(अजीत कुमार)
केंद्र सरकार ने 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान किया है। इसके पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक संवाद कार्यक्रम में लोगों से कहा कि कोरोना वायरस के संकट से लड़ने का यह सबसे अच्छा और जरूरी उपाय है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक जरूरी और अच्छा उपाय है पर इस हकीकत को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि सिर्फ लॉकडाउन से कोरोना वायरस खत्म नहीं होने वाला है। प्रधानमंत्री ने महाभारत का उद्धरण देते हुए कहा कि महाभारत की लड़ाई 18 दिन में जीती गई थी और कोरोना के खिलाफ युद्ध 21 दिन में जीता जाएगा। एक मिसाल के जरिए युद्ध जीतने की बात कहना और देश के लोगों को भरोसा दिलाना, उनका उत्साह बढ़ाना एक बात है। पर अगर सचमुच सरकार ऐसा मान रही होगी कि 21 दिन के लॉकडाउन से वायरस के खिलाफ युद्ध जीता जाएगा तो बड़ा धोखा हो सकता है।
सबसे पहले इस बात को समझने की जरूरत है कि लॉकडाउन से असल में क्या हासिल होगा? लॉकडाउन के जरिए सोशल डिस्टेंसिंग कराना का पहला हासिल तो यह है कि कोरोना वायरस के संक्रमण की स्पीड कम हो जाती है। यह स्पीड कितनी कम होगी, इसका पता पांचवें दिन लगेगा। यानी लॉकडाउन शुरू होने के बाद पांचवें दिन वायरस संक्रमण के जो नए केसेज आएंगे उनसे पता चलेगा कि यह कितना कारगर होता है, इसके फैलने की स्पीड कितनी कम होती है। ध्यान रहे अभी पांच दिन में भारत में केसेज दोगुने हो रहे हैं। सो, 29 या 30 मार्च को आने वाले नए केसेज से असल असर का पता चलेगा।
लॉकडाउन से अगर नए केसेज की संख्या कम होती है, संक्रमण की स्पीड घटती है तो सबसे बड़ा फायदा यह है कि चिकित्सा सेवा पर दबाव कम होगा। अस्पतालों में पहुंचने वाले मरीजों की संख्या कम होगी। हालांकि इसमें खतरा यह है कि लॉकडाउन की वजह से दूसरी बीमारियों के मरीजों का अस्पताल जाना भी कम होगा और उनके लिए खतरा पैदा हो सकता है। वह एक अलग संकट है, जिसके बारे में सरकार को अलग से सोचने की जरूरत है। फिलहाल सबसे बड़ी चिंता कोरोना वायरस की है तो लॉकडाउन से संक्रमण घटेगा और उससे अस्पतालों पर दबाव कम होगा। पर सवाल है कि अस्पतालों पर दबाव कम होने का वास्तविक फायदा क्या होगा? क्या इससे कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा? असलियत यह है कि इससे वायरस खत्म नहीं होगा। वायरस खत्म करने के लि इससे लड़ने की दवा खोजनी होगी और टीका तैयार करना होगा।
इसका वास्तविक फायदा तभी होगा, जब इन 21 दिनों का इस्तेमाल वायरस से लड़ने के उपाय खोजने के लिए किया जाए। सवाल है कि उपाय कैसे मिलेगा? उपाय ऐसे मिलेगा कि चिकित्सा सेवा, अस्पतालों और डॉक्टरों पर दबाव कम होने पर उन्हें जांच के काम में लगाया जा सकता है। ध्यान रहे दुनिया भर के जानकार इस वायरस से लड़ने के दो ही उपाय बता रहे हैं। एक ट्रेस और दूसरा टेस्ट। यानी जो इससे संक्रमित है उसकी खोज या पहचान करना और ज्यादा से ज्यादा लोगों की जांच करना। इसके लिए दक्षिण कोरिया का मॉडल सबसे कारगर बताया जा रहा है, जिसने दस लाख लोगों पर 61 सौ लोगों की जांच की। अभी भारत में दस लाख लोगों पर सिर्फ 16 लोगों की जांच हो रही है।
अब इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च, आईसीएमआर ने जांच के घरेलू किट के व्यवसायिक इस्तेमाल की मंजूरी दी है और इसकी खरीद का ठेका भी निकाला है। जितनी जल्दी ये किट अस्पतालों को उपलब्ध कराए जाएं उतना अच्छा होगा। बेहतर यह होगा कि जल्दी से जल्दी इसे खरीद कर इसका इस्तेमाल शुरू हो ताकि लॉकडाउन से घटे दबाव के दौरान ही अधिकतम संक्रमितों का पता लगाया जा सके। ऐसा इसलिए संभव है क्योंकि ज्यादातर लोग इस समय आइसोलेशन में हैं। सब अपने घरों में हैं। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं। ऐसे में ज्यादा लोगों की जांच और संक्रमितों का पता लगाना आसान है। उनका पता लगाने के बाद इलाज में ज्यादा मुश्किल नहीं आएगी। लेकिन अगर सरकार यह मानती रही कि लॉकडाउन से वायरस के संक्रमण की चेन टूट जाएगी और यह अपने आप खत्म हो जाएगा तो ऐसा नहीं होने वाला है। यह अपने आप नहीं खत्म होगा। इसे खत्म करना होगा। आगे बढ़ कर मारना होगा और उससे पहले इससे संक्रमित तमाम लोगों की पहचान करनी होगी। अच्छा है, जो 80 फीसदी से ज्यादा संक्रमित खुद ही ठीक हो रहे हैं। इसके आगे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया भर के देशों को लॉकडाउन के समय की सदुपयोग करने की सलाह दी है। उसके हिसाब से इससे जो अवसर बना है, उसका बेहतर इस्तेमाल किया जाए। आइसोलेशन में रखे गए लोगों को खोजा जाए, उनकी जांच की जाए और उनका इलाज किया जाए।
इन 21 दिनों में जब मरीजों की संख्या कम होगी या चिकित्सा सेवा पर दबाव कम होगा तब सरकार को इमरजेंसी स्थिति के लिए तैयारी करनी चाहिए। प्रधानमंत्री जब खुद ही कह रहे हैं कि ऐसा मान लेना कि सब कुछ ठीक हो गया, सही नहीं होगा तो उन्हें इन 21 दिनों में इमरजेंसी स्थिति की तैयारी कर लेनी चाहिए। ज्यादा से ज्यादा अस्थायी अस्पतालों का इंतजाम होना चाहिए, वेंटिलेटर की व्यवस्था करनी चाहिए, आईसीयू बेड्स की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए और अगर नियम बदलने की जरूरत हो तो उसे बदल कर ज्यादा से ज्यादा डॉक्टरों, नर्सों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए। कई जानकार यह सुझाव दे रहे हैं कि अगर मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया के कुछ नियम बदल जाएं तो डेढ़ लाख डॉक्टर और नर्सें अभी उपलब्ध हो सकती हैं। सरकार को इस बारे में भी विचार करना चाहिए। हो सकता है कि इनके इस्तेमाल की जरूरत न आए पर इस 21 दिन के विंडो का सही इस्तेमाल करते हुए पूरी तैयारी करके रखने में हर्ज नहीं है।
(साई फीचर्स)

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