धर्म का मामला नमक के निज स्वाद सा

 

 

(विवेक सक्सेना)

जब बेटा कनाडा गया तो हमारे पारिवारिक मित्र ने उसकी एक फोटो भेजी जिसमें वे मेरे बेटे व कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के साथ खड़े पिज्जा खा रहे थे। एक भारतीय के लिए यह बड़ी बात थी। उन्होंने बताया कि कनाडा के प्रधानमंत्री उनके इलाके में किसी भारतीय के यहां आए हुए थे और उसने उन लोगों को आमंत्रित किया था। जब कनाडा गया तो इस बारे में विस्तार से बातें करने पर उन्होंने कहा कि यहां भारत की तरह प्रधानमंत्री या अन्य सत्तारूढ़ वीवीआईपी के साथ सुरक्षाकर्मियों की भीड़ नही रहती है। क्योंकि इसे उस नेता के खिलाफ ही माना जाता है।

लोग कहते हैं कि वह नेता ही क्या जो कि लोगों के बीच सुरक्षा के बिना न जा सके। बाद में जब मैं कनाडा गया तो पता चला कि यहां के मूल लोग बहुत ज्यादा मिलते-जुलते नहीं है। मिलने जुलने पर वे लोग धर्म, जाति या राजनीति पर चर्चा नहीं करते हैं क्योंकि इन मुद्दों पर चर्चा करने पर गरमा-गरमी होने की आशंका बनी रहती है। यहां के लोग धर्म व राजनीति को एक नितांत निजी मामला मानते हैं।

वहां अगर इस देश की तुलना अपने देश से की जाए तो बड़ा अजीब लगता है कि आज भी आजादी के 72 साल के बाद हमारे देश में मंदिर और मस्जिद पर ही नहीं बल्कि चुनाव में श्मशान और कब्रिस्तान सरीखे मुद्दे बन जाते हैं। कनाडा में दुनिया के लगभग हर कोने से आए विभिन्न धर्माे के लोग रहते हैं मगर हर धर्म के लोगों को अपना धार्मिक स्थान जमीन खरीद कर ही बनाना पड़ता है। हालांकि वह उन्हें काफी सस्ती मिलती है क्योंकि अपने विश्वास की पूजा करने के लिए सस्ती जमीन उपलब्ध करवाना सरकार अपना कर्तव्य मानती है।

धर्म तो मानो यहां खाने में तैयार किए जाने वाले नमक व मिर्च की तरह से है कौन इसे कितना लेता है यह उसका निजी मामला है। जैसे आप अन्य स्वाद दूसरो पर नहीं लाद सकते हैं वैसे ही आप अपनी धार्मिक सोच मानने के लिए किसी को मजबूर नहीं कर सकते हैं। कनाडा में सबसे अंहम बात मुझे यह देखने को मिली कि यहां रहने वाले बांग्लादेश व पाकिस्तान के मुसलमान भी भारतीय हिंदुओं के साथ बहुत मिल-जुलकर रहते हैं। व आपस में ऐसी कोई बात नहीं करते हैं जोकि उनके बीच टकराव का कारण बने।

कनाडा में रहते हुए मैं वहां के मुख्य विपक्षी दल नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के अध्यक्ष जगमीत सिंह के हाउस आफ कामंस के उपचुनाव के बोर्ड में साउथ गया पर वहां मैंने बहुत अजीब चीज देखी। वे सिख हैं व उन्हें इस साल नवंबर माह में होने वाले आम चुनाव में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार माना जा रहा है। इस चुनाव में इस देश के लोगों की राजनीति में धर्म के हस्तक्षेप का मामला स्पष्ट नजर आया। उनके खिलाफ सत्तारूढ़ रिपब्लिकन पार्टी ने एक चीनी महिला को अपना उम्मीदवार बनाया था मगर उसने एक इंटरव्यू में उनके खिलाफ नस्ली टिप्पणी करते हुए उन्हें एशियाई मूल का बताया तो इस पर हंगामा खड़ा हो गया व उनकी पार्टी के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो तक ने उनका बचाव नहीं किया।

वे विवादों में इतना घिर गई कि अंततः उन्होंने चुनाव मैदान से हटने का फैसला किया और जगमीत सिंह की जीत आसान हो गई। कनाड़ा की एक खासियत यह है कि यहां कि राजनीतिक परंपरा यह रहती आई है कि जब भी किसी पार्टी का अध्यक्ष चुनाव लड़ता है तो उस पद का सम्मान करते हुए कोई भी विरोधी दल उसके खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं करता है।

