(ओमप्रकाश मेहता)
इन दिनों पूरा भारत वर्ष चुनावी महाभारत का कुरूक्षेत्र बना हुआ है, द्वापर युग में महाभारत संग्राम तो केवल अठारह दिन ही हुआ था और उसे महर्षि वेदव्यास जी ने अठारह सर्ग में लिखा था, किंतु यह राजनीतिक महाभारत कई वेदव्यासों द्वारा लिखा जा रहा है और इसकी शुरूआत अठारह दिन नहीं, बल्कि एक सौ अस्सी दिन पहले हो चुकी है, अब यह तो पता नहीं कि इस महाभारत के कृष्ण (चुनाव आयोग) कौरव के साथ है या पाण्डवों के साथ?
किंतु यह अवश्य है कि इस महाभारत में हर कोई अपने आपको पाण्डव दल का सदस्य मानता है कौरव दल का नेतृत्व करने वाला दुर्याेधन कोई नहीं बनना चाहता, इस युद्ध की एक नैत्री ने अपने विरोधी दल (सत्तापक्ष) के नेता को दुर्याेधन कह दिया तो वे क्रोधित हो उठे और उन्होंने दिल्ली को कुरूक्षेत्र मानकर वहां संघर्ष की चुनौती दे डाली, वह नैत्री भी कहां पीछे रहने वाली थी, उसने भी सत्तारूढ़ दल के मुखिया को उनके सरकारी फैसलों के आधार पर मैदान में आने की चुनौती दे डाली।
द्वापर युग के महाभारत और कलियुग के इस महाभारत में एक मुख्य अंतर यह भी है कि द्वापर के महाभारत प्रसंग में तो द्रौपदी का सिर्फ एक बार सार्वजनिक रूप से चीर हरण करने का प्रयास किया गया था, जिसने भगवान कृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचा ली थी, किंतु इस कलियुग की महाभारत में तो दिन-प्रतिदिन लोकतंत्र रूपि द्रौपदी का चीर हरण हो रहा है और फिलहाल कोई भी कृष्ण उसकी लाज बचाने नहीं आ पा रहा है, चाहे भगवान कृष्ण ने द्वापर युग में संभवामि युगै-युगै क्यों न कहा हो?
द्वापर और आज के इस महाभारत में यह भी अंतर है कि द्वापर में तो अर्जुन ने अपने सगे-सम्बंधियों को युद्ध में सामने देख हथियार डाल दिए थे, और कृष्ण ने उन्हें गीतोपदेश के माध्यम से युद्ध के लिए तैयार किया था किंतु यहां इस युद्ध में तो सभी नैतिकताओं, आदर्शों, मर्यादाओं ने आज के महारथियों के सामने हथियार डाल दिए और आज इसी कारण मानव जीवन की इन सब खूबियों को ताक में रखकर हर योद्धा ने तूणीर की जगह, एक-एक गालीकोष अपने पास रख लिया है।
और उसी गाली कोष से प्रतिदिन एक निम्नतम गाली का तीर निकाल कर अपनी वाणी से एक-दूसरे पर छोड़ा जा रहा है, और सबसे बड़ी बात यह भी है कि इस कलियुगी युद्ध में शकुनी मामा की भूमिका खत्म हो गई है, क्योंकि हर योद्धा अपने आपको शकुनी मामा समझ रहा है, द्वापर का महाभारत तो प्रतिदिन सिर्फ कुछ घण्टों ही चलता था और सूर्यास्त के साथ विराम हो जाता था तथा महिलाओं और बच्चों पर प्रहार वर्जित था, किंतु हमारे इस कलियुगी महाभारत में चौबीस घण्टे युद्ध जारी है और महिलाएँ और बच्चें भी इसके योद्धा बनाए गए है, ये सब खुलकर इस महायुद्ध में हिस्सा ले रहे है।
क्योंकि इस बार भगवान कृष्ण (चुनाव आयोग) घोषित रूप से किसी भी दल के साथ सक्रिय नहीं है, अंदरूनी रूप से यदि वह किसी को साथ दे रहा है, तो वह अघोषित ही है। अभी यह चुनावी महाभारत दस दिन और चलनी है, इन दस दिनों में महारथियों के मुखारबिन्दों से कितने व कैसे विष में बुझे तीर छोड़े जाएंगें और उनका इस महायुद्ध में क्या असर होना है, यह तो एक पखवाड़े बाद (23 मई) को पता चल जाएगा, किंतु इस चुनावी महाभारत ने यह सीख अवश्य दे दी कि इस युद्ध का निर्णायक देश का आम वोटर है। जो यह तय करेगा कि कौन दुर्याेधन है और कौन अर्जुन, और यह भी तय होगा कि द्रौपदी (लोकतंत्र) किसके साथ रहना पसंद करेगी।
(साई फीचर्स)
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