भारतीय और पाकिस्तानी, दोनों ही लोकतंत्रों में वंशों की परंपरा आम है। वंश और लोकतंत्र साथ-साथ नहीं चल सकते। जहां पाकिस्तान में लोकतंत्र हमेशा से ही एक कमजोर विचार रहा है, वहीं भारत में जनप्रतिनिधित्व के विचार ने यहां तक बदलाव कर दिया है कि वहां बहुमत की मनमानी रोजमर्रा की बात है। हालांकि भारत में लोकतंत्र की गिरावट में वंशवाद की भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। शुक्र है, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से हटने का फैसला लिया। वर्ष 2019 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के हाथों कांग्रेस की हार के बाद यह बहुत जरूरी कदम था।
लेकिन राहुल गांधी के इस्तीफे से एक सवाल भी खड़ा होता है, क्या नरेंद्र मोदी के भारत में कांग्रेस पार्टी का कोई भविष्य है? पिछला चुनाव जनप्रतिनिधियों के चुनाव से कहीं अधिक व्यक्तित्वों के बीच लड़ा गया चुनाव था, जिसमें नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी को पछाड़ दिया। मोदी के व्यक्तित्व की अपील और करिश्मा के मुकाबले राहुल गांधी और कांग्रेस को हार नसीब हुई है। कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के लिए जिम्मेदारी स्वीकार करना वाकई राहुल गांधी के लिए बहादुरी का काम है। हालांकि अगर कांग्रेस पार्टी वंशवादी राजनीति से बंधी रहती है, तो राहुल गांधी के पद छोड़ देने मात्र से पार्टी को फायदा नहीं होगा।
आज के समय में जब भीड़ तंत्र भारतीय राजनीति को परिभाषित कर रहा है, तब भारत में कांग्रेस का भविष्य कमजोर है। वर्तमान संकट से उबरने के लिए सबसे पुरानी और भारत पर 55 वर्ष राज करने वाली पार्टी का नेतृत्व राहुल गांधी को अपने निर्णय पर बने रहने दे। यह समय है, जब पार्टी को एक नई विचारधारा की परिकल्पना करनी चाहिए। कांग्रेस को भारतीय राजनीति की सेकुलर परंपराओं को भी पुनर्परिभाषित करना चाहिए। निस्संदेह, नेहरू-गांधी परिवार के बिना कांग्रेस अकल्पनीय है, लेकिन गांधी अब तक पार्टी के लिए गहरा नुकसान साबित हुए हैं। कांग्रेस को अब एक नया चेहरा और नया संदेश चाहिए, तभी वह वर्तमान संकट से उबर पाएगी। (द नेशन, पाकिस्तान से साभार)
(साई फीचर्स)

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