प्रधानमंत्री इमरान खान के अमेरिका दौरे की तारीफ हो रही है कि कैसे दोनों देशों के नेता आपस में मिले। यह अपनी अपेक्षाओं को संभालने का समय है और यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि एक अच्छे लगते दौरे के कारण अनुदान या मदद की झड़ी लग जाएगी। पूरे दौरे के दौरान प्रधानमंत्री ने जिस तरह से व्यवहार किया, संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप भी पाकिस्तान के अनुकूल विषयों पर बात कर रहे थे, व्यापार बढ़ाने, अनुदान शुरू करने और कश्मीर का जिक्र भी सही था। दूसरी ओर, निवेशकों से बातचीत, प्रवासियों के लिए किया गया आयोजन और प्रेस से मेल-जोल इत्यादि ने कुल मिलाकर दौरे को सफल बना दिया।
इस पूरे उत्सव के बीच यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि हमसे अमेरिका की अपेक्षाएं बदली नहीं हैं। ट्रंप प्रशासन केवल इंतजार करना चाहता है और देखना चाहता है कि पाकिस्तान की नई सरकार कैसे अपेक्षाओं और अपने वादों को पूरा करेगी। अमेरिका भले कुछ बोलता रहे, लेकिन पाकिस्तान से अमेरिका के संबंध कभी एकतरफा नहीं रहे हैं। पाकिस्तान को हर बार की तरह इस बार और ज्यादा कदम उठाने की नसीहत नहीं दी गई है, लेकिन स्थितियां बहुत नहीं बदली हैं। तभी तो पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल में सेना प्रमुख के साथ ही खुफिया एजेंसी के प्रमुख भी शामिल थे। परस्पर व्यापार में वृद्धि और 1.3 अरब डॉलर की सुरक्षा मदद पाकिस्तान को इस शर्त के साथ मिलेगी कि वह अफगान की शांति प्रक्रिया में ज्यादा शामिल होगा और आतंकी संगठनों के खिलाफ कड़े कदम उठाएगा।
इसका अर्थ है, दोनों देशों के केवल तेवर में ही परिवर्तन आया है। इससे दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों के विकास में ज्यादा मदद नहीं मिलेगी। अगर पाकिस्तान अपने वादे को निभाता है, तो अमेरिका भी अपने वादे को निभाएगा, इसकी गारंटी नहीं है। यह कहना जल्दबाजी होगी कि आने वाले वर्षों में क्या बदलाव होने हैं। दोनों देश एक-दूसरे को पहले भी नीचा दिखा चुके हैं। अतः यह अद्भुत होगा, अगर प्रधानमंत्री इमरान खान ही नहीं, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी अपने वचनों से बंधे रहें और प्रतिबद्धताओं को निभाएं। (द नेशन, पाकिस्तान से साभार)
(साई फीचर्स)

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