दिग्गी ही जिंदा करेंगे भोपाल में कांग्रेस को

 

 

(श्रुति व्यास)

चुनावी मौसम में चारों ओर नरेंद्र मोदी छाए हुए हैं लेकिन भोपाल में दिग्विजय सिंह बनाम प्रज्ञा ठाकुर पर ही चर्चा केंद्रीत है। पहले दिग्विजय सिंह की उम्मीदवारी के एलान से प्रदेश के राजनीतिक टीकाकार, विश्लेषक और विरोधी चौंके। फिर आखिरी मिनट तक भाजपा ने भ्रम और असमंजस की स्थिति बनाए रखी। संदेह नहीं कि असमंजस मतदान से ठीक पहले भी उन सवालों से है कि क्यों तो दिग्विजय सिंह ने भोपाल को चुना? क्यों भाजपा हाईकमान ने साध्वी प्रज्ञा को चुना? और आज मतदाताओं को बताना है कि दिग्विजय सिंह और साध्वी प्रज्ञा के चेहरे के जो अर्थ है उन्हे समझ कर वे वोट देंगे या रूटिन चुनावी सोच में वोट डालेंगे?

दिग्विजय सिंह चुनाव के पुराने खिलाड़ी और मंजे हुए राजनेता हैं। वे गांधी परिवार के वफादार हैं। उन्होंने हमेशा गांधी परिवार के विचारों और काम का सम्मान किया और उनके साथ मिल कर काम किया। जब भोपाल से उनकी उम्मीदवारी की चर्चा चल रही थी, तब भी उनका कहना था कि- जहां से मेरे नेता राहुल गांधी मुझे लड़ाना चाहते हैं, मैं वहीं से लड़ने को तैयार हूं।

दिग्विजय सिंह पक्के सनातनी हिंदू हैं। वे पूजा करके ही घर से निकलते हैं। वे शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरसस्वती के भक्त हैं। लेकिन दिग्विजय सिंह की खासियत ये है कि वे अपने पक्के धार्मिक होने का दिखावा नहीं करते, आडंबर से दूर रहते हैं। हालांकि मीडिया की रिपोर्टों में दिखाया जा रहा है कि दिग्विजय सिंह अपने को हिंदू के रूप में दिखाने, स्थापित करने में जुटे हैं और इसीलिए पिछले साल उन्होंने 3300 किलोमीटर लंबी नर्मदा यात्रा कर एक संदेश दिया, ताकि हिंदू विरोधी होने की जो छवि बना दी गई थी, उसे दूर किया जा सके। दिग्विजय सिंह इसे खारिज करते हुए बताते हैं कि- मैं हिंदू हूं, लेकिन मैं एक हिंदू होने का दिखावा नहीं करता।

भोपाल का चुनावी प्रचार, उसका हल्ला भाजपा ने हिंदुत्व के नाम पर करवाया। सब जगह यही सुनने को मिला कि भोपाल में चुनाव हिंदुत्व के नाम पर लड़ा जा रहा है। जबकि दिग्विजय सिंह ने चाहा कि भोपाल का चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा जाए।भोपाल के लिए उन्होंने खुद का घोषणापत्र विजन डॉक्युमेंट जारी किया है। हालांकि भोपाल और उसके आसपास जो माहौल बना है वह हिंदुत्व बनाम उदार हिंदुत्व का ही है। दिग्विजय सिंह और उनकी पत्नी अमृता सिंह जरूर विकास के मुद्दे पर प्रचार करते रहे।

इन्हें दिक्कत लोगों में भरोसा बनाने की कोशिश में हुई। दिग्विजय सिंह के पक्ष में जो सबसे बड़ी बात है वह यह कि हर व्यक्ति के साथ उनका निजी तौर पर जुड़ाव है। शुरुआती राजनीति से ही वे अपने निजी समीकरण बनाने और निजी रिश्ते बनाने में माहिर रहे हैं। लोगों के लिए उनके दरवाजे सुबह आठ बजे ही खुल जाते हैं। कोई भी अ सकता है और उनसे मिल सकता है। आम्रपाली, चूनाभाटी में उनके घर पर समर्थक, कार्यकर्ता और आम जनता उनसे मिलने और बात करने पहुंचती है। पहले से वक्त लेने की जरूरत नहीं है। सफेद कुर्ते-पायजामे में और गले में गमछा डाले दिग्विजय सिंह दो घंटे उस हरेक शख्श से बात करते हैं जो उनके घर पहुंचता है। हर पहुंचने वाले का वे खुद गर्मजोशी से स्वागत करते हैं, और धैर्यपूर्वक उसकी बात को सुनते हैं। और इस तरह उनसे मिल कर हर व्यक्ति खुश होकर और अपनेपन का भाव लेकर लौटता है। पिछले एक महीने से यही चल रहा है। एक चिट्ठी लेकर उनसे मिलने आया एक समर्थक इस उम्मीद के साथ लौट रहा है कि जो कहा वह होगा।

इस शख्श ने कहा- ये हमारे दिग्गी साहब हैं..वो सबसे मिलते हैं एक अपनेपन से। जब दिग्विजय सिंह भोपाल की सड़कों-गलियों में निकलते हैं तब भी उनके स्वभाव और व्यवहार में अपनेपन का भाव साफ देखा जा सकता है।

बहत्तर साल की उम्र में भी वे गाड़ी से चलने के बजाय पैदल चलना ही पसंद करते हैं। बड़ी रैलियों के बजाय वे लोगों से निजी तौर पर मिलना पसंद करते हैं। जिस दिन से उन्हें कांग्रेस का उम्मीदवार घोषित किया गया है उसी दिन से उनका यह कार्यक्रम जारी है। उनकी सरकार में मंत्री रह चुकीं कौशल्या गोटिया कहती हैं-वे हम सबसे ज्यादा तेज चलते हैं, पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त हैं, और इतने फुर्तीले हैं कि हमें उनके साथ चलने के लिए एक तरह से दौड़ना पड़ जाता है।

शक नहीं कि बहत्तर साल में भी दिग्विजयसिंह की चाल में खासी तेजी है। उनकी आंखों और होठों से एक तरहकी मुस्कुराहट झलकती रहती है, भले चेहरे पर और कोई भाव क्यों न हों। भोपाल को लेकर जिस तरह का दबाव और चुनौती उन पर है, उसे वे महसूस कर रहे हैं। लेकिन फिर भी उनकी आंखों में एक विश्वास झलकता नजर मिलेगा। लेकिन अगर कोई है जो इस मुश्किल लड़ाई को एक महत्त्वपूर्ण लड़ाई में बदल सकता है तो वे सिर्फ दिग्विजय सिंह ही हैं। इस बात को राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि मध्यप्रदेश में भगवा राजनीति की पकड़ को कमजोर करने के लिए दिग्विजय सिंह को बहुत ही सोच-समझ कर उतारा गया है। लोग हिंदुत्व की राजनीति से थक चुके हैं। शहर के राजनीतिक जानकारों और विलेषकों का मानना है कि अगर भोपाल में कांग्रेस को कोई फिर से जीवन दे सकता है तो वे सिर्फ दिग्विजय सिंह ही हैं। 1989 से भोपालमें कांग्रेस का नाम नहीं है। दिग्विजय सिंह के एक बहुत ही करीबी ने एक ही वाक्य में बताया-राजनीतिक खुराफाती। और देखिएगा भोपाल में दिग्विजयसिंह चमत्कार करेगें।

(साई फीचर्स)