(डॉ.ब्रह्मदीप अलूने)
उम्मीदों के सातवें आसमान से भारतीय लोकतंत्र के परिणामों की इससे बेहतर पटकथा नहीं लिखी जा सकती थी। यह नया भारत है जिसे आक्रामक अंदाज में उभारा जा सकता है। यह ऐसा भारत है जिसे ठहराव पसंद नहीं है। यह वह भारत है जो किसी भी कीमत पर हासिल करना चाहता है। यह ऐसा भारत है जो परिणाम से ज्यादा अंजाम देने को लालायित नजर आता है। इस भारत के मतदाताओं ने उन तराजूओं में चढ़ने से इंकार कर दिया है जिनका मूल्य कई मालिक मिलकर तय करते हैं। यह नया यह भारत वह देखना चाहता है जो उसे पसंद हो। इस भारत को बदलाव के सपनों की लड़ाई पसंद है।
इस भारत को राष्ट्रवाद पसंद है और उसे सार्वभौमिकता जैसी चीज़ें सुनना या समझना पसंद नहीं है। यह भारत उग्र राष्ट्रवादी बनकर कथित विरोधियों को कुचलने को बुरा नही समझता। यह भारत हसीन सपनों की तलाश में दौड़ना चाहता है। हालांकि उसे पता नहीं की मंजिल कब मिलेगी लेकिन पूरी होने की उम्मीद उसे मोदी में नजर आती है। यह भारत मोदी के उस अंदाज को पसंद करता है जो अकस्मात होते हैं। मोदी पर उसका भरोसा इतना कि चाहे उसे खामियाजा भोगना पड़े लेकिन देश की बेहतरी के लिए वह सब स्वीकार करता है।
यह नया भारत है जहां गरीब और मजदूरों इसलिए खुश है क्योंकि उन्होंने नोटबंदी को अमीरों पर प्रहार माना। एटीएम की लाइनों में लगकर और जान गंवाकर भी उसका मोदी पर भरोसा कायम है। यहां चाय की चुस्कियों में मोदी को शुमार करने से उसका स्वाद बढ़ा माना जाता है। यहां के नौजवान मोदी के वादों और इरादों पर भरोसा करते है। बेरोजगारी को लेकर आंकड़े चाहे जितने विपरीत क्यों न हो, युवाओं को मोदी में फिर भी उम्मीद नजर आती है। यह नया भारत है जिसे बालाकोट, पाकिस्तान पर प्रहार पसंद है, उसे पुलवामा की नाकामी याद भी नहीं है और न ही वह उसे सोचना चाहता है।
उसे डोकलाम में भारत का जवाब पसंद है, उसके वर्तमान को जानने की उसे कोई परवाह नहीं। यकीनन यह मोदी का नया भारत है जिसके सोचने, समझने और फैसला करने के प्रतिमान बदल चुके हैं। यह मोदी ही हैं जिन्होंने लेफ्ट को भी राइट कर दिया। बंगाल में भाजपा को सफलता मिलने की सबसे बड़ी हकीकत यह उभर कर आई है कि वाम दल के कार्यकर्ताओं को भी मोदी में उम्मीद नजर आई है। बंगाल का वाम दल का नजरिया बेहद आक्रामक और भाजपा की विचारधारा के विपरीत नजर आता है लेकिन इसके बाद भी मोदी में उसे उम्मीद नजर आना और उसके बूते तृणमूल कांग्रेस का नशा चूर चूर होना कोई मामूली बात नहीं है।
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में जातीय जोड़ भाग के बूते मोदी को धराशाई करने की कोशिशें भी परवान नहीं चढ़ सकी। यह मोदी का ही जादू था कि उत्तर प्रदेश के जातीय मतदान के लिए बदनाम लोगों ने सियासी दलों को यह संदेश दिया कि उनके मत राजनेताओं की जागीर नहीं है कि वे किसी से कभी भी हाथ मिलाकर उनकी हसरतों का सौदा कर अपने महलों को सजा सकें। यह मोदी का वह भारत है जिसने जय श्री राम के नारे को साम्प्रदायिक मानने से इंकार कर दिया है। यह मोदी का ही असर है कि कई स्थापित सियासी दलों ने अपने कथित अल्पसंख्यक वोट बैंक के सामने जाने से इसलिए परहेज किया क्योंकि उसे बहुसंख्यकों के सामने अपनी छवि खराब होने का खतरा नजर आता है।
