(ब्यूरो कार्यालय)
भोपाल (साई)। मध्य प्रदेश को इस बार भी टाइगर स्टेट का तमगा मिलेगा या नहीं। जुलाई के दूसरे हफ्ते में पता चल जाएगा। वन्यजीव संस्थान देहरादून ने बाघों की गिनती के आंकड़ों का मिलान लगभग पूरा कर लिया है।
केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय जुलाई में इन आंकड़ों को सार्वजनिक करने की तैयारी में है। मध्य प्रदेश में बाघों की गिनती दिसंबर 2017 से मार्च 2018 तक की गई थी। तब वन अफसरों ने प्रदेश में चार सौ से अधिक बाघ होने का अनुमान लगाया था।
देश में हर चार सालों में बाघों की गिनती की जाती है। वर्ष 2014 की गणना के मुताबिक बाघों की संख्या के मामले में मध्य प्रदेश देश में तीसरे स्थान पर है। पहले स्थान पर कर्नाटक है, वहां 406 बाघ पाए गए थे। जबकि दूसरे नंबर पर उत्तराखंड रहा, जहां 340 बाघ बताए गए थे। मध्य प्रदेश में 308 बाघ बताए गए थे। इस बार की गणना में अच्छी स्थिति बताई जा रही है। गणना वैज्ञानिक तरीके से की गई है, इसलिए अफसरों को फिर से टाइगर स्टेट का दर्जा मिलने की उम्मीद जाग गई है। प्रदेश से 2006 में यह तमगा छिन गया था।
संरक्षित क्षेत्रों के अलावा भी बढ़े बाघ : प्रदेश के संरक्षित क्षेत्रों में ही नहीं, बाघ सामान्य वनमंडलों में भी बढ़े हैं। वन विभाग गांव और शहरी क्षेत्रों में बाघों की आवाजाही बढ़ने की वजह भी संख्या में वृद्धि को बता रहे हैं। उनका मानना है कि जंगल में बाघ बढ़ गए हैं। इसीलिए अपने रहवास के लिए नई जगह तलाश रहे हैं।
कई स्तर पर होता है परीक्षण : गिनती के दौरान खुले जंगल और संरक्षित क्षेत्रों में बाघों के पंजों के निशान, ट्रिप कैमरों से फोटो, पेड़ों पर खरोंच, विष्ठा और उनकी बैठने की जगह से निशान व फोटो लिए गए थे। पहले स्टेट फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसएफआरआई) जबलपुर ने इनका मिलान किया और फिर वन्यजीव संस्थान देहरादून ने मिलान कर रिपोर्ट तैयार की। वन अफसरों का कहना है कि कई स्तर पर उपस्थिति के प्रमाणों का मिलान करने के बाद रिपोर्ट तैयार की जाती है। इसमें बाघों की अनुमानित संख्या बताई जाती है।

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