(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। आचार्य विद्यासागर महाराज की शिष्या आर्यिका दृढ़मति माता व आर्यिका तपोमति माता समेत 37 माताजी के ससंघ सानिध्य में बड़े जैन मंदिर के समक्ष मानस्तंभ व मंदिर में विराजित प्रथम तीर्थकर भगवान आदिनाथ का जन्म कल्याणक भक्तिभाव के साथ मनाया गया। गुरूकुल जबलपुर से पहुँचे विद्वान पं.त्रिलोक ब्रह्मचारी ने कार्यक्रम का मंच संचालन कर भगवान आदिनाथ का महामस्तकाभिषेक कराया।
शांतिधारा का वाचन आर्यिका दृढ़मति माताजी के मुखारबिंद से हुआ। उन्होंने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ने कहा था कि कृषि करो या ऋषि बनो, दान देने से धन अनंत गुना हो जाता है। वैराग्य की ओर विरले लोग ही बढ़ते हैं और वे महापुरूष बन जाते हैं।
उन्होंने बताया कि आदिनाथ ने जन्म लेकर वन की ओर गमन किया और वे सारे संसार के पूज्यनीय हो गये। माताजी ने कहा कि स्थानीय जैन समाज का सौभाग्य है कि वर्ष 2002 में भी भगवान आदिनाथ का जन्म कल्याणक आर्यिका दृढ़मति माता की प्रेरणा से प्रारंभ हुआ था, तब से हर साल यह महोत्सव भक्तिभाव से मनाया जा रहा है।
मान स्तंभ में हुई शांतिधारा समाज के उत्तम पात्रों में सेठ प्रमोद कुमार, प्रदीप कुमार, नीलेन्द्र जैन छपारा, शीलचंद जैन, प्रभात गोयल, सुदर्शन बाझल, सनत, सुधीर, सुबोध बाझल, निर्मल बाझल ने पीत वस्त्र धारण कर मानस्तंभ में विराजे भगवान आदिनाथ का महा मस्तकाभिषेक व शांतिधारा की। महाआरती पाठशाला परिवार द्वारा की गयी। ब्र.त्रिलोक ने कहा कि जीवन जीने के साथ जीवन को अमर बनाने की कला भगवान आदिनाथ ने ही सिखायी। सुबह श्रीजी को पालकी में विराजित कर प्रभातफेरी निकाली गयी। बड़े जैन मंदिर को इस पर्व पर रोशनाई से जगमगा दिया गया। रात में विश्वशांति की कामना से भक्तामर पाठ का वाचन कर श्रद्धालुओं ने पुण्य संचय किया।
स्थानीय पार्श्वनाथ पाठशाला की प्रशंसा करते हुए माताजी ने कहा कि पाठशाला के चहुँमुखी विकास में आप सभी लोग स्वेच्छा से सहयोग देते रहंे। साथ ही जंगल की सुचारू व्यवस्था के लिये भी माताजी ने समाजजनों को संकेत दिये। इस मौके पर पार्श्वनाथ पाठशाला को चातुर्मास समिति ने दिव्य घोष वाद्ययंत्र प्रदाय किया।