आज़ादी के बाद तुष्टीकरण को लेकर दावे और राजनीति तो खूब हुई लेकिन बहुसंख्यकों के प्रभाव की मोदी जुगलबंदी ने सियासी प्रतिमान ही बदल दिए है। क्षेत्रीय राजनीति के उभार के बाद देश के कई राज्यों में उभरें राजनीतिक मठाधीशों ने राष्ट्रीय हितों को प्रभावित करने का जो लगातार प्रयास किया था उसे जवाब देने के लिए नये भारत ने मोदी को मुफीद माना। अपने राज्य के लिए विशेष दर्जे की मांग कर चंद्रबाबू नायडू का सियासी दांव उल्टा पड़ गया। लालू जेल में है लेकिन उनका तेजस्वी बेटा भी महागठबंधन के साथ बिहार की जनता को संवेदनाओं के बूते जीत नहीं पाएं। यह मोदी का नया भारत है जहां कन्हैया कुमार की शिक्षा और सहिष्णुता की सारी कोशिशें मोदी के नारे टुकड़े टुकड़े गैंग के आगे धराशाई हो गई। इस भारत को ऐसी मानवता पसंद नहीं है जो घुसपैठियों को भी पनाह देती हो।
यह नया भारत है जिसे धारा प्रवाह हिंदी से प्यार है और अंग्रेजी से नापसंद दिखाने में इसे एतराज भी नहीं। यह नया भारत जो अपने इतिहास को स्वर्णिम और स्वाभिमान से भरा प्रस्तुत करना चाहता है, उसे पुराने लिखे गए इतिहास पर भरोसा नहीं है और वह उसे नकारना चाहता है। इस नये भारत में मानव अधिकार की रक्षा के नाम पर गुंडों और आतंकियों को छोड़ देना स्वीकार नहीं है, उसे इनकाउंटर ज्यादा आकर्षित करता है।
यकीनन मोदी का यह नया भारत सुनहरें सपनों में जीना पसंद करता है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने अनगिनत उम्मीदों के साथ मोदी में अपनी पसंद जाहिर की है। 2014 से शुरू हुआ यह सफर लोगों ने पसंद किया है। मोदी की विचारधारा और उनका काम करने का अंदाज अपने पूर्ववर्तियों से बेहद अलग है। मोदी ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अपनी व्यक्तिगत आस्था को प्रदर्शित करने से कभी परहेज नहीं किया और भारतीय जनमानस ने उसे खुले दिल से उसे स्वीकार भी किया।
मोदी ने भारतीय सियासत के स्थापित आदर्शों को ध्वस्त करने से भी परहेज नहीं किया। मोदी की सफलता उन राजनीतिक दलों के अस्तित्व पर प्रहार करता है जो संगठनात्मक से ज्यादा व्यक्तिगत हितों पर चलते है। नये भारत ने ऐसे दलों को संदेश भी दिया है कि जो बिना संगठन के अनुशासन के वोट बैंक पर अपना अधिकार समझते है। अब मोदी का मुकाबला करने के लिए संगठनात्मक तौर पर अनुशासन के साथ दलों को जनता के बीच सामाजिक तौर पर भी आना होगा।
नये भारत के कई राजनीतिक दलों के नेताओं को इस लिए भी अस्वीकार कर दिया है जिन्हें पार्टी के सियासी अनुशासन में रहना गंवारा नहीं है और जो अपने दल को अपनी लोकप्रियता के नाम पर ब्लैकमेल करते है। मोदी का सामना करने के लिए सियासी दलों को अपना नजरिया और प्रचार तन्त्र को बदलना होगा। अपने कार्यकर्ताओं को भरोसा और समाज के सामने वैचारिक स्तर को भी पुख्ता कर प्रदर्शित भी करना होगा। नये भारत के मोदी के सामने विपक्षी महज चुनावी रथ पर संवार होकर और नारों से मतदाताओं को लुभा ले इसकी उम्मीदे अब खत्म हो चुकी है।
इस महान लोकतंत्र ने मोदी पर पुनः भरोसा तो दिखाया है लेकिन 2019 के मोदी के सामने चुनौतियां बढ़ गई है। इस भारत की जड़ों में अभी भी गांधीवाद है, जिससे खिलवाड़ आत्मघाती साबित हो सकता है। मोदी को सामाजिक न्याय की दिशा में सोचना होगा और कदम भी उठाने होंगे। जनता मोदी से गरीबी, आतंकवाद, कश्मीर, जातीयता जैसी समस्याओं का समाधान चाहती है। इस देश की ताकत और अच्छाई यह है कि तमाम चुनौतियों से जूझते हुए भी यहाँ का मतदाता लोकतंत्र पर भरोसा करता है और अपनी समस्याओं का हल उसी में ढूंढ़ता है, उसका स्वभाव विद्रोही नहीं है।
बहरहाल उम्मीदों के रथ पर सवार मोदी को भारतीय जनमानस ने सुनहरा अवसर दिया है कि वे उस भारत को आगे ले जाये जहां सभी की अस्मिता की रक्षा बिना भेदभाव के हो सके और सचमुच में सबका विकास हो सके। इतिहास ऐसे अवसर बार बार नहीं देता।
(साई फीचर्स)

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