जापान के गिफू प्रान्त में अभी भी 1300 साल पुरानी पारम्परिक विधी से मछलियो का शिकार किया जाता है। जापान में इस पारंपरिक कला को कोरमोरैंट फिशिंग या उकाई कहते हैं, जबकि कोरमोरैंट्स मालिकों को उशो कहते हैं।
इस तरीके की सबसे बड़ी खासियत यह है की इसमें केवल मछलियाँ ही खाने वाला कोरमोरेंट पक्षी आपने मालिको की लिये मछलियों का शिकार करता है।
कोरमोरैंट्स (शिकारी पक्षी) एक तरह का समुद्री पक्षी है। मछलियों का शिकार करने में इनको महारत हासिल है। कोरमोरैंट्स पलक झपकते ही मछलियों का शिकार कर लेते हैं।
उकाई सुबह जल्दी अँधेरे में की जाती है। उशो सुबह जल्दी इन पक्षियों को लेकर नदी जाते हैं और मछली पकड़ते हैं। मछलियां पकड़ने से पहले उशो नदी में जलती हुई लकड़ी से रोशनी करते हैं। शिकार के दौरान कोरमोरैंट्स को मजबूत धागे से बांधकर रखा जाता है ताकि वे इधर-उधर न हो जाएं।
कोरमोरैंट्स अपनी हलक में एक समय में 6 मछलियों को रख सकते है। मछुआरे कोरमोरैंट्स कि गार्दन को इक धागे से बान्ध देते है जिससे की वो केवल छोटी मछलियो को ही खा पाते है, बड़ी मछलियां मुंह रह जाती है जिसे की मछुआरें निकाल लेते है।
आज से 1300 साल पहले जापानी और चीनी मछुआरों ने कोरमोरैंट् पक्षीयो को ट्रेन्ड करके मछलियो का शिकार करना शुरू किया था। एक समय उकाई बेहद फायदेमंद उद्योग हुआ करता था। अत्याधुनिक ट्रांसपोर्टेशन के आने के बाद कोरमोरैंट से मदद लेना लगभग बंद हो गया।
हालांकि, जापान के गीफू इलाके कि नगारा नदी मे आज भी इसी पारंपरिक तरीके से मछली पकड़ने का काम किया जाता है। जापानी सरकार ने नगारा नदी को केवल कोरमोरेंट फिशिंग की लिए संरक्षित क? रक्खा है। यहाँ पर अन्य तरीकों से फिशिंग करने कि इजाजत नही हैं।
(साई फीचर्स)

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