भुलाये नहीं भूलती भद्दू भैया की पान की दुकान

 

 

सिवनी में पदस्थ रहे पुलिस अधीक्षक हरिशंकर सोनी की फेसबुक वाल से

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। अस्सी के दशक में सिवनी जिले में पदस्थ रहे पुलिस अधीक्षक हरि शंकर सोनी उम्र के इस पड़ाव में भी सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय हैं। वर्तमान में वे राजधानी भोपाल में निवासरत हैं। सिवनी में अपनी पदस्थापना के दौरान हुए वाकयात और संस्मरणों को उनके द्वारा सोशल मीडिया फेसबुक पर उकेरा जा रहा है। सिवनी के सुधि पाठकों के लिये पेश है उनके संस्मरणों की श्रृंखला की एक और कड़ी..

सिवनी के 02 मुख्य बाजार शुक्रवारी और बुधवारी हैं जहाँ सप्ताह के उन दो दिनों में बाजार भरा करता था। शुक्रवारी चौक से बुधवारी चौक तक हर वर्ग के लोगों की सदैव अच्छी खासी भीड़ रहा करती थी। आज की ही तरह उन दिनों में भी कुछ युवा पीने पिलाने का शौक़ तो अवश्य पालते थे पर वो भी लुके-छुपे। बड़े बुजुर्गों के सामने खुले आम शराब पीना बड़ा संगीन अपराध माना जाता था।

बीड़ी, सिगरेट और शराब की बू (बदबू) छुपाने के लिये शुक्रवारी चौक के चौरसिया पान भण्डार पर सुगंधित मसाले वाले पान चबाने के बाद ही घर जाने की हिम्मत जुटा पाते थे। वहीं शुक्रवारी में ही भद्दू भैया की पान की प्रसिद्ध दुकान हुआ करती थी जो कि बड़ों के साथ छोटे बच्चों के लिये भी भारी आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी।

इसका कारण था वहाँ मिलने वाली रंग बिरंगी खट्टी मीठी गोलियां, अनारदाने और विभिन्न ख़ुशबूदार मसाले वाले गुटके जिनमें ताजी नारियल की कतरने पड़ी होतीं। पास ही के एक और मुखशुद्धि केंद्र अर्थात पान की दुकान में अक्सर हरिओम शरण के भजन, कभी गज़ल और कभी फिल्मी धुनें गुंजित होती रहती थीं।

ये वही पान की दुकानंे (जिन्हें अक्सर पान मन्दिर पुकारा जाता था) हुआ करती थीं जिनसे उठती मधुर सुगंधित अगरबत्तियों की ख़ुशबू के बीच सारे जहाँ की बातों का मानो एक अंतहीन सिलसिला चलता रहता था। ये पान ठेले ही उन दिनों विचार, विमर्श व हंसी ठहाकों का सर्व सुलभ बेहतरीन ठिये हुआ करते थे।

यहीं शुक्रवारी के पास ही महावीर टॉकीज जाती एक तंग गली में शाम 07 बजे के बाद आपको चटोरों की टोली हाथ में दोना पत्तल लेकर मुँह से सी-सी की आवाज निकालते खड़ी मिल जाती थी। दरअसल, यहाँ पर लगती थी बीरन की प्रसिद्ध चाट की दुकान।

देसी घी की बनी टिक्की और दही पपड़ी उस समय का बेस्ट सेलिंग आयटम हुआ करता था। उन दिनों चूँकि शाम 06 साढ़े छः बजे परिवार के हर सदस्य का रात्री भोजन हो चुका होता था और चाट पकौड़े का फिर एक दूसरा दौर रात को बीरन की दुकान में हुआ करता था।

साथ ही याद आता है, शुक्रवारी में ही जैन मंदिर के पास अड़कू लाल का मिष्ठान भण्डार जहाँ के कुन्दा के पेड़े और देसी घी में ताली करी मूंगफली इतनी स्वादिष्ट हुआ करती थी कि शायद ही सिवनी और आस पास का कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने इसे चखा नहीं होगा।

एक किवदन्ती के अनुसार दुकान के मालिक अड़कू लाल के ऊपर एक सिद्ध जिन्न मेहरबान हो गया थे जिसने उन्हें इतनी बरकत दे डाली की जो सम्हाले नहीं सम्हलती थी। एक अफवाह ऐसी भी थी कि हर रात के आखिरी प्रहर में कोई पीर साहब अथवा वही जिन्न सफेद झक्क घोड़े में बैठकर उनके पेड़े खाने जरूर आता था। दुःख की बात है कि उनके पुत्र ठाकुर दास जैन (ढब्बू) के बाद की पीढ़ी का एक सदस्य शराब के नशे के आगोश में खो गया और वह पहले वाली बरक्कत बरकरार नहीं रह सकी।