झाबुआ पावर के मामले में दिख रहा प्रशासन का रूख नरम!
(अय्यूब कुरैशी)
सिवनी (साई)। देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा घंसौर क्षेत्र की सड़कों के धुर्रे उड़ाने के बाद भी प्रशासन का रवैया संयंत्र प्रबंधन के प्रति नरम ही दिख रहा है। संयंत्र प्रबंधन की मश्कें अभी भी प्रशासन के द्वारा कसी नहीं जा रही हैं।
झाबुआ पावर लिमिटेड के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि जिला प्रशासन अगर चाहे तो संयंत्र प्रबंधन को जिन शर्तों पर संयंत्र संचालन की अनुमति प्रदाय की गई थी उनका पालन अक्षरशः कराया जा सकता है। संचालन की शर्तें प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के पास उपलब्ध होंगी।
सूत्रों का कहना है कि जिला प्रशासन को संचालन की शर्तों का अनुपालन सुनिश्चित कराया जाना चाहिए। सूत्रों ने यह भी कहा कि अगर उद्योग की संस्थापना कराई गई है तो निश्चित तौर पर वहां भारी वाहनों की आवाजाही बनी रहेगी, और प्रदूषण भी फैलेगा। जिला प्रशासन को चाहिए कि सड़कों का संधारण और पर्यवरण का रखरखाव दोनों ही बातों को इस उद्योग की संस्थापना के पहले समाज के प्रति दायित्वों के अंतर्गत दिए गए निर्देशों के तहत कराया जाना चाहिए।
सूत्रों ने कहा कि झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा कोल आधारित 1260 मेगावाट के बिजली संयंत्र की संस्थापना से अब तक समाज के प्रति दायित्वों की मद में कितनी बार सड़कों का संधारण कब कब कराया गया इस बात की जानकारी संबंधित सरकारी महकमे से ली जाकर अगर नहीं कराया गया है तो संयंत्र पर जुर्माना किया जाना चाहिए।
सूत्रों ने यह भी कहा कि झाबुआ पावर लिमिटेड के संयंत्र प्रबंधन के द्वारा क्षेत्र में वाहनों की अवाजाही और संयंत्र से फैलने वाले प्रदूषण से बचने के लिए कब कब, किस किस प्रजाति के पौधों को कहां कहां लगाया गया है और वर्तमान में ये किस आकार के हो चुके हैं, इसकी जांच भी की जाना चाहिए। इसमें अगर शर्तों का उल्लंघन किया गया है तब भी संयंत्र प्रबंधन पर जुर्माना लगाया जा सकता है।
सूत्रों ने यह भी कहा कि झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा नियमों के तहत कितने स्थाई निवासियों (कुशल और अकुशल श्रमिक आदि) को संयंत्र में नियोजित किया है इसकी भी जानकारी ली जाना चाहिए। संयंत्र की सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर क्षेत्र में संस्थापना का मूल उद्देश्य ही स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना था।
यहां यह उल्लेखनीय होगा कि वर्ष 2009 में झाबुआ पावर लिमिटेड की संस्थापना के लिए पहली जन सुनवाई आहूत की गई थी। इसके बाद संयंत्र की संस्थापना का काम आरंभ हुआ था। इस लिहाज से दस सालों का लेखा जोखा प्रशासन को देखकर झाबुआ पावर लिमिटेड पर कार्यवाही की जाना चाहिए।

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