतिशत वोट, डुमरियागंज में एलायंस के 40 प्रतिशत तो भाजपा के 32 प्रतिशत, बस्ती में एलायंस के 58 प्रतिशत तो भाजपा के 34 प्रतिशत, संतकबीर नगर में एलायंस के 48 प्रतिशत तो भाजपा के 34 प्रतिशत, लालगंज में एलायंस के 55 प्रतिशत तो भाजपा के 36 प्रतिशत, आजमगढ़ में एलायंस के 63 प्रतिशत तो भाजपा के 29 प्रतिशत, जौनपुर में एलायंस के 40 प्रतिशत तो भाजपा के 36 प्रतिशत, भदोही में एलायंस के 49 प्रतिशत तो भाजपा के 41 प्रतिशत, गोरखपुर के 2018 के उपचुनाव में एलायंस के 49 प्रतिशत तो भाजपा के 46 प्रतिशत, घोसी में एलायंस के 38 प्रतिशत तो भाजपा के 36 प्रतिशत, बलिया में एलायंस के 38.5 प्रतिशत तो भाजपा के 38.2, गाजीपुर में एलायंस के 52 प्रतिशत तो भाजपा के 31 प्रतिशत, चंदौली में एलायंस के 47 प्रतिशत तो भाजपा के 42 प्रतिशत वोट हैं।
मतलब 27 सीटों में से 16 सीट पर 2014 के आंकड़ों के पलड़े में सपा-बसपा-रालोद एलांयस का दबदबा दो टूक है। ध्यान रहे एलायंस के वोटों में कांग्रेस के वोट शामिल नहीं हैं। 2014 के चुनाव में कांग्रेस, आप पार्टी, पीस पार्टी, कौमी एकता पार्टी आदि मोदी विरोधी पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ कर भाजपा विरोधी और मुसलमान वोटों को काटा था। इन पार्टियों ने पूरी यूपी में वोट पाए। इस चुनाव में यूपी में आप, पीस पार्टी व कौमी एकता जैसी पार्टियां लगभग गायब हैं। सो, कांग्रेस, पीस पार्टी या आप जैसी पार्टियों में 2014 में जाया हुआ मुसलमान वोट इस दफा ठान कर एलायंस को जिताने के लिए एकमुश्त वोट दे रहा है। उस नाते सोचें16 सीट की लड़ाई में भाजपा कहां टिकती है?
अब जरा 2014 में एलायंस के मुकाबले भाजपा की बढ़त वाली 11 सीटों पर फोकस करें। प्रतापगढ़ में अपनादल-भाजपा को 42 प्रतिशत तो एलायंस को 39 व कांग्रेस को छह प्रतिशत वोट मिले थे। अंबेडकरनगर में भाजपा के 51 प्रतिशत तो एलायंस के 39 प्रतिशत, मछलीशहर में भाजपा के 46 प्रतिशत तो एलायंस के 44 प्रतिशत, महाराजगंज में भाजपा के 45 प्रतिशत तो एलायंस के 42 प्रतिशत, कुशीनगर में भाजपा के 39 प्रतिशत तो कांग्रेस के 30 व एलायंस के 26 प्रतिशत, देवरिया में भाजपा के 51 प्रतिशत तो एलायंस के 39 प्रतिशत, बांसगाव में भाजपा के 48 प्रतिशत तो एलायंस के 36 प्रतिशत, सलेमपुर में भाजपा के 46 प्रतिशत तो एलायंस के 37 प्रतिशत, वाराणसी में भाजपा के 56 प्रतिशत तो आप पार्टी को 20, कांग्रेस को सात व एलायंस को 10 प्रतिशत वोट थे। मिर्जापुर में अपनादल-भाजपा के 43 प्रतिशत तो एलायंस के 32 व कांग्रेस के 15 प्रतिशत, राबर्ट्सगंज में अपना दल के 43 प्रतिशत तो एलायंस को 36 प्रतिशत वोट मिलने का आकंड़ा है।
इन 11 सीट में वाराणसी, देवरिया, बांसगाव और महाराजगंज को छोड़ कर सात सीटों पर कांटे की लड़ाई इसलिए है क्योंकि एनडीए को छोड़ कर राजभर की पार्टी ने वाराणसी के बगल की चंदौली, गाजीपुर, मिर्जापुर जैसी सीटों पर भाजपा को हराने की ठानी हुई है तो उधर प्रतापगढ़ जैसी एक-दो सीटों पर राजाभैया पार्टी बना कर भाजपा के वोट काटने का काम कर रहे हैं। तभी अपना मानना है कि इन 11 सीटों में राबर्ट्गंज, मिर्जापुर, सलेमपुर, मछलीशहर, प्रतापगढ़, अंबेडकरनगर की छह सीटों में भाजपा कांटे की लड़ाई में फंसी हुई है। जबकि ऐसी स्थिति एलायंस के दबदबे वाली सीटों पर इसलिए नहीं है क्योंकि उसे 2014 की पीस पार्टी, कौमी एकता, आप जैसी पार्टियों का वोट मिलेगा तो कांग्रेस कई जगह भाजपा के वोट काट कर एलायंस का काम आसान बनी रही है।
और जान लें इन दो राउंड से पहले के पांच राउंड की सीटों पर भाजपा एलायंस के मुकाबले ज्यादा बुरी दशा में रही है। मैं उसके आंकड़े बाद की सीरिज में लिखूंगा। मतलब गणित और केमिस्ट्री दोनों में भाजपा उत्तरप्रदेश में हार का रिकार्ड बनाएगी। जरा सोचें72 सीटों से लुढ़क कर 10-12 या 15 सीट की खाई में मोदी-शाह की पार्टी का जाना!
मगर बेशर्म हल्ला देखिए कि आगे दो राउंड की रणनीति के लिए मोदी,मोदी का हल्ला यह झूठ बनवा दे रहा है कि कन्नौज में भी भाजपा से डिंपल यादव हार रही हैं (2014 का आंकड़ा एलायंस के 55 व भाजपा के 42 प्रतिशत वोट)और आजमगढ़ में अखिलेश को मुश्किल है। मतलब झूठ कि पूर्वी यूपी की हवा बदल गई है। सो, निश्चिंत रहें, यह चुनाव जमीन पर लड़ा जा रहा है न कि हवा में। न 2014 वाली आंधी है और न 1984 की राजीव गांधी जैसी सुनामी। क्यों आप यह नहीं सोचते कि जब पांच साल झूठ में रहे हैं तो दिया बूझते वक्त बड़े झूठ की हवा का भभका बनेगा ही।
(साई फीचर्स)