(शरद खरे)
सिवनी शहर में जिसका जो मन हो रहा है, वह कर रहा है। न कोई पहरेदार है न ही कोई सरकारी नुमाईंदा ही अपनी जिम्मेदारी को सही तरीके से निभा रहा है। कुल मिलाकर हालात देखकर यही कहा जा सकता है कि जिला मुख्यालय में अराजकता पूरी तरह हावी हो चुकी है।
नगर पालिका पचास रूपये प्रतिमाह की दर से लोगों को साफ पीने योग्य पेयजल मुहैया कराने का दावा कर रही है। यह पेयजल कितना साफ और सेहत के लिये फायदेमंद है, इसका उदाहरण पूर्व में तत्कालीन निर्दलीय विधायक दिनेश राय के द्वारा बबरिया फिल्टर प्लांट के निरीक्षण के दौरान ही मिल चुका है।
शहर के नल गंदा पानी उगल रहे हैं, लोग यह पानी पीकर बीमार हो रहे हैं, पर नगर को पालने वाली नगर पालिका को इसकी कतई परवाह नहीं दिख रही हैै। नगर पालिका का ध्यान नागरिक सुविधाओं से ज्यादा निर्माण कार्य और खरीदी की ओर ही दिख रहा है। चुने हुए पार्षद भी मूकदर्शक बने बरबादी के गवाह ही बनते जा रहे हैं।
इसके अलावा गर्मी के आगाज के साथ ही शहर में ठण्डे पानी की बिक्री भी तेजी से बढ़ गयी है। दो सौ मिली लिटर के पाउच से लेकर बीस लिटर तक के कूल केज में पानी बिक रहा है। यह पानी कितनी गुणवत्ता वाला है इस बारे में देखने की फुर्सत किसी को नहीं है।
पानी के कुछ विक्रेता तो छोटा हाथी में एक-एक हजार लिटर की पानी की टंकी में पानी भरकर दुकानों में जाकर उसे भरते नजर आते हैं। यह पानी कितना शुद्ध होता होगा इस बात की कल्पना आसानी से की जा सकती है। इस तरह से शीलत किये पानी को पीकर लोग बीमार पड़ रहे हैं पर इस ओर ध्यान कौन दे, यह यक्ष प्रश्न अनुत्तरित ही है।
देखा जाये तो नगर पालिका सीमा क्षेत्र के अंदर चलने वाले इस तरह के संयंत्रों की नियमित जाँच पालिका को करना चाहिये। पालिका के साथ ही साथ स्वास्थ्य विभाग के औषधि प्रशासन विभाग का भी यह दायित्व है कि उसके मुलाजिम भी जाकर पानी की गुणवत्ता को परखें।
शहर में गन्ने का रस, आईस गोला, मैंगोशेक आदि पेय पदार्थों की दुकानें भी सजना आरंभ हो गयी हैं। यहाँ मिलने वाली सामग्री स्वास्थ्य के लिये कितनी फायदेमंद है और कितनी हानिकारक, इसकी जाँच कौन करेगा। ऋतु परिवर्तन के साथ ही आंत्रशोध, पेट दर्द, डायरिया के मरीजों की तादाद बढ़ती जा रही है।
विडंबना ही कही जायेगी कि चहुंओर महज रस्म अदायगी ही चल रही है। न तो कभी इनका औचक निरीक्षण ही किया गया है और न ही निरीक्षण के छाया चित्र या जाँच प्रतिवेदन को भी सरकारी विज्ञप्तियों के माध्यम से जारी ही किया गया है। इस तरह अराजक माहौल में निःशुल्क मिलने वाला पानी भी लाभ कमाने का जरिया बन चुका है।
पैसा कमाने की अंधी दौड़ में परमार्थ के लिये शीतल पेयजल की प्याऊ जो स्थान-स्थान पर खुलती थीं वे अब इतिहास में तब्दील हो चुकी हैं। शहर में राम दल के द्वारा ही जगह जगह ठण्डे पानी की व्यवस्था की जा रही है। वहीं, बस स्टैण्ड की प्याऊ भी अतिक्रमण के साये में है, क्या किया जा सकता है जब कुंए में ही भांग घुली हो तो . . .!
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