(ब्यूरो कार्यालय)
चंडीगढ (साई)। भारतीय वायुसेना की ताकत को और विस्तार देने की दिशा में आज बड़ी शुरुआत हुई है।
भारतीय वायुसेना प्रमुख ने 4 चिनूक हेलिकॉप्टर के पहले यूनिट को वायुसेना में शामिल कर लिया गया। चिनूक हेलिकॉप्टर की ताकत और मारक क्षमता को देश के लिए बड़ी धरोहर बताते हुए वायुसेना प्रमुख बी. एस धनोआ ने इसे सैन्य इतिहास का महत्वपूर्ण दिन बताया।
चंडीगढ़ एयरबेस पर चिनूक हेलिकॉप्टर को वायुसेना में शामिल करने के कार्यक्रम में वायुसेना प्रमुख ने कहा कि यह राष्ट्र की धरोहर है। धनोआ ने कहा, ‘देश इस वक्त सुरक्षा के स्तर पर कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। विभिन्न क्षेत्रों में हमें इसके लिए अलग-अलग क्षमता से भरपूर उपकरणों की जरूरत है। चिनूक को कुछ बहुत विशेष क्षमता से लैस किया गया है। यह राष्ट्र के लिए धरोहर है।‘
चिनूक हेलिकॉप्टर की ताकत और उपयोगिता बताते हुए वायुसेना प्रमुख ने कहा, ‘चिनूक हेलिकॉप्टर सैन्य अभियानों में प्रयोग किया जा सकता है। सिर्फ दिन में ही नहीं रात में भी प्रयोग हो सकता है, इसकी दूसरी यूनिट पूर्व में दिनजान (असम) में होगी। चिनूक को वायुसेना में शामिल करना गेमचेंजर साबित होगा ठीक वैसे ही जैसे फाइटर क्षेत्र में राफेल को शामिल करना।‘
बेहद शक्तिशाली है चिनूक हेलिकॉप्टर
यह विशाल हेलिकॉप्टर 9.6 टन तक कार्गो ले जा सकता है। इसमें भारी मशीनरी, आर्टिलरी बंदूकें और हाई अल्टीट्यूड वाले लाइट आर्मर्ड वीकल्स शामिल हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में ऑपरेशन के लिए इन्हें इस्तेमाल किया जा सकता है। चिनूक काफी गतिशील है और इसे घनी घाटियों में भी आसानी से आ-जा सकता है। सैन्य पोतों की आवाजाही से लेकर यह डिजास्ट रिलीफ ऑपरेशंस जैसे मिशन में भी अपना काम अच्छी तरह करता है।
CH-47F चिनूक से जुड़ी खास बातें
मशीन: यह आइकॉनिक ट्विन रोटोर चॉपर युद्ध में अपनी जरूरत को कई बार साबित कर चुका है। चिनूक हेलिकॉप्टर्स को वियतनाम से लेकर अफगानिस्तान और इराक तक के युद्ध में इस्तेमाल किया जा चुका है। सबसे पहले चिनूक हेलिकॉप्टर को 1962 में उड़ाया गया था और तब से अब तक इसकी मशीन में बड़े अपग्रेड हो चुके हैं। फिलहाल यह दुनिया के सबसे भारी लिफ्ट चौपर में से एक है।
भारत के लिए इसके मायने
चिनूक के भारतीय एयरफोर्स के बेड़े में शामिल होने से न केवल सेना की क्षमता बढे़गी बल्कि कठिन रास्ते और बॉर्डर पर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट को बनाने में भी इसका अहम योगदान रह सकता है। नॉर्थ ईस्ट में कई रोड प्रोजेक्ट सालों से अटके पड़े हैं और उन्हें पूरा करने के लिए बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन लंबे समय से एक हेवी लिफ्ट चॉपर का इंतजार कर रहा है जो इन घनी घाटियों में सामग्री और जरूरी मशीनों की आवाजाही कर सके।