…गर नशा शराब में होता तो नाचती बोतल

 

 

(सुधीर मिश्र)

होली से एक दिन पहले की बात है। एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में शाम के वक्त अबीर गुलाल की होली हो गई। रंगे पुते घर पहुंचे तो घरवाली ने सवाल दाग दिया कि पीकर आए हो क्या? कुछ मूड बढ़िया था, कुछ अबीर गुलाल का असर। सो आरिफ जलाली साहब के एक शेर में खुद को बयां कर दिया-

ख़ुद अपनी मस्ती है जिस ने मचाई है हलचल!

नशा शराब में होता तो नाचती बोतल!!

बड़ी मुश्किल से समझाया कि भांग न शराब, कुछ नहीं लिया है। हालांकि, घरवालों की फिक्र एकदम जायज थी। खासतौर पर होली के मौके पर। एक परिचित डॉक्टर हैं। होली हो, दिवाली हो या फिर बकरीद। उनकी शिकायत है कि लोग पर्व-त्योहार का मतलब ही नहीं समझते। खुद अपने घरवालों और पड़ोसियों की तकलीफ नहीं समझते। चूंकि अस्पताल की इमरजेन्सी ड्यूटी में काफी काम कर चुकी थीं, लिहाजा होली-दिवाली के अगले दिन लगने वाली घायलों तीमारदारों की भीड़ से वाकिफ थीं। इस बार होली पर अकेले लखनऊ में ही पंद्रह-सोलह लोगों की हादसों में मौत हो गई। ज्यादातर नौजवान थे। इसी तरह दिवाली के पटाखों से हर साल बर्न यूनिट भरी रहती है। मौत तो होती ही हैं, अंग भंग वालों की संख्या काफी ज्यादा होती है। डॉक्टर के घर में खुद बकरीद मनाई जाती है, पर अलग ढंग से। पड़ोसियों के मनाने के तरीके से उन्हें शिकायत है कि गंदगी बहुत फैलती है। लोग सफाई का ध्यान नहीं रखते। उनके मुताबिक बदले हुए वक्त में पुरानी रवायतों में बदलाव होना ही चाहिए। चाहे वह किसी भी धर्म या मजहब से जुड़ी हो।

वापस आते हैं शराब पीकर गाड़ी चलाने पर। वैसे बड़े-बड़े देशों में इस तरह की समस्याएं होती ही नहीं। वजह साफ है कि सिर्फ एक बार ड्रंक एंड ड्राइव की गलती में ही इतना तगड़ा जुर्माना लगता है कि कई बरस तक सैलरी से उसकी किश्त कटती है। अपने देश, खासतौर से उत्तर प्रदेश में शायद अफसरों के सामने समस्या है। होली आबकारी महकमे के लिए सबसे बड़ी सहालग होती है। साल भर में सबसे ज्यादा शराब इसी त्योहार के मौके पर बिकती है। आबकारी से मिलने वाला पैसा सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने का बड़ा जरिया है। लिहाजा महकमे की ओर से होली पर ज्यादा से ज्यादा शराब बेचने के टारगेट फिक्स होते हैं। पीने पिलाने वालों की अलग समस्या है। होली-दिवाली हो या शादी बारात। खुशी के मौके पर जानने वाले के यहां गए और शराब न मिली तो काहे की होली।

होली पर पहले एक घर में दो पैग, फिर दूसरे और फिर तीसरे में दो और। इतना अल्कोहल लेने के बाद साथ में भले ही न पीने वाला साथी बैठा हो पर नशे वाला भाई यही कहते मिलेगा- कि दोस्त आज गाड़ी तेरा भाई चलाएगा। जिन पर किस्मत मेहरबान होती है, वह घर पहुंच भी जाते हैं। वरना हर साल सैकड़ों की संख्या में हताहतों के आंकड़े तो बताते ही हैं कि शराब पीकर गाड़ी चलाने का अंजाम क्या होता है। बात हो रही है कल्चर को बदलने की। लोगों ने खुद को बदला भी है। शरीफ लोग रंग खेले जाने के दौरान होली पर सड़क पर नहीं निकलते। न अपने अजीजों को जाने देते हैं। यह ठीक है कि इससे होली के रंगों का मजा फीका होता है पर साहब जान है तो जहान है। जब तक हमारे यहां कानून सख्ती से लागू नहीं होते, तब तक रिस्क लेने में क्या फायदा। आप खुद न भी पिए हों तो एक टल्ली हो चुका होलियार कब आपकी बाइक या कार पर खुद-ब-खुद चढ़ बैठेगा, इसका कोई भरोसा नहीं। लिहाजा रंगों की मस्ती तो है आपकी पर फिलहाल सड़क है पीने वालों के बाप की। खुदा आप पर खैर बनाए रखे, घर रहना ही बेहतर। बढ़िया पापड़ चिप्स उड़ाइए। चलते-चलते निदा फाज़ली के इस शेर को समझिए-

अपने लहजे की हिफ़ाज़त कीजिए!

शेर हो जाते हैं ना-मालूम भी!!

शेर को शायर के हिसाब से नहीं,!

जंगल के हिसाब से समझें!!

(साई फीचर्स)

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