(ब्यूरो कार्यालय)
भोपाल (साई)। प्रदेश में बाघ ही नहीं, तेंदुए भी तेजी से बढ़ रहे हैं। वर्ष 2014 में जहां 30 जिलों में तेंदुओं की उपस्थिति दर्ज की गई थी, वहीं पिछले साल करवाई गई बाघों की गणना में प्रदेश के 46 जिलों में तेंदुओं की उपस्थिति के प्रमाण मिले हैं।
इस हिसाब से प्रदेश में पिछले चार साल में 450 से ज्यादा तेंदुए बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है। चार साल पहले प्रदेश में देश में सबसे ज्यादा 1854 तेंदुए गिने गए थे। जबकि तेंदुओं की संख्या के मामले में कर्नाटक दूसरे नंबर पर था। वहां 1129 तेंदुओं की गिनती हुई थी।
भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून ने दिसंबर 2017 से मार्च 2018 तक देशभर में बाघों की गिनती कराई है। इस दौरान तेंदुए भी गिने गए हैं। केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय इनमें से बाघों के आंकड़े घोषित कर चुका है और तेंदुओं का आंकड़ा अगले माह आने की उम्मीद जताई जा रही है।
यह आंकड़ा भी प्रदेश को देश का सिरमौर बनाए रख सकता है। जानकार बताते हैं कि स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसएफआरआई) जबलपुर में आंकड़ों के अध्ययन के दौरान यह संकेत मिले हैं कि प्रदेश में तेंदुओं की संख्या बढ़ रही है। इस संख्या में 400 से 450 की वृद्धि हो सकती है। इसका प्रमाण उन जिलों में भी तेंदुए दिखाई देना है, जहां अब तक नहीं दिखाई देते थे।
16 नए जिलों में मिले पगमार्क
तेंदुओं के पगमार्क 16 नए जिलों में मिले हैं। इनमें छतरपुर, सतना, सागर, खंडवा, बैतूल, डिंडौरी, शहडोल, सिंगरौली सहित अन्य जिले शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि टाइगर रिजर्व और अभयारण्यों से सटे जंगलों में पहले से तेंदुओं की उपस्थिति थी। जबकि संरक्षित क्षेत्र से दूर वनक्षेत्रों में तेंदुए नहीं मिलते थे। अब वहां ज्यादा तेंदुए देखे जा रहे हैं। वन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि प्रदेश में अब ऐसा कोई जिला नहीं रहा, जहां तेंदुए न हों।
तेंदुओं को लेकर चिंता भी
तेंदुओं को लेकर दुखद पहलू यह है कि प्रदेश में जिस तेजी से तेंदुओं की संख्या बढ़ रही है, उससे भी ज्यादा तेजी से मौत हो रही हैं। शिकार, सड़क-रेल दुर्घटना और कुओं में गिरने के चलते हर साल 45 से ज्यादा तेंदुओं की मौत हो जाती है। राजधानी के नजदीक स्थित रातापानी अभयारण्य में तेंदुओं की संख्या 100 से ज्यादा बताई जा रही है और यहां तेंदुओं की मौत का ग्राफ भी ज्यादा है।
पिछले तीन साल में यहां आधा दर्जन से ज्यादा तेंदुओं की मौत हुई है। इनमें से करीब चार तेंदुए ट्रेन की चपेट में आकर मरे हैं। वहीं तेंदुओं की खाल बेचने के भी मामले सामने आ चुके हैं। तेंदुआ वन विभाग की प्राथमिकता में तो है, लेकिन बाघ के बाद। इसलिए वन अफसरों का पूरा ध्यान बाघों पर रहता है।
वर्ष 2014 की गिनती के मुताबिक देश में सबसे ज्यादा तेंदुए मध्य प्रदेश में हैं। इस बार भी अच्छे संकेत हैं। तेंदुओं की संख्या में इजाफा होने की पूरी उम्मीद है। हालांकि आंकड़े अक्टूबर अंत तक ही आएंगे।
जेएस चौहान,
एपीसीसीएफ,
वाइल्ड लाइफ