पेनीवाइस एक ऐसा विलेन है, जिसने गुब्बारे जैसी नाजुक चीज को भी डर का पर्याय बना दिया था। साल 2017 में रूपहले पर्दे पर रिलीज फिल्म ‘इट’ के जरिये यह हम सबसे मिला था। मीठी-मीठी बातों के जाल में छोटे बच्चों को फंसा कर उन्हें मार डालने वाला स्टीफन किंग के उपन्यास का यह खौफनाक जोकर एक अलग किस्म के डर का पर्याय बन गया था।
साल 1989 के दौर को दर्शाने वाली इस फिल्म में ‘लूजर्ज क्लब’ के किशोर सदस्यों की भी कहानी थी, जो कहीं न कहीं अपनी-अपनी जिंदगियों में अलग-अलग किस्म के डर का सामना कर रहे थे। बेवरली का उसके अपने पिता शारीरिक शोषण करते थे। बेन एक अधिक वजन वाला बच्चा था, जिसे स्कूल में बुलींग का सामना करना पड़ता था।
बिल अपने प्यारे छोटे भाई जॉर्जी की (पेनीवाइस के हाथों हुई) मौत का जिम्मेदार खुद को मानता था। रिची हमेशा दूसरों से कड़े शब्द बोलने की वजह से मुश्किल में फंस जाता था। माइक अपने माता-पिता को खोने और उन्हें बचा न पाने के गम से जूझ रहा था। एडी अपनी मां का लाडला था जो बीमार होने से बहुत डरता था। स्टैनली को ऊंचाई से बहुत डर लगता था। 27 साल पहले किशोरों के समूह ‘दि लूजर्स क्लब’ ने पेनीवाइस जोकर को हराकर एक तरह से अपने-अपने डर को भी हराया था। तब इस क्लब के सभी सात सदस्यों ने वादा किया था कि अगर पेनीवाइस कभी वापस आया तो वे सब भी डेरी वापस आएंगे।
इस फिल्म के हालिया रिलीज दूसरे भाग में लूजर्स क्लब के सभी सदस्य बड़े हो चुके हैं और अपनी-अपनी जिंदगियों में आगे बढ़ चुके हैं। उधर पेनीवाइस एक बार फिर डेरी कस्बे में लौट आया है। कस्बे से बच्चे गायब होने लगे हैं, दिल दहला देने वाले तरीकों से हत्याएं हो रही हैं। ऐसे में डेरी में ही रहने वाला क्लब का एक सदस्य माइक हैनलन (आइजीया मुस्तफा) बाकी के सदस्यों बिल (जेम्स मैकवॉय), बेवर्ली (जेसिका कैस्टेन), बेन (जे रायन), रिची (बिल हादेर), एडी (जेम्स रैनसन) और स्टैनली (एंडी बीन) से बातकर उन्हें उनका वादा याद दिलाता है। स्टैनली, बिल का फोन आने के कुछ समय बाद ही रहस्यमय हालात में आत्महत्या कर लेता है। क्लब के बाकी सदस्य थोड़ी ना-नुकर के बाद डेरी आते हैं। उनके आते ही अजीबोगरीब वाकये होने लगते हैं। तय होता है कि सभी डेरी में अपने बचपन से जुड़ी कोई न कोई चीज तलाशेंगे और फिर आदिवासियों की एक रस्म के जरिये पेनीवाइस को खत्म करेंगे। पर पेनीवाइस तो पेनीवाइस है। इस बार भी वह तरह-तरह के पैंतरे अपनाकर क्लब के सदस्यों को भरमाने की आदत नहीं बदलता। एक बार फिर लूजर्स क्लब और पेनीवाइस की भिड़ंत होती है।
इट एक ऐसी फिल्म थी जिसने लंबे समय बाद डर के पारंपरिक प्रतीकों को बदलने की हिम्मत जुटाई थी। साथ ही इसमें किशोरों से जुड़ी समस्याओं,जैसे बुलींग, शारीरिक शोषण, आत्मविश्वास की कमी जैसे मुद्दों पर भी बेहद रोचक अंदाज में बात की गई थी। सातों किरदारों की आपसी केमिस्ट्री कमाल की थी, जो फिल्म के दूसरे हिस्से में एकदम नदारद नजर आती है। दूसरे भाग में निर्देशक एंडी मस्क्यटी रोचकता का वह स्तर कायम नहीं रख पाए, जबकि पहली फिल्म का निर्देशन भी उन्होंने ही किया था। फिल्म में चौंकाने वाले तत्वों का अभाव है, जो किसी भी हॉरर फिल्म के लिए जरूरी होता है। फिल्म की शुरुआत बेहद सधी हुई है, पर जैसे-जैसे यह आगे बढ़ती है, इसका कसाव ढीला पड़ता जाता है। केको वरेस की सिनेमेटोग्राफी कमाल की है। कुछ दृश्यों का फिल्मांकन बेहद प्रभावित करने वाला है, जैसे बेवर्ली का अपने पुराने घर जाने वाला दृश्य। कलाकारों ने एक्टिंग भी अच्छी की है। पेनीवाइस के रूप में बिल स्कार्सगार्ड प्रभावित करते हैं। हालांकि 169 मिनट की फिल्म की लंबाई को कम किया जा सकता था।
(साई फीचर्स)