जगमीत सिंह का एक राष्ट्रीय दल नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी का अध्यक्ष बनाना बहुत बड़ी बात है। वे अब खुद को अगले प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में भी देख रहे हैं। मगर जब मैंने उनके ही दल के एक वरिष्ठ नेता से बात की तो उसने अपना नाम न उजागर करने की शर्त पर खुलासा किया कि वे इस देश के प्रधानमंत्री बनने की बात सपने में ही सोच सकते हैं। प्रधानमंत्री बनने के लिए उन्हें इस देश की फ्रांसीसी भाषी राज्य क्यूबेक में भी काफी सीटे जीतना जरूरी होगा जबकि इसकी संभावना बहुत कम नजर आती है।

इस राज्य के लोग राजनीति में धार्मिक चिन्हों व धर्म के इस्तेमाल के सख्त खिलाफ हैं जबकि सिख जगमीत न सिर्फ पगड़ी पहनते हैं बल्कि धार्मिक पहचान के लिए लंबे बाल व दाढ़ी के साथ कृपाण भी रखते हैं। यह बात यहां के लोगों को जरा भी पसंद नहीं है।

जबकि भारत में बिना धर्म के राजनीति हो ही नहीं सकती है। बीती रात एक चर्चित चौनल पर जब एक वरिष्ठ पत्रकार को यह कहते सुना कि इस चुनाव में मोदी का दोबारा सत्ता में आना इसलिए संभव लगता है क्योंकि हमारे देश में सवर्ण वर्ग का वोट मोदी व भाजपा को ही पड़ेगा। ब्राह्मणों का एक बार मायावती के साथ जाना अपवाद था जबकि कायस्थ व भूमिहार तो हमेशा से भाजपा को वोट देते आए हैं।

उनकी यह बात सुनकर मुझे काफी पहले मिजो नेशनल फ्रंट के अध्यक्ष लालडेंगा की वह बात याद आ गई जोकि उन्होंने मेरे इस सवाल के जवाब में कही थी कि आप भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में रहने के बावजूद क्यों नागालैंड को ईसाई प्रदेश बनाए रखने के पक्ष में हैं? तब उन्होंने प्रत्युत्तर में कहा कि पूरे देश में ब्राह्मण के खिलाफ ब्राह्मण, यादव के खिलाफ यादव व दलित के खिलाफ दलित को चुनाव लड़वाने वाले यह दावा कैसे कर सकते हैं कि वे धर्मनिरपेक्ष हैं।

(साई फीचर्स)

justin trudeau eating pizza

धर्म का मामला नमक के निज स्वाद सा

(विवेक सक्सेना)

जब बेटा कनाडा गया तो हमारे पारिवारिक मित्र ने उसकी एक फोटो भेजी जिसमें वे मेरे बेटे व कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के साथ खड़े पिज्जा खा रहे थे। एक भारतीय के लिए यह बड़ी बात थी। उन्होंने बताया कि कनाडा के प्रधानमंत्री उनके इलाके में किसी भारतीय के यहां आए हुए थे और उसने उन लोगों को आमंत्रित किया था। जब कनाडा गया तो इस बारे में विस्तार से बातें करने पर उन्होंने कहा कि यहां भारत की तरह प्रधानमंत्री या अन्य सत्तारूढ़ वीवीआईपी के साथ सुरक्षाकर्मियों की भीड़ नही रहती है। क्योंकि इसे उस नेता के खिलाफ ही माना जाता है।

लोग कहते हैं कि वह नेता ही क्या जो कि लोगों के बीच सुरक्षा के बिना न जा सके। बाद में जब मैं कनाडा गया तो पता चला कि यहां के मूल लोग बहुत ज्यादा मिलते-जुलते नहीं है। मिलने जुलने पर वे लोग धर्म, जाति या राजनीति पर चर्चा नहीं करते हैं क्योंकि इन मुद्दों पर चर्चा करने पर गरमा-गरमी होने की आशंका बनी रहती है। यहां के लोग धर्म व राजनीति को एक नितांत निजी मामला मानते हैं।

वहां अगर इस देश की तुलना अपने देश से की जाए तो बड़ा अजीब लगता है कि आज भी आजादी के 72 साल के बाद हमारे देश में मंदिर और मस्जिद पर ही नहीं बल्कि चुनाव में श्मशान और कब्रिस्तान सरीखे मुद्दे बन जाते हैं। कनाडा में दुनिया के लगभग हर कोने से आए विभिन्न धर्माे के लोग रहते हैं मगर हर धर्म के लोगों को अपना धार्मिक स्थान जमीन खरीद कर ही बनाना पड़ता है। हालांकि वह उन्हें काफी सस्ती मिलती है क्योंकि अपने विश्वास की पूजा करने के लिए सस्ती जमीन उपलब्ध करवाना सरकार अपना कर्तव्य मानती है।

