(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। होली शब्द जेहन में आते ही सारा जहाँ रंगों से सराबोर दिखायी पड़ने लगता है। लगता है मानो कुदरत की सबसे अनुपम भेंट धरती और हम इंसानों सहित समूचे पशु पक्षी रंगों से नहा गये हों। होली का पर्व आते आते ही मन आल्हादित हो उठता है। युवाओं के मन मस्तिष्क में न जाने किस्म – किस्म की भावनाएं हिलोरे मारने लगती हैं। प्रौढ़ और वृद्ध भी साल भर रंगों के इस त्यौहार की प्रतीक्षा करते हैं। सबसे बड़ी और अच्छी बात तो यह है कि देश के हर धर्म, वर्ग, मजहब के लोग होली का पूरा सम्मान कर एक दूसरे से गले मिलने से नहीं चूकते हैं।
भारत को समूचे विश्व में अचंभे की नजरों से देखा जाता है। इसका कारण यह है कि यहाँ हर 20 किलोमीटर की दूरी पर बोलचाल की भाषा में कुछ न कुछ परिवर्तन दिखने लगता है। हिन्दुस्तान ही इकलौता एसा देश है जहाँ हर धर्म, हर पंथ, हर मजहब को मानने की आजादी है। दुनिया भर के लोग आश्चर्य इस बात पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि आखिर कौन सी ईश्वरीय ताकत है जो इतने अलग – अलग धर्म, पंथ, विचार, मजहब के लोगों को एक सूत्र में पिरोये रखती है।
अगर देखा जाये तो भारत कुदरत की इस कायनात का एक सबसे दर्शनीय, पठनीय, श्रृवणीय करिश्मा होने के साथ ही साथ महसूस करने की विषय वस्तु से कम नहीं है, यही कारण है कि हर साल लाखों की तादाद में विदेशी सैलानी यहाँ आकर इन्हीं सारी बातों के बारे में अध्ययन, चिंतन और मनन करते हैं। भारत के अंदर फैली ऐताहिसक विरासतों में विदेशी सैलानी बहुत ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं।
भारत के अनेक प्रांतों में होली को अलग – अलग नामों से जाना जाता है। पर्व एक है, उल्लास भी कमोबेश एक ही जैसा होता है, बस नाम ही जुदा है। इसके साथ ही साथ इसे मनाने का अंदाज भी बहुत ज्यादा हटकर नहीं है। अगर आप इब्नेबबूता (मुगल कालीन धुमक्कड़) बनकर समूचे देश की सैर करें तो आप पायेंगे कि वाकई होली एक है, भावनाएं एक हैं, प्रेम का इजाहर कमोबेश एक सा है, बस अंदाज कुछ थोडा मोड़ा जुदा है।
धुरैड़ी : होली शब्द के कान में गूंजते ही देवर भाभी के बीच की नोक झोंक, छेड़ छाड़ के फिल्मी दृश्य जेहन में जीवंत हो उठते हैं। वैसे तो देश के अनेक भागों में देवर भाभी के बीच होने वाले पंच प्रपंच को होली से जोडकर देखा जाता है, पर हरियाणा में इसका बहुत ज्यादा प्रचलन है। मजे की बात यह है कि हरियाणा में इस दिन भाभी को देवर की पिटाई करने का सामाजिक हक मिल जाता है। इस दिन भाभी द्वारा पूरे साल भर की देवर की करतूतों हरकतों के हिसाब से उसकी पिटाई की जाती है। दिन ढलते ही शाम को लुटा पिटा देवर भाभी के लिये मिठाई लाता है।
फाग पूर्णिमा : बिहार में होली को फाग पूर्णिमा भी कहा जाता है। दरअसल फाग का मतलब होता है, पाउडर और पूर्णिमा अर्थात पूरे चाँद वाला। बिहार में शेष हिन्दुस्तान की तरह आम तरह की ही होली मनायी जाती है। फिल्म नदिया के पार में दिखायी होली बिहार में खेले जाने वाले फगवा की ओर इशारा करती है। बिहार में होली को फगवा इसलिये भी कहते हैं क्योंकि यह फागुन मास के अंतिम हिस्से और चैत्र मास के शुरूआती समय में मनायी जाती है।
