(शरद खरे)
शहर में आवारा मवेशी, कुत्ते, सूअर, गधे धमाचौकड़ी मचा रहे हैं और नगर पालिका की चुनी हुई परिषद आँख बंद कर नीरो के मानिंद चैन की बंसी बजाती दिख रही है। सरकारी तनख्वाह पाने वाले अधिकारी कर्मचारी भी इस दिशा में संजीदा नहीं दिख रहे हैं। नागरिक हलाकान हैं, पर उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। कुल मिलाकर यह कहा जाये कि पालिका में अराजकता पूरी तरह हावी हो चुकी है तो अतिश्योक्ति नहीं होगा।
शहर भर में आवारा मवेशी, कुत्ते गधे, सूअर इस तरह घूम रहे हैं मानो इन्हें रोकने टोकने वाला कोई नहीं है। और तो और जिला चिकित्सालय में भी ये आवारा पशु दिन रात धमाचौकड़ी मचाये रहते हैं। बारिश का मौसम कुत्तों के लिये प्रजनन का मौसम माना जाता है, इस मौसम में कुत्ते हिंसक भी हो उठते हैं।
मोहल्लों में आवारा कुत्तों की टोलियां घूमती दिख जाती हैं। देर रात श्वानोें के आपस में होने वाले वर्चस्व के संघर्ष के कारण निकलने वाली आवाजें लोगों को डराती नजर आती हैं। इसी तरह सड़कों पर रात दिन आवारा मवेशी पसरे बैठे दिख जाते हैं।
पता नहीं नगर पालिका परिषद के चुने हुए पार्षद, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सरकारी तनख्वाह पाने वाले अधिकारी कर्मचारी किन दीगर जरूरी कार्यों में उलझे हैं कि उन्हें जनता के दुःखदर्द और इस तरह की घटनाएं दिखायी-सुनायी नहीं पड़ती हैं। अखबारों में इस तरह की खबरों के प्रकाशन के बाद भी पालिका प्रशासन का न चेतना इस बात को ही जाहिर करता है कि पालिका ने यह सोच लिया है कि छापो और भाड़ में जाओ!
इस तरह की स्थितियां वाकई शर्मनाक और चिंता का विषय मानी जा सकती हैं। पालिका में भाजपा के साथ ही साथ निर्दलीय और काँग्रेस के पार्षद भी हैं। हो सकता है कि भाजपा के पार्षद, पार्टी लाईन की दुहाई के चलते अपनी बात मुखर तरीके से न कह पाते हों पर पार्टी की बैठकों में भी उनके द्वारा इस तरह के मामलों का न उठाया जाना आश्चर्यजनक ही माना जायेगा।
दूसरी ओर विपक्ष में बैठे काँग्रेस और निर्दलीय पार्षदों का मौन क्यों है यह बात शोध का ही विषय माना जा सकती है। पालिका में जब भी कोई बात जोर पकड़ती है तो विपक्ष के द्वारा खतो खिताब की सियासत कर अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री कर ली जाती है। भाजपा और काँग्रेस की नगर ईकाईयाँ भी नागरिकों के दुःखदर्द को देखकर शायद मुँह फेरे बैठने में ही भलाई समझती हैं, वरना उनकी चुप्पी का दूसरा कारण क्या हो सकता है?
सड़क चलते राहगीरों को आवारा पशु परेशान कर रहे हैं पर उनकी सुध लेने की फुर्सत भाजपा शासित नगर पालिका परिषद को दिखायी नहीं दे रही है। पालिका की हाका गैंग भी किस दीगर गैर जरूरी कामों में उलझी है इस बात को भी शायद ही कोई जानता हो। संवेदनशील जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह से जनापेक्षा है कि वे ही नगर पालिका की बेढंगी चाल को सुधारने की दिशा में पहल कर नागरिकों को नारकीय पीड़ा से मुक्ति दिलाने के मार्ग प्रशस्त करें।

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