(लिमटी खरे)
बाबूलाल गौर का नाम आते ही प्रौढ़ हो रही पीढ़ी को सुंदर लाल पटवा के मुख्यमंत्रित्व काल की याद आना स्वाभाविक ही है। वह इसलिए क्योंकि 1992 में प्रदेश में बाबूलाल गौर ने साहस दिखाते हुए प्रदेश भर को अतिक्रमण मुक्त कराने की दिशा में ठोस कदम उठाए थे। उस दौरान उनका विरोध भी हुआ पर वे बाबूलाल गौर ही थे जिन्होंने अपने काम को बिना डिगे ही अंजाम तक पहुंचाया। उस दौरान प्रदेश के अनेक जिला मुख्यालयों में सड़कें चौड़ी चौड़ी नजर आने लगी थीं।
1992 में हम भोपाल में हिन्दी मेल के विशेष संवाददाता के रूप में काम कर रहे थे। उस समय यह समाचार पत्र पाक्षिक हुआ करता था। भोपाल में अनेक बार बाबू लाल गौर से संवाद के अवसर मिले। उन्होंने बहुत ही बेबाकी से अपनी बातों को रखा। उस दौरान हो रहे विरोध को वे हवा में उड़ा दिया करते थे। उनका कहना था कि जनता को अगर सुविधा मिल रही है तो इन आताताईयों के विरोध की वे परवाह नहीं करते।
इसी दौरान एक बार जब हम भोपाल से सिवनी आए, तब सर्दियों का मौसम था और इंदौर सिवनी बस 05 बजे के बजाए कुछ पहले ही सिवनी पहुंची। सिवनी में प्रवेश करते ही छिंदवाड़ा चौराहे में सवारियां उतरीं, हमारी नींद खुली। हमने सड़क को देखा, आश्चर्य हुआ कि चौड़ी सड़क पर सोडियम लेम्प पीली रोशनी बिखेर रहे थे। इस तरह की सड़कें इसके पहले भोपाल और इंदौर में ही देखीं तो, इस पर विश्वास करना कठिन था कि सिवनी की सड़कें इस तरह की हो सकती हैं!
उस समय जिलाधिकारी हुआ करते थे पुखराज मारू। दिन में हम उनसे भेंट करने जिला कलेक्टर कार्यालय पहुंचे। चाय के दौर के बीच पुखराज मारू को जब हमने सुबह का सुखद वाक्या बताया तो उनके मुंह से बरबस ही निकल पड़ा कि महेश प्रसाद शुक्ला (तत्कालीन विधि विधायी मंत्री) और तत्कालीन स्थानीय शासन मंत्री बाबू लाल गौर के स्पष्ट निर्देश हैं कि सड़कों को अतिक्रमण मुक्त कराया जाए, इसके लिए किसी का दबाव न सुना जाए। हमने भोपाल लौटकर जब इस बात को बाबू लाल गौर से चर्चा के दौरान बताया तो गौर साहेब ने पीए को कहा कि कलेक्टर सिवनी से बात कराएं। बाबू लाल गौर ने सिवनी में अतिक्रमण हटाए जाने के काम के लिए पुखराज मारू की जमकर पीठ ठोंकी।
इसके बाद लगभग एक दशक के उपरांत 2005 में जब हम दिल्ली में रहकर पत्रकारिता कर रहे थे तब बाबू लाल गौर मुख्यमंत्री थे और वे सरकारी विमान से दिल्ली पहुंचे थे। विमान के पायलट केप्टन अनंत सेठी (वर्तमान में विमानन संचालक) से हमारी बहुत छनती थी। वे जब भी दिल्ली आते थे तब उनके साथ मध्य प्रदेश भवन में एक प्याली चाय हो ही जाया करती थी। सेठी साहब का फोन आया उन्होंने बताया कि सीएम के साथ वे आए हैं और रात नौ बजे वापसी है। हमने उनसे मिलने का वायदा किया।
इसी बीच आज तक में सिटी की वरिष्ठ रिपोर्टर का फोन आया और उन्होंने हमसे छतरपुर में एक संत महात्मा से मिलने जाने की बात कही। संत का नाम का उल्लेख इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि वे एक विवाद में फंसे हुए हैं। बहरहाल, हम वरिष्ठ रिपोर्टर के साथ छतरपुर के लिए निकल पड़े। छतरपुर इलाका दिल्ली में मंदिरों के लिए जाना जाता है।
जैसे ही हम गंतव्य पर पहुंचे वहां चार पांच वाहनों का काफिला देखकर लगा मानो कोई व्हीव्हीआईपी आया हुआ है। उस स्थान के पीआरओ ने हमारा सत्कार किया, उन्होंने बताया कि अभी मिलने में समय लगेगा क्योंकि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बाबू लाल गौर आए हुए हैं। हम बाहर टहलने लगे। लगभग पंद्रह मिनिट बाद सादगी के साथ बाबूलाल गौर बाहर निकले और हमें देखते ही पहचान लिया। दुआ सलाम के उपरांत उनसे कुछ देर चर्चा हुई। उन्होंने बताया कि वे कुछ मंत्रियों से मिलने के उपरांत 07 बजे मध्य प्रदेश भवन पहुंचेंगे।
छतरपुर से फारिग होकर हम भी मध्य प्रदेश भवन जा पहुंचे। वहां पता चला कि बाबूलाल गौर और प्रभात झा के बीच बैठक चल रही है। हमने समय का सदुपयोग करते हुए केप्टन सेठी के साथ चाय के साथ गपशप की, इसी बीच फोन आया और हम गौर साब से मिलने जा पहुंचे। बातों बातों में हमने उनसे आग्रह किया कि प्रदेश शासन के एक वरिष्ठ अधिकारी के निज सचिव के पुत्र को नौकरी की जरूरत है, अगर वे कह दें तो मिल जाएगी।
उन्होंने कहा कि अधिकारी का निज सचिव है तो खुद ही कह सकता है, हमारी क्या जरूरत है! हमने कहा कि वे 2003 में ही सेवानिवृत हो चुके हैं और आपकी तरह ही सिद्धांतवादी हैं, कि जिस अधिकारी के पास रहे कभी उनका फायदा नहीं उठाया तो अब सेवानिवृति के बाद भला कैसे फायदा उठा सकते हैं! गौर साहब कुछ सेकन्डस तक सोचते रहे फिर कहा किससे कहना है और किसके बार में कहना है! हमने एक सीवी (बायोडाटा) उनके हाथ में रख दिया और उस पर जिनसे बात करना था उनके नंबर लिख दिए। कुछ दिन बाद पता चला कि सेवानिवृत लिपिक के पुत्र को मनचाही नौकरी मिल गई।
बाबूलाल गौर एक ऐसी शख्सियत रही है जिनके द्वारा अपने खुद के बल पर न केवल अपना आधार बनाया वरन गोविंदपुरा विधान सभा सीट को भाजपा का अभैद्य गढ़ बनाया। उनकी बेबाकी, स्पष्टवादिता, सरल स्वभाव, मिलनसार व्यक्तित्व, लोगों की मदद करने का जज्बा ही लोगों को उनसे जोड़े रखने में सहायक साबित होता था।
बाबूलाल गौर के मुरीद सिर्फ भाजपा में ही नहीं वरन कमोबेश हर दल में देखे जा सकते हैं। उन्हें सभी दलों के लोग सर्वमान्य नेता के रूप में देखते थे। बाबूलाल गौर सियासत की काली कोठरी से बेदाग बाहर निकले। ईश्वर से प्रार्थना है कि इस तरह की शख्सियत को अपने चरणों स्थान दे . . .!

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