जहां से ममता बनर्जी को मिली नई पहचान, बीजेपी ने वहीं पलटा पासा
(ब्यूरो कार्यालय)
कोलकता (साई)। 17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनावों की मतगणना जब गुरुवार सुबह शुरू हुई तो पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने शायद ही यह सोचा होगा कि उसे इतना भारी नुकसान झेलना पड़ेगा।
किसी समय राज्य में सीपीएम की दशकों से चली आ रही सत्ता को खत्म कर राज्य की कमान संभालने वाली पार्टी अध्यक्ष ममता बनर्जी जिस जगह से राष्ट्रीय राजनीति में उभरकर आई थीं, इस बार पार्टी को वहीं हार का मुंह देखना पड़ गया। राज्य में तृणमूल कांग्रेस को बीजेपी के कारण भारी नुकसान झेलना पड़ा है।
जहां से ममता को मिली पहचान, वही सीट हाथ से निकली
हुगली लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी लॉकेट चटर्जी ने तृणमूल कांग्रेस की प्रत्याशी रत्ना डे को मात दी है। दिलचस्प बात यह है कि हुगली में ही ममता बनर्जी ने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू किया था। उसी से वह राष्ट्रीय राजनीति में उभरकर आई थीं। टाटा मोटर्स ने करीब 10 साल पहले दुनिया की सबसे सस्ती कार नैनो बनाने के लिए सिंगूर में फैक्ट्री बनाई थी लेकिन यहां किसानों के विरोध प्रदर्शन के बाद कंपनी को फैक्ट्री गुजरात में शिफ्ट करनी पड़ी थी। इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व ममता बनर्जी ने किया था। उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे।
टीएमसी को घाटा
बांकुरा में भी टीएमसी के सीनियर नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री, पूर्व कोलकाता मेयर और ममता मंत्रिमंडल का हिस्सा रह चुके सुब्रत मुखर्जी बीजेपी के सुभाष सरकार से 1 लाख से ऊपर वोटों के अंतर से पिछड़ गए। पश्चिम बंगाल को 2014 आम चुनावों के मामले में भारी नुकसान उठाना पड़ा है। 2014 में पार्टी को 34 सीटें मिली थीं जबकि इस बार उसने सिर्फ 21 सीटों पर बढ़त बना रखी है।
बीजेपी का शानदार प्रदर्शन
इससे उलट बीजेपी ने 2014 में सिर्फ 2 सीटें जीती थीं लेकिन इस बार शानदार प्रदर्शन करते हुए पार्टी ने राज्य की 42 में से 20 सीटों पर बढ़त कायम की है। हालांकि, पार्टी की यह जीत पहले से ही प्रत्याशित मानी जा रही थी। पिछले साल हुए पंचायत चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर काफी बढ़ा हुआ थे। इससे यह अंदाजा लगाया जा रहा था कि राज्य में पार्टी का आधार मजबूत हो गया है। लोकसभा चुनाव में भी टीएमसी और बीजेपी के वोट शेयर के बीच अंतर कम होता दिख रहा है।
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