सदी पुराना है राम रावण युद्ध का इतिहास

 

 

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। संभाग और प्रदेश में भव्यता के साथ मनाये जाने वाले दुर्गाेत्सव में सिवनी का नाम भी शामिल है। 10 दिवसीय इस पर्व के समापन दिवस विजयादशमी के दिन निकलने वाला चल समारोह अपनी एकरूपता के लिये जाना पहचाना जाता है।

जानकार बताते हैं कि एक समय नगर में अधिकतम 15 मूर्तियां स्थापित की जातीं थीं और इनमें एकमात्र कालीजी की प्रतिमा हुआ करती थी। विजयादशमी के दिन प्रतिमाओं के विसर्जन हेतु निकलने वाला चल समारोह लोगों के आकर्षण का केन्द्र होता है। इस आकर्षण में एक महत्वपूर्ण भूमिका रामदल की भी हुआ करती है।

विगत कई वर्षों से रामदल समिति द्वारा नेहरू रोड स्थित सेठ परमानंद अग्रवाल के घर के सामने वाली गली में बांसों की कमचियों से रावण का विशालकाय पुतला बनाया जाता था। ब्राह्मण पुत्रों को राम, लक्ष्मण और हनुमान के रूप में सजाया जाता था। रामदल द्वारा राम – रावण युद्ध की चलित झाँकी विजयादशमी के दिन निकाले जाने की परंपरा 100 साल से भी अधिक पुरानी है।

जानकारों ने बताया कि बहुत पहले राम – रावण की इस चलित झाँकी निकालने की जो परंपरा थी, उसके अनुसार नेहरू रोड से बुधवारी होते हुए शंकर मढ़िया, मंगलीपेठ, महावीर मढ़िया से इसे नगर के ऐतिहासिक और सिद्ध मठ मंदिर में ले जाया जाता था।

यहाँ शिव पूजन करने और नीलकण्ठ के दर्शन करने के बाद ढोल, शहनाई और टिमकी की धुन के बीच रावण का दहन किया जाता था। इसके बाद पहलवानों की कुश्ती आरंभ होती थी। उस दौरान जीतने और हारने वाले दोनों ही पहलवानों को पुरूस्कार के रूप में क्रमश पाँच और दो रुपये की राशि दी जाती थी।

सिवनी में पुलिस अधीक्षक के बतौर पदस्थ रहे हरी शंकर सोनी ने बताया कि उनके समय में रावण दहन की परंपरा का आगाज़ नगर पालिका परिषद के कार्यालय के सामने किया जाने लगा था। कालांतर में यह परंपरा जारी रही किन्तु अब कुछ सालों से रावण दहन का कार्यक्रम मिशन स्कूल के सामने दशहरा मैदान में किया जाने लगा है।