(शरद खरे)
सत्ता में चाहे भाजपा रहे या काँग्रेस पर जिले में अफसरशाही के बेलगाम घोड़े सरपट दौड़ रहे हैं। जिले में अधिकारियों की जवाबदेही (एकाउंटबिलिटी) तय करने के लिये कोई भी नहीं है। जनता के द्वारा सांसद, विधायकों को जनादेश देकर चुना गया है, वे भी मौन हैं। सियासी दलों के नुमाईंदे भी नीरो के मानिंद चैन की बंसी बजाते दिख रहे हैं।
जिले में क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय अस्तित्व में है। यह पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री विमला वर्मा के द्वारा प्रदेश में मंत्री रहते हुए स्वीकृत कराया गया था। उस समय आसपास के जिले के निवासी सिवनी के निवासियों से इसलिये रश्क करते थे क्योंकि प्रदेश सरकार की सबसे ज्यादा सौगातें सिवनी में ही बरसा करती थीं।
उस दौर में सिवनी के क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय के अधीन बालाघाट और छिंदवाड़ा जिले हुआ करते थे। दिग्विजय सिंह के मुख्य मंत्री बनने के बाद जब काँग्रेस के अमरवाड़ा के विधायक प्रेम नारायण ठाकुर को प्रदेश का परिवहन मंत्री बनाया गया था, उस समय उनके द्वारा छिंदवाड़ा और बालाघाट में परिवहन कार्यालय की स्थापना करवायी गयी थी।
बहरहाल, हाल ही में एक अजूबा जैसा मामला सामने आया है। एक यात्री बस को 07 मार्च को बस स्टैण्ड से परिवहन कार्यालय ले जाया जाता है। इसके पीछे दलील दी जाती है कि इस बस के द्वारा टैक्स अदा नहीं किया गया है इसलिये उसे आरटीओ कार्यालय ले जाया गया था। बाद में वाहन मालिक के द्वारा कथित तौर पर टैक्स के कागजात दिखाये जाने पर इसे छोड़ दिया जाता है।
इसके बाद 09 मार्च को इस बस को यातायात पुलिस के द्वारा इसलिये पकड़ा जाता है क्योंकि इसके पास परमिट नहीं था। परिवहन कार्यालय के जिम्मेदार इस बात को स्वीकार तो कर रहे हैं कि 07 मार्च को भी उक्त यात्री बस के पास परमिट नहीं था, फिर इस बस को परमिट के अभाव में सड़कों पर उतरने के लिये कैसे छोड़ दिया गया।
अब तक इस तरह के वाकयात रूपहले पर्दे की फिल्मों में ही देखने को मिला करते थे। निश्चित तौर पर इस मामले में गंभीर चूक तो हुई है। अगर इस यात्री बस के द्वारा कहीं दुर्घटना कारित कर दी जाती तब क्या होता! आश्चर्य तो इस बात पर हो रहा है कि इस मामले के उजागर होने के बाद अब तक किसी भी अधिकारी या कर्मचारी पर कार्यवाही नहीं हुई है।
माना जाता है कि परिवहन कार्यालय में बिना चढ़ौत्तरी किसी तरह का काम नहीं होता, पर इस तरह की गंभीर अनियमितताएं प्रकाश में आने के बाद भी सभी मौन हैं। इस मामले में जिले के दो सांसद, चार विधायक सहित भारतीय जनता पार्टी और काँग्रेस संगठन के नुमाईंदों का मौन भी आश्चर्य जनक ही है। लोगों की मानें तो इस मौन के पीछे अनेक राज भी छुपे हुए हैं।
संवेदनशील जिलाधिकारी प्रवीण सिंह से जनापेक्षा है कि कम से कम वे ही इस मामले की जाँच किसी उप जिलाधिकारी से कराकर इस मामले में दोषी अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही के मार्ग प्रशस्त करें ताकि यह एक नजीर बने और आने वाले समय में इस तरह की गलती करने से पहले अधिकारी, कर्मचारी विचार अवश्य करें।

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