1300 साल पुराने विष्‍णु मंदिर में ‘गोल टोपी’ वाला विदेशी कौन?

 

 

 

 

(ब्यूरो कार्यालय)

भोपाल (साई)। मध्‍य प्रदेश के सिंगरौली में पुरातत्‍व विभाग को छठी शताब्‍दी का ऐसा मंदिर मिला है जिसमें एक ईंट के टुकड़े पर दाढ़ी वाले, गोल टोपी पहने किसी विदेशी की आकृति उकेरी गई है। 1300 साल पुराने इस चित्र को देखकर पुरातत्‍ववेत्‍ता हैरान रह गए हैं। नगवा क्षेत्र में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की खुदाई में मिला यह विष्‍णु मंदिर प्रारंभिक कलचुरी वंश का है।

खुदाई का नेतृत्व कर रही अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. मधुलिका सामंत का कहना है, ‘यह चौंकाने वाला है, क्‍योंकि इसका मतलब है कि दैनिक धार्मिक गतिविधियों में एक विदेशी शख्‍स को अनुमति दी गई थी। ऐसे उदाहरण काफी दुर्लभ हैं।वह इसे और स्‍पष्‍ट करती हैं, ‘उस समय में इस क्षेत्र के लोग ऐसे कपड़े नहीं पहना करते थे। इस रेखाचित्र में दिखाए गए शख्‍स के नाक-नक्‍श और कपड़े पश्चिम एशिया से मिलते-जुलते हैं। इस शख्‍स के नाक-नक्‍श और कपड़े पश्चिम एशिया से मिलते-जुलते हैं

6.5 मीटर है यह पत्‍थर का खंभा

डॉ. मधुलिका के मुताबिक, अभी तक इस तरह का उदाहरण विदिशा में मौजूद मशहूर हीलियोडोरस स्‍तंभहै। 6.5 मीटर का यह पत्‍थर का खंभा करीब 113 ईसा पूर्व मध्‍य प्रदेश के जिले विदिशा के बेसनगर में बनवाया गया था। यह जगह सांची के स्‍तूप से 11 किलोमीटर दूर है। इसे हीलियोडोरस ने बनवाया था। हीलियोडोरस शुंग वंशीय राजा अंगभद्र के दरबार में तक्षशिला के इंडो-ग्रीक राजा अंतियालसिदास का राजदूत था। मधुलिका बताती हैं कि हीलियोडोरस इतिहास में दर्ज ऐसा पहला विदेशी है जिसने वैष्‍णवधर्म स्‍वीकार किया था।

इस पुरातत्‍वस्‍थल की खोज अचानक जुलाई 2018 में उस समय हुई जब एएसआई को किसी ने अलर्ट किया कि कुछ गांववाले एक टीले से ईंट के टुकड़े निकाल कर ले जा रहे हैं। जब एएसआई की टीम वहां पहुंची तो देखा कि गांववाले प्राचीन विष्‍णु मंदिर के गर्भगृह को फावड़ों से खोद कर ईंटें निकाल रहे हैं।

बहरहाल, विष्‍णु मंदिर का उत्‍खनन अब पूरा हो चुका है। यहां सदियों पुरानी धूल-मिट्टी से विष्‍णु की एक अनोखी मूर्ति निकली है। यह इतनी अनूठी है कि शायद इसके जैसे कुछ ही उदाहरण होंगे। इसमें विष्‍णु की कमर में एक ढोल बंधा है और विष्‍णु का बायां हाथ कुछ इस मुद्रा में है जैसे वह इस ढोल को बजा रहे हों। एएसआई के विशेषज्ञों का कहना है कि संभवत: इस पर तत्‍कालीन मत्त मयूरीपंथ का प्रभाव है। यह शैव संप्रदाय का ऐसा पंथ था जिसने वैष्‍णव और शैव जैसे भिन्‍न मतों को एक करने की बात कही थी।

दो हजार साल पहले था शहर

इस खुदाई में एक और अनोखी चीज निकली है। यह है एक पत्‍थर, जिसपर पहली और दूसरी ईस्‍वी की ब्राह्मी लिपि में और अक्षर खुदे हुए हैं। यह सतह से 25 सेंटीमीटर नीचे मिला है। टीम के सदस्‍य और पुरातत्‍ववेत्‍ता, राजेश महर कहते हैं, ‘इसका मिलना बताता है कि इस क्षेत्र का आज से लगभग 2 हजार साल पहले भी शहरीकरण हुआ था।

दुर्लभ है यह मामला

ये अवशेष करीब 1 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं। एएसआई टीम को चार और दबे हुए मंदिर मिले हैं। डॉ मधुलिका कहती हैं, ‘ये अवशेष संकेत करते हैं कि यहां एक विशाल शहर था, जोकि उस समय में इस इलाके में होना एक दुर्लभ घटना है।

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