धर्म तो मानो यहां खाने में तैयार किए जाने वाले नमक व मिर्च की तरह से है कौन इसे कितना लेता है यह उसका निजी मामला है। जैसे आप अन्य स्वाद दूसरो पर नहीं लाद सकते हैं वैसे ही आप अपनी धार्मिक सोच मानने के लिए किसी को मजबूर नहीं कर सकते हैं। कनाडा में सबसे अंहम बात मुझे यह देखने को मिली कि यहां रहने वाले बांग्लादेश व पाकिस्तान के मुसलमान भी भारतीय हिंदुओं के साथ बहुत मिल-जुलकर रहते हैं। व आपस में ऐसी कोई बात नहीं करते हैं जोकि उनके बीच टकराव का कारण बने।

कनाडा में रहते हुए मैं वहां के मुख्य विपक्षी दल नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के अध्यक्ष जगमीत सिंह के हाउस आफ कामंस के उपचुनाव के बोर्ड में साउथ गया पर वहां मैंने बहुत अजीब चीज देखी। वे सिख हैं व उन्हें इस साल नवंबर माह में होने वाले आम चुनाव में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार माना जा रहा है। इस चुनाव में इस देश के लोगों की राजनीति में धर्म के हस्तक्षेप का मामला स्पष्ट नजर आया। उनके खिलाफ सत्तारूढ़ रिपब्लिकन पार्टी ने एक चीनी महिला को अपना उम्मीदवार बनाया था मगर उसने एक इंटरव्यू में उनके खिलाफ नस्ली टिप्पणी करते हुए उन्हें एशियाई मूल का बताया तो इस पर हंगामा खड़ा हो गया व उनकी पार्टी के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो तक ने उनका बचाव नहीं किया।

वे विवादों में इतना घिर गई कि अंततः उन्होंने चुनाव मैदान से हटने का फैसला किया और जगमीत सिंह की जीत आसान हो गई। कनाड़ा की एक खासियत यह है कि यहां कि राजनीतिक परंपरा यह रहती आई है कि जब भी किसी पार्टी का अध्यक्ष चुनाव लड़ता है तो उस पद का सम्मान करते हुए कोई भी विरोधी दल उसके खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं करता है।

जगमीत सिंह का एक राष्ट्रीय दल नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी का अध्यक्ष बनाना बहुत बड़ी बात है। वे अब खुद को अगले प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में भी देख रहे हैं। मगर जब मैंने उनके ही दल के एक वरिष्ठ नेता से बात की तो उसने अपना नाम न उजागर करने की शर्त पर खुलासा किया कि वे इस देश के प्रधानमंत्री बनने की बात सपने में ही सोच सकते हैं। प्रधानमंत्री बनने के लिए उन्हें इस देश की फ्रांसीसी भाषी राज्य क्यूबेक में भी काफी सीटे जीतना जरूरी होगा जबकि इसकी संभावना बहुत कम नजर आती है।

इस राज्य के लोग राजनीति में धार्मिक चिन्हों व धर्म के इस्तेमाल के सख्त खिलाफ हैं जबकि सिख जगमीत न सिर्फ पगड़ी पहनते हैं बल्कि धार्मिक पहचान के लिए लंबे बाल व दाढ़ी के साथ कृपाण भी रखते हैं। यह बात यहां के लोगों को जरा भी पसंद नहीं है।

जबकि भारत में बिना धर्म के राजनीति हो ही नहीं सकती है। बीती रात एक चर्चित चौनल पर जब एक वरिष्ठ पत्रकार को यह कहते सुना कि इस चुनाव में मोदी का दोबारा सत्ता में आना इसलिए संभव लगता है क्योंकि हमारे देश में सवर्ण वर्ग का वोट मोदी व भाजपा को ही पड़ेगा। ब्राह्मणों का एक बार मायावती के साथ जाना अपवाद था जबकि कायस्थ व भूमिहार तो हमेशा से भाजपा को वोट देते आए हैं।

उनकी यह बात सुनकर मुझे काफी पहले मिजो नेशनल फ्रंट के अध्यक्ष लालडेंगा की वह बात याद आ गई जोकि उन्होंने मेरे इस सवाल के जवाब में कही थी कि आप भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में रहने के बावजूद क्यों नागालैंड को ईसाई प्रदेश बनाए रखने के पक्ष में हैं? तब उन्होंने प्रत्युत्तर में कहा कि पूरे देश में ब्राह्मण के खिलाफ ब्राह्मण, यादव के खिलाफ यादव व दलित के खिलाफ दलित को चुनाव लड़वाने वाले यह दावा कैसे कर सकते हैं कि वे धर्मनिरपेक्ष हैं।

(साई फीचर्स)

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