(डा. वेद प्रताप वैदिक)
मुझे खुशी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो दिन देर से ही सही, आखिर मुंह तो खोला। उन्होंने मेवे बेचने वाले दो कश्मीरी लड़कों से लखनऊ में हुए दुर्व्यवहार के खिलाफ जोरदार अपील की है। यदि ऐसी ही अपील देश की जनता के नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत भी करें तो उसका असर कहीं ज्यादा और जल्दी होगा।
पुलवामा-कांड के बाद सिर्फ जम्मू में ही नहीं, देश के कई गांवों और शहरों में आम लोग इतने अधिक गुस्से में आ चुके थे कि उनके डर के मारे सैकड़ों कश्मीरी लोग अपने काम-धंधे बंद करके कश्मीर में पलायन कर गए थे। लोगों का गुस्सा स्वाभाविक था, क्योंकि पुलवामा में हमारे 40 जवानों की जान लेने वाला युवक कश्मीरी ही था लेकिन यह मान बैठना उचित नहीं है कि हर कश्मीरी व्यक्ति उस दहशतगर्द के साथ सहानुभूति रखता है।
कश्मीर के ज्यादातर लोग आतंकवाद और हिंसा को पसंद नहीं करते लेकिन वे क्या करें? वे रातों-रात अपने आपको गैर-कश्मीरी तो नहीं बना सकते। जो कश्मीरी भारत के दूसरे हिस्सों में रहकर अपना काम चला रहे हैं, उनकी मानसिकता तो और भी बेहतर है। मोदी ने कहा है कि ये कश्मीरी लोग हमारे अपने हैं . . . जो कुछ सिरफिरे लोग हमारे इन भाइयों पर हमला बोल रहे हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं।
गृहमंत्री राजनाथसिंह ने एक सभा में घोषणा की कि देश के विभिन्न शहरों में पढ़ रहे कश्मीरी नौजवानों के साथ हमें अपने पन और प्रेम का व्यवहार करना चाहिए। उन्होंने पिछले हफ्ते ही सारे मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखकर निर्देश दिया था कि कश्मीरियों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाए। इन दोनों नेताओं ने बहुत सामायिक अपील जारी की है।
लेकिन इस स्तंभ को पढ़ने वाले हजारों-लाखों पाठकों से मेरा अनुरोध है कि कुछ लोगों के खिलाफ वे जो बेलगाम और गुस्साए हुए संदेश व्हाटसअप, ईमेल, फेसबुक और इंस्टाग्राम आदि पर भेजते हैं, वे कृपया थोड़े संयम का परिचय दें। यदि वे भारत के अंदर बारुदी माहौल बनाने की कोशिश करेंगे तो वे आतंकवाद की मदद ही करेंगे। अनर्गल बोलने और लिखने से हम आतंकवाद का मुकाबला नहीं कर सकते। इस समय देश को चट्टानी एकता की जरुरत है।
(साई फीचर्स)