अपनी जर्ज़रावस्था पर आँसू बहा रहा हिन्दी मेनबोर्ड स्कूल

 

 

करोड़ों की बेशकीमति जमीन पर हैं लोगों की नज़रें!

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। अपने आँचल में गौरवशाली इतिहास संजोने वाले ब्रितानी हुकूमत के हिन्दी मेनबोर्ड स्कूल का भवन जर्ज़र अवस्था में पहुँच चुका है। जिले में शालाओं के नवीन भवन तो बन रहे हैं पर शिक्षा के इस प्राचीन मंदिर के भवन का न तो जीर्णाेद्धार ही किया जा रहा है और न ही नवीन भवन बनाने की कार्यवाही को ही अंजाम दिया जा रहा है।

जानकारों का कहना है कि ब्रितानी हुकूमत के शासन काल में वर्ष 1863 में हिन्दी मेन बोर्ड नामक प्राथमिक शाला को आरंभ कराया गया था। उस दौर में हिन्दी में शिक्षा दिये जाने वाली शालाओं में हिन्दी मेन बोर्ड का अपना अलग ही महत्व हुआ करता था। इक्कीसवीं सदी तक इस शाला में पढ़े हुए अनेक विद्यार्थी आज देश प्रदेश में महत्वपूर्ण स्थानों पर कार्य करते हुए इस शाला के गौरवशाली इतिहास को याद किया करते हैं।

सरकारी शालाओं में जबसे अध्ययन अध्यापन का स्तर गिरा है उसके बाद से सरकारी शालाओं से विद्यार्थियों का मोहभंग होना आरंभ हुआ। एक डेढ़ दशक में सरकारी शालाओं में अध्ययन अध्यापन के स्तर में सुधार के साथ ही सरकारी शालाओं की रौनक एक बार फिर लौटती दिख रही है।

मजे की बात तोे यह है कि स्व.सुश्री विमला वर्मा, स्व.महेश शुक्ला, स्व.ठाकुर हरवंश सिंह, प्रभा भार्गव, उर्मिला सिंह, डॉ.ढाल सिंह बिसेन आदि के प्रदेश में कद्दावर मंत्री रहते हुए भी हिन्दी मेन बोर्ड शाला के जर्जर भवन की सुध किसी के द्वारा नहीं ली गयी। इस शाला में अध्ययन कर चुके विद्यार्थियों को इस शाला की जर्ज़र अवस्था को देखकर दुःख अवश्य ही होता है।

नगर पालिका के द्वारा इस शाला के एक कक्ष को सार्वजनिक वाचनालय के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। बाद में इस सदी के आरंभ में तत्कालीन त्रिविभागीय मंत्री स्व.हरवंश सिंह के द्वारा सार्वजनिक वाचनालय के साथ ही साथ यहाँ डिजीटल लाईब्रेरी का श्रीगणेश भी करवाया गया था।

जानकारों का कहना है कि इस शाला के स्वामित्व में जितना भूखण्ड है उसकी आज बाजारू कीमत करोड़ों रूपयों से कम नहीं है। इस जमीन पर व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स के निर्माण का ताना बाना भी बुना जाने लगा है। अगर यहाँ कॉम्प्लेक्स बनाया गया तो शाला के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग सकते हैं।

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