कूटनीति से क्या जंग टल सकती है?

 

 

(हरी शंकर व्यास)

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के साथ खड़े हैं। पर क्या उनके बस में है कि वे पाकिस्तान को कहें कि दिमाग में लड़ाई का ख्याल भी नहीं लाए। निःसंदेह आज के वक्त में वैश्विक समाज में पाकिस्तान और उसकी इस्लामी जिद्द के खिलाफ माहौल है। बावजूद इसके पाकिस्तान की जरूरत अमेरिका को है, चीन को है तो ब्रिटेन और रूस को भी है। अफगानिस्तान का पेंच ऐसा है, जिसके चलते पाकिस्तान का ख्याल रखना सबकी मजबूरी है। तभी भारत-अमेरिका के न चाहने के बावजूद सुरक्षा परिषद् मे जम्मू-कश्मीर को ले कर चर्चा हुई।

पाकिस्तान और इमरान खान को अमेरिका में महत्व मिला। चीना सेना के प्रतिनिधिमंडल ने इस्लामाबाद जा कर पाकिस्तानी सेना प्रमुख बाजवा से बात की। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 बदलने के बाद भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ताबड़तोड़ बीजिंग गए। उन्होने वहां लंबी बात की। भारत का पक्ष समझाना चाहा लेकिन चीन ने भारत के फैसले का विरोध भी किया तो पाकिस्तान का हौसला बढ़ाने के लिए वह सब कुछ किया जो इस्लामाबाद चाहता था।

पूरी कवायद में चीन के केंद्रीय सैनिक आयोग के उपाध्यक्ष का सेनाधिकारियों के साथ रावलपिंडी में सेना मुख्यालय में जा कर सोमवार को बात करना और पाकिस्तान से सैनिक सहयोग बढ़ाने के एमओयू पर दस्तखत करना एक अहम बात है। जम्मू-कश्मीर के हालातों पर चर्चा करते हुए पाकिस्तानी सेना की क्षमताएं बनाने की चीन की रजामंदी अक्टूबर-नवंबर के किसी रोडमैप के संदर्भ में हैं या नहीं, यह वक्त बताएगा। मोटे तौर पर फिलहाल लगता है कि चीन का रूख पाकिस्तान के जंगी तेंवर पर पीठ थपथपाने के हैं।

मैं पहले भी लिख चुका हूं कि डोनाल्ड ट्रंप भारत के साथ हैं लेकिन वे और उनका प्रशासन जान रहा है कि दोनों देशों के बीच इस समय कैसी विस्फोटक स्थिति बनी हुई है। पाकिस्तानी सेना के अफगानिस्तान सीमा से हट कर भारत की सीमा की और मुड़ने का अर्थ अमेरिका के लिए चिंता की बात है। आज कल में तालिबानियों के साथ अमेरिकी समझौते और अमेरिकी सेनाओं की स्वदेशी वापसी का ऐलान संभव है। इसमें पाकिस्तान का सहयोग अमेरिका और रूस सभी के लिए महत्वपूर्ण है।

मतलब पाकिस्तान न अलग-थलग है और न उसके इस स्टैंड की कोई काट कर रहा है कि कश्मीर घाटी के हालातों को देख कर उसका अंतिम लड़ाई लड़ना वक्त का तकाजा है। फिर सबसे बड़ी बात यह है कि पाकिस्तान से जंगखोरी की जो आवाजें आ रही है उसे रूकवाने के लिए भारत की कूटनीति भी नहीं है। भारत पाकिस्तान, उसकी सेना और जंगखोरी की चिंता नहीं कर रहा है। जब हमने दुनिया को बताया हुआ है कि हम पाकिस्तान की परवाह नहीं करते, उसे ठोकने में समर्थ हैं, उसे हैंडल कर लेंगे तो वैश्विक समाज याकि डोनाल्ड ट्रंप भी आश्वस्त हैं कि भारत के नियंत्रण में सब कुछ है।

मोटे तौर पर भारत की कूटनीति का फोकस जम्मू-कश्मीर को भारत का अंदरूनी मामला बताते हुए यह समझाना है कि जो किया है वह जायज है। ठीक विपरीत पाकिस्तान सरकार इसे नाजायज बताते हुए शोर कर रही है और जम्मू-कश्मीर और भारत में मुसलमानों के साथ मोदी सरकार जो कर रही है उससे निर्णायक लड़ाई की नौबत है। हम तो लड़ेंगे। भारतीय एयरलाइंस के लिए आकाशीय मार्ग बंद करेंगे। सड़क रास्ते रास्ते अफगानिस्तान आदि को होने वाले भारतीय निर्यात को बंद करेंगे। उच्चायुक्त स्तर के रिश्ते तोड़ेंगे। आवाजाही खत्म करेंगे। कोई नाता नहीं, कोई बातचीत नहीं, कोई कूटनीति नहीं और कश्मीरियों की तरफ से निर्णायक-अंतिम लड़ाई का वक्त!

तभी पाकिस्तान अंधेरी खाई, गहरे कुएं में कूदने की और बढ़ रहा है। उसे कोई नहीं समझा सकता है कि जो होना था हो गया वह जम्मू-कश्मीर को भूले। उसने तलवार निकाल ली है तो ऐसे में कूटनीति या संयुक्त राष्ट्र में भाषणों से कुछ बन सकेगा, ऐसा आशावाद रखते हुए भी भारत राष्ट्र-राज्य को कूटनीति पर अधिक निर्भर नहीं रहना चाहिए। ज्यादा जरूरी सीमा पर पूरी तैयारी और चौकसी की है।

(साई फीचर्स)