जलकलश यात्रा के साथ श्रीमद भागवत रसोत्सव

 

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। जलकलश यात्रा के साथ श्रीमद भागवत रसोत्सव श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व 23 अगस्त से प्रारम्भ हुई। वृन्दावन धाम से पधारे युवा भागवत प्रवक्ता श्रीहित ललित बल्लभ नागार्च ने रजवाड़ा लान में बने भव्य पंडाल की व्यासपीठ पर आसीन होकर भागवत महात्म्य की कथा सुधि श्रोताओं सुनाई।

श्री हित भागवत सेवा समिति के संयोजकता में श्री कृष्ण जन्मास्टमी के पर्व पर बीते 35 वर्षाे से भागवत कथा रसोत्सव सिवनी में लगातार आयोजित की जा रही है। यह कथा शुरुआती दौर में कृष्ण मंदिर, दुर्गा चौक, शंकर मढिया, अग्रवाल धर्मशाला, आनंद लान, अनुश्री लान, मानस भवन इत्यादि स्थानों पर आयोजित की जाती रही है। बीते 07 वर्षाे से लगातार यह कथा रजवाड़ा लान में सम्पन्न हो रही है।

आयोजन समिति के अध्यक्ष मनीष अग्रवाल ने बताया कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व 23 अगस्त को श्रीमद भागवत की अगवानी की गई। जल कलश शोभायात्रा लुघरवाड़ा के श्री हनुमान जी के मंदिर से प्रारम्भ हुई। श्री भागवत जी को कथा के मुख्य यजमान लक्ष्मी नारायण अग्रवाल ने अपने मस्तक पर धारण किया, यात्रा कथा स्थल रजवाड़ा पहुची जहाँ युवा कथा व्यास महाराज ने भागवत के महात्म्य की कथा का श्रवण उपस्थित भगवातवृन्दो को कराया।

श्रीमद भागवत कथा के द्वतीय दिवस युवा भागवत प्रवक्ता श्रीहित ललित बल्लभ नागार्च ने कथा को आगे बढ़ते हुए कहा कि जब प्राणी के जन्म- जन्मांतरों के पुण्य उदय होकर सिंचित होते हैं तब कहीं जाकर श्रीमद भागवत कथा सत्संग का शुभ अवसर मिल पाता हैं।

आपने कहा कि जमन्तरे भवेत पुण्यं तदा भागवतम लभेत अर्थात जब जीव के जन्मान्तर के पुण्यो का उदय होता है तब श्रीमद भागवत कथा श्रवण करने का सुअवसर प्राप्त होता है। नागार्च महाराज ने कहा कि शुकदेव जी पहले गोलोक धाम में तोता थे, जीवो के उद्धार के लिए शुकदेव जी का जन्म वेदव्यास जी के यहाँ हुआ। शुकदेव जी द्वारा ही राजा परीक्षित को सुनाई गई। श्रीमद भागवत के चार श्लोक नारायण ने ब्रह्मा को, ब्रह्मा से देवऋषि नारद जी को और नारद जी से वेद व्यास जी को प्राप्त हुए। वेदव्यास जी ने उन चार श्लोकों का 18 हजार श्लोक, 335 अध्याय और 12 स्कंधों में विस्तार पूर्वक वर्णन किया जिसका लेखन श्री गणेश जी किया।

श्रीमद भागवत कथा का श्रद्धालुओं को श्रवण कराते हुए तृतीय दिवस की कथा में युवा कथा व्यास श्रीहित ललित महाराज ने कहा की कर्म प्रधान युग में पूजा पाठ कर्म काण्ड के लिए लोगो को समय निकालना संभव नही हो पाता है, अतः हम अपने ईष्ट प्रभु को अपने कर्तव्य कर्माे को करते हुए जो भी भोजन जल आदि ग्रहण करते है पहले प्रभु को भोग अवश्य लगाये प्रभु के प्रति निष्ठां दृढ हुई तो प्रभु प्रेम से दिए हुए नैवेद्य को ग्रहण करने अवश्य आएंगे जहाँ हित प्रेम होता है वे वहीँ प्रकट होते है प्रभु तो सर्वव्यापी है।

नागार्च महाराज ने पर्यावरण की सुरक्षा एवं प्रकृति की सेवा करने की अपील व्यास पीठ से की साथ ही उन्होंने आयोजन समिति के अध्यक्ष मनीष अग्रवाल द्वारा एक मित्र एक वृक्ष योजना की प्रशंसा करते हुए कहा कि प्रकृति के अस्तितव में ही प्राणी और समस्त जीव जन्तुओ का जीवन निहित है इसीलिए हम सभी को प्रकृति की ईश्वर स्वरुप मानकर उसकी सेवा करनी चाहिए। हमारी सनातन संस्कृति में वृक्ष, जल, वायु, पाषाण आदि का पूजन किये जाने की परम्परा है अतरू हमारा उत्तरदायित्व है की हम प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण करे।

नागार्च महाराज ने अपनी ओजमयी वाणी से भारत भूमि को देवलोक से भी श्रेष्ठ बताते हुए कहा की इस पावन भूमि में देवता भी निवास करने के लिए तरसते है इसीलिए हम भी किसी और लोक की कामना क्यू करे हम परम सौभाग्यशाली है जो हमारा जन्म भारतवर्ष में हुआ।

समिति ने नगर के प्रबुद्ध भगवात वृन्दो से अपील की है रजवाड़ा लान में श्रीमद भागवत कथा के माध्यम से, सृष्टि- प्रकृति में अखंड महानायक के अवतारों की कथा की अमृत वर्षा हो रही है जिसमें मानव योनि के दिनचर्या से लेकर सोलह संस्कारों व सोलह श्रंगार और 16 मानवीय खंभों के अंतर्गत आने वाले चार पुरुषार्थ, चार साधन, चार आश्रम, चार वर्ग पर आधारित त्रिवेणी गंगा में, संगीतमय, मनमोहक झांकियों के माध्यम से मंत्रमुग्ध कथा का श्रवण करवाया जा रहा है।

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