(लिमटी खरे)
हर साल जून और जुलाई के माह में नगर सेना के सैनिकों को किसी जलाशय में ले जाया जाकर उन्हें बारिश में किस तरह आपदा प्रबंधन किया जाता है, इसका प्रशिक्षण दिया जाता है। यह एक सराहनीय पहल मानी जा सकती है पर बारिश के अलावा भी अन्य दिनों में आने वाली आपदाओं से निपटने में किसी के द्वारा भी प्रशिक्षण की दिलचस्पी नहीं दिखायी जाती है। हालात देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो आपदा प्रशिक्षण के नाम पर जिले में सालों से महज़ रस्म अदायगी ही की जाती रही है।
कुछ साल पहले पुराने बायपास पर स्थित साहू कबाड़ी वाले के गोदाम में आग लगी थी। देखते ही देखते आग ने भयावह रूप धारण कर लिया था। उस समय पुराना बायपास बुरी तरह जर्जर अवस्था को प्राप्त कर चुका था, इस जर्जर मार्ग पर हिचखोले खाते आती-जाती दमकल को देखकर लोग मन मसोसकर ही रह गये होंगे।
आग पर लगभग बारह घण्टे में काबू पाया जा सका था। यह तो गनीमत थी कि जिस स्थान पर आग लगी वहाँ आसपास आबादी नहीं थी, वरना यह घटना बड़ी दुर्घटना में भी तब्दील हो सकती थी। शहर के अंदर भी न जाने कितने कबाड़ वालों के अस्थायी गोदाम हैं। मठ मंदिर के समीप पुरानी नस फैक्ट्री के पास माचिस का गोदाम है। शहर के अंदर ही गैस सिलेण्डर से भरे वाहन भी रिहायशी इलाकों में रात भर खड़े दिख जाते हैं।
देखा जाये तो शहर जिंदा बम के मुहाने पर ही बैठा नजर आ रहा है। पता नहीं क्यों प्रशासन के द्वारा आग भड़काने के लिये पर्याप्त माने जाने वाले कबाड़, माचिस आदि के गोदामों को शहर से बाहर स्थानांतरित करने में दिलचस्पी क्यों नहीं दिखायी जाती है। इसके अलावा शहर के अंदर रात में खड़े होने वाले गैस सिलेण्डर के वाहनों पर भी कार्यवाही क्यों नहीं की जाती है!
कहीं भी आग लगने पर नगर पालिका की दमकलों की साँसें फूलती दिखती हैं। अत्याधुनिक दमकल वाहन होने के बाद भी शहर के दमकल भरी गर्मी में लोगों के घरों की टंकियां भरती नजर आती हैं जबकि होना यह चाहिये कि नगर पालिका सहित अन्य स्थानीय निकायों के पास टैंकर में पंप लगाकर इन्हें फायर फाईटर में तब्दील करवा दिया जाये ताकि आपदा की स्थिति में इनका उपयोग किया जा सके।
याद नहीं पड़ता कि जिले में कभी आपदा प्रबंधन को लेकर मॉक ड्रिल का आयोजन किया गया हो। होना यह चाहिये कि समय-समय पर प्रशासन को विकास खण्ड स्तर पर ही सही पर मॉक ड्रिल का आयोजन उसके द्वारा किया जाये। इससे उलट महज रस्म अदायगी के लिये बारिश के पहले बबरिया अथवा किसी अन्य तालाब में नगर सेना के कुछ सैनिकों को ले जाकर कथित तौर पर प्रशिक्षण दिया जाकर उसकी फोटो व समाचारों के प्रकाशन और प्रसारण के साथ ही आपदा प्रबंधन का काम पूरा कर लिया जाता है।
आपदा प्रबंधन महज़ पानी की समस्या तक शायद सीमित नहीं है। इसके लिये जरूरत इस बात की है कि जिले की भौगोलिक स्थितियों और साल दर साल हुए हादसों से सबक लिया जाकर आपदा प्रबंधन के काम को अंजाम दिया जाये। आपदा प्रबंधन दो प्रकार के होते हैं। एक तो आपदा आने के पहले उसे भाँपना और दूसरा आपदा घटित होने के बाद त्वरित राहत प्रदाय करना।
देखा जाये तो सिवनी में आपदा प्रबंधन का एक दल गठित होना चाहिये, जिसमें चिकित्सक, नर्स, वार्ड ब्वॉय, सिविल इंजीनियर, दूरसंचार, बिजली विभाग के अभियंता, अग्नि शमन विशेषज्ञ, तैराक आदि का समावेश हो। केंद्र सरकार के द्वारा आपदा प्रबंध अधिनियम 1995 भी बनाया गया है।
पिछले कुछ सालों में घटी घटनाओं के संबंध में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि गर्मी के मौसम में घटने वाली आग की घटनाओं की संभावनाओं को विशेषज्ञों के द्वारा भाँप लिया जाकर आग न लगे इसके इंतजाम करने की बात अगर सुनिश्चत करवायी जाती तो इस तरह की घटनाओं से बचा जा सकता था। जिले में नरवाई धड़ल्ले से जल रही है पर प्रशासन के द्वारा अब तक एक भी व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही नहीं किये जाने से यही लगता है मानो नरवाई न जलाने के प्रशासन के निर्देश भी महज़ रस्म अदायगी के लिये ही जारी होते हैं।
सरकारी कार्यालयों, यहाँ तक कि जिला चिकित्सालय में भी आग से बचने के उपाय कितने कारगर हैं, हैं भी अथवा नहीं, यह भी शोध का ही विषय है। निजि तौर पर सैकड़ों यात्रियों को लेकर जाने वाली यात्री बस में क्या फायर एक्सटेंग्यूशर लगे हैं? अगर लगे हैं तो क्या इनकी अवसान तिथि निकल चुकी है, यह देखने की फुर्सत क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी को नहीं है।
जिला मुख्यालय में ही इक्कीसवीं सदी के अंतिम दशक में बसी एकता कॉलोनी में अगर कभी कहीं आग लग जाये तो क्या दमकल वाहन अंदर प्रवेश कर पायेगा? अगर नहीं तो नगर पालिका परिषद के द्वारा इसके लिये क्या प्रयास किये गये। इस तरह की एक नहीं अनेक कॉलोनियां हैं जहाँ संकरी सड़कों के कारण दमकल शायद ही घुस पाये।
पता नहीं क्यों सरकारी नुमाईंदों और जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के द्वारा जनता के हितों की सरेआम अनदेखी क्यों की जाती है? सरकारी कर्मचारियों और जनता के चुने हुए प्रतिनिधि शायद यह भूल जाते हैं कि उन्हें मिलने वाला वेतन इसी जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से संचित राजस्व के जरिये मिलता है।
संवेदनशील जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह से जनापेक्षा है कि हाल ही में घटी घटना के मद्देनजर जिले में आपदा प्रबंधन दल का गठन किया जाकर उसमें शामिल अधिकारी कर्मचारियों के नाम जगह-जगह लिखवाये जायें ताकि आपदा की स्थिति में इन लोगों से संपर्क किया जाकर आपदा के पूर्व या उसके बाद फौरी राहत दिलवायी जा सके।
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