डोल पूर्णिमा : पश्चिम बंगाल में युवाओं द्वारा मनायी जाने वाली होली को डोल पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सुबह से ही केसरिया रंग का लिबास पहनकर युवा हाथों में महकते फूलों के गजरे और हार लटकाये हुए नाचते गाते मोहल्लों से होकर गुजरते हैं। कुछ स्थानों पर युवा पालकी में राधा कृष्ण की तस्वीर या प्रतिमा रखकर सज धजकर उल्लास से झूमते नाचते हैं।
बसंत उत्सव : पश्चिम बंगाल मेें इस उत्सव की शुरूआत नोबेल पुरूस्कार प्राप्त साहित्यकार गुरू रविंद्रनाथ टैगोर ने की थी। गुरूदेव के द्वारा स्थापित शांति निकेतन में बसंत उत्सव का पर्व बहुत ही सादगी और गरिमा पूर्ण तरीके से मनाया जाता है। शांति निकेतन के छात्र छात्राएं न केवल पारंपरिक रंगों से होली खेलते हैं, बल्कि गीत संगीत, नाटक, नृत्य आदि के साथ बसंत ऋतु का स्वागत करते हैं।
कमन पंडिगाई : तमिलनाडू में होली का पर्व कमन पंडिगाई के रूप में भी मनाया जाता है। तमिलनाडू में होली पर भगवान कामदेव की अराधना और पूजा की जाती है। यहाँ मान्यता है कि भोले भण्डारी भगवान शिव ने जब कामदेव को अपने कोप से भस्म किया था, तो इसी दिन कामदेव की अर्धांग्नि रति के तप, प्रार्थना और तपस्या के उपरांत भगवान शिव ने उन्हें पुर्नजीवित किया था।
शिमगो : मूलतः शिमगो गोवा के इर्द गिर्द ही मनाया जाता है। महाराष्ट्र की कोंकणी भाषा में होली को शिमगो का नाम दिया गया है। शेष भारत की तरह गोवा के लोग भी रंगों को आपस में उडेलकर बसंत का स्वागत करते हैं। इस पर्व पर ढेर सारे पकवान बनाये जाते हैं, आपस में बांटे जाते हैं। खासतौर पर पणजिम में यह त्यौहार बहुत ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक और पौराणिक कथाओं पर आधारित नाटकों का मंचन भी इसी दिन किया जाता है।
होला मुहल्ला : पंजाब में होला मुहल्ला का इंतजार हर किसी को होता है। यह होली के दूसरे दिन आनंदपुर साहिब में लगने वाले सालाना मेले का नाम है। मान्यता है कि होला मुहल्ला की शुरूआत सिख पंथ के दसवें गुरू, गुरू गोविंद सिंह जी द्वारा की गयी थी। तीन दिन तक चलने वाले इस पर्व के दौरान सिख समुदाय के लोग खतरनाक खेलों का प्रदर्शन कर उनके माध्यम से अपनी ताकत और क्षमताओं का प्रदर्शन करते हैं।
रंग पंचमी : समूचे महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल सहित मालवा अंचल में होली का जश्न और सुरूर एक दो नहीं पूरे पाँच दिन होता है। होलिका दहन के दूसरे दिन धुरैड़ी से लेकर रंग पंचमी तक लोग होली पूरे शबाब पर होती है। धुरैड़ी के उपरांत लोग पाँचवा दिन अर्थात रंग पंचमी का बेसब्री से इंतजार करते हैं। प्रदेश के कुछ भागों में तो होली से ज्यादा आनंद रंग पंचमी का लिया जाता है। राज्य मेें खासतौर पर मछुआरा समुदाय इस पर्व को बडी ही धूमधाम के साथ मनाता है। वे जोरशोर से नाचते गाते बजाते हैं। इस दिन हुई शादी को वे बहुत ही शुभ मानते हैं।