आर यू सिंपल वेजीटेरियन या हिन्दू वेजीटेरियन?

 

 

0 जापान जैसा मैंने जाना . . . 02

(ब्यूरो कार्यालय)

भोपाल (साई)। भारतीय सूचना सेवा के वरिष्ठ अधिकारी एवं आकाशवाणी भोपाल के संपादक संजीव शर्मा पिछले महीनों जापान की यात्रा पर थे। वे वहाँ जी-20 देशों के महासम्मेलन में शिरकत करने भारत सरकार की ओर से गये थे। इस दौरान जापान यात्रा के संस्मरण उन्होंने सोशल मीडिया पर साझा किये हैं। पेश है पाठकों के लिये उनके संस्मरण की दूसरी किश्त :

कैथी पैसिफिक एयर लाईन्स के विमान में खाना परोसते हुए एयर होस्टेस ने पूछा – यू आर वेजीटेरियन? मेरे हाँ कहते ही उसने तत्काल दूसरा सवाल दागा- विच टाइप ऑफ वेजीटेरियन, मीन्स सिंपल वेजीटेरियन या हिन्दू वेजीटेरियन? अपनी लगभग ढाई दशक की नौकरी में यह सवाल चौंकाने वाला था क्योंकि अब तक तो शाकाहारी का एक ही प्रकार अपने को ज्ञात था। अब शाकाहार भी हिन्दू – मुस्लिम टाइप होता है इसकी जानकारी जापान यात्रा के दौरान ही मिली।

खैर मैंने बताया कि हिन्दू वेजीटेरियन तो उसने कहा कि आपको 20 मिनिट इंतज़ार करना होगा क्योंकि मुझे आपके लिये खाना पकाना पड़ेगा! अब सोचिये विदेशी विमान में कोई विदेशी व्योमबाला (एयर होस्टेस) कहे कि मैं आपके लिये खाना बनाकर लाती हूँ तो दिल में लड्डू फूटना स्वाभाविक है। लगभग 20-25 मिनिट के इंतज़ार के बाद वह बटर में बघारी हुई खिचड़ी, चने की दाल और रोटी के नाम पर ब्रेड के टुकड़े लेकर हाज़िर हुई।

उसने भरसक प्रयास किया था कि खाना स्वादिष्ट रहे और अपन ने भी दबाकर खा लिया ताकि उसे भी महसूस हो कि खाना स्वादिष्ट ही था। ..खैर इस एक किस्से से यह तो साफ़ हो गया था कि जापान में शाकाहार के लिये संघर्ष करना पड़ेगा और दूसरा यह कि यात्रा पर रवानगी से पहले ईष्ट मित्रों की बात सही लग रही थी जो उन्होंने अपने और अपनों के अनुभव के आधार पर बतायी थी कि जापान में तुम्हें उपवास करना पड़ सकता है।

अब जब मैदान में कूद पड़े तो फिर जंग से क्या डरना इसलिये जो जैसा मिलेगा – काम चला लेंगे, के अंदाज़ में मन बना लिया। अब निश्चित ही आप सभी के मन में यह सवाल उछल रहे होंगे कि फिर वहाँ क्या खाया तो सबसे पहले तो सुन और जान लीजिये कि हमने वहाँ शाही पनीर, दाल मखनी, रसगुल्ला, गुलाब जामुन, खिचड़ी, सोन – पपड़ी, आलूबण्डा, पोहा, उत्पम और इडली सहित वो सब कुछ खाया जो यहाँ भारत में खाने को मिलता है और उतना ही स्वादिष्ट क्योंकि मोदी है तो मुमकिन है।

जी हाँ, इसमें जरा भी गलत नहीं है क्योंकि जापान में प्रधानमंत्री श्री मोदी के कारण ही यह मुमकिन हुआ। दरअसल हमारे प्रधानमंत्री ठहरे हम से ज्यादा शाकाहारी इसलिये जापान की जिस होटल में हम लोग ठहरे थे, उसने भारत से खासतौर पर रसोइये बुलाये थे और जब रसोइये भारतीय थे तो स्वाद भी भारतीय था और अंदाज़ भी, लेकिन जापान में खाने का मामला इतना सीधा भी नहीं था क्योंकि इस कहानी का दूसरा हिस्सा भी है जिसमें ज़रूर जापान में शाकाहारी खाने के संकट का अहसास होता है।

दरअसल होटल में तो भारतीय रसोइये की मेहरबानी से शाकाहारी भोजन मिल गया लेकिन अंर्तराष्ट्रीय मीडिया सेंटर में तो दुनियाभर के लोगों का ध्यान रखा गया था इसलिये वहाँ शाकाहार और विशेष तौर पर हिन्दू शाकाहार(!) कहीं पीछे रह गया। मीडिया सेंटर में अपना खाना तो दूर अपनी चाय (वही दूध – शक्कर और पत्ती की जुगलबंदी से भरपूर खौलने के बाद तैयार) के लिये भी तरसना पड़ा। वैसे तो जापान में वीआईपी मेहमानों को 24 प्रकार की चाय उपलब्ध थी जिसमें कई अबूझ नामों के बीच हमारी दार्जिलिंग चाय और आइस टी जैसे कुछ जाने माने नाम भी शामिल थे लेकिन वही अपनी असल कड़क – खौलती चाय नहीं थी।

चाय के अलावा कॉफ़ी के भी दर्जन भर प्रकार थे जिनमें ओसाका के स्थानीय ब्राण्ड के अलावा 20 देशों के 20 दाने जैसी उत्तम किस्म की कॉफ़ी भी थी लेकिन दिक्क़त यहाँ भी दूध की थी और बिना दूध के कड़वी कॉफ़ी को हलक से नीचे उतारना अपने लिये तो किसी सज़ा की तरह है। हालांकि यहाँ कॉफ़ी के एक प्रकार कॉफ़ी लैटे ने मदद की क्योंकि इसमें पर्याप्त दूध होता है और इस तरह कुछ हद तक चाय – कॉफ़ी का संकट दूर हुआ। (क्रमशः जारी)

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