क्यों भाग रहे स्थानीय मसलों से!

 

 

(लिमटी खरे)

लगभग दो ढाई दशकों से सिवनी में सियासत का नज़रिया और नज़ारा दोनों ही बदला दिख रहा है। एक समय था जब देश-प्रदेश के मसलों के साथ ही साथ स्थानीय मामलों को प्राथमिकता के साथ उठाया जाता था। स्थानीय लोगों के दुःख तकलीफों के साथ ही साथ जिले की समस्याओं पर काँग्रेस और भाजपा के द्वारा प्रभावशाली तरीके से अपनी बात रखी जाती थी।

नब्बे के दशक के आगाज़ के साथ ही सिवनी से स्थानीय मामलों को मानो बिसार ही दिया गया है। सियासी दलों के प्रवक्ताओं और अन्य नेताओं के द्वारा जिस तरह से प्रदेश के मुख्य मंत्रियों और देश के प्रधानमंत्रियों को निशाना बनाकर विज्ञप्तियां जारी की जाती हैं उसे देखकर लगता है कि क्या इन लोगों की बात अब तक के मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्रियों तक पहुँच सकी होगी, अगर हो तो बहुत अच्छी बात है पर अगर नहीं तो इतनी ऊर्जा खर्च करने का क्या फायदा।

देखा जाये तो सिवनी में काँग्रेस और भाजपा में स्व.विमला वर्मा का कद इस तरह का था कि वे मुख्यमंत्री के समकक्ष ही मानी जा सकतीं थीं। इसके अलावा स्व.महेश प्रसाद शुक्ला, स्व.हरवंश सिंह ठाकुर का कद भी प्रदेश के प्रभावशाली नेताओं की फेहरिस्त में था।

अगर इन नेताओं के द्वारा प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के संबंध में किसी तरह की बात कही जाती तो समझ में आता पर जिला स्तर के नेताओं के द्वारा अगर प्रधानमंत्री या केंद्र सरकार की नीति अथवा मुख्यमंत्री या प्रदेश सरकार की किसी पालिसी पर वक्तव्य दिया जाता है तो यह हास्यास्पद ही माना जायेगा।

हास्यास्पद इसलिये क्योंकि जिले में समस्याएं मुँह बाए खड़ी हैं पर इन समस्याओं पर बोलने की बजाय नेताओं के द्वारा पीएम और सीएम को निशाना बनाकर लिखा जाता है जैसे इन नेताओं का कद पीएम या सीएम के समकक्ष है। हर जगह एक व्यवस्था बनी हुई है।

आज नहीं पुरातन काल से ही यह बात रही है कि राजा, राजा से युद्ध करता था और पैदल सिपाही अपने विरोधी पक्ष के पैदल से पर सिवनी में तो उलट बंसी ही बजती दिख रही है। पैदल चलने वाले सिपाही ही राजा को ललकार रहे हैं। उनकी यह ललकार, नक्कारखाने की तूती के मानिंद ही साबित हो रही है।

हमारे विचार से अगर मुख्यमंत्री या प्रदेश सरकार के खिलाफ कोई बात कहना है तो भाजपा अपने सांसद डॉ.ढाल सिंह बिसेन, फग्गन सिंह कुलस्ते के अलावा विधायक दिनेश राय एवं राकेश पाल सिंह को आगे कर उनके नामों से विज्ञप्ति जारी करवायी जा सकती है। इसी तरह काँग्रेस अगर चाहे तो विधायक योगेंद्र सिंह और अर्जुन सिंह काकोड़िया की सहमति से उनके नाम से विज्ञप्ति जारी कर सकती है। बीते एक दशक का इतिहास गवाह है कि किसी भी सियासी दल के द्वारा अपने – अपने सांसद या विधायकों को आगे नहीं किया गया है।

इसी तरह अगर किसी केंद्र पोषित योजना पर कोई बात कहना है तो उसके लिये काँग्रेस की ओर से लोकसभा चुनाव लड़ने वाले (मण्डला और बालाघाट संसदीय क्षेत्र) उम्मीदवारों एवं विधान सभा के पराजित उम्मीदवारों को आगे लाकर अपनी बात कहना चाहिये। वस्तुतः ऐसा होता नहीं दिख रहा है।

विडंबना ही कही जायेगी कि सियासी दलों के जिला स्तर के प्रवक्ताओं के द्वारा सीधे-सीधे मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री अथवा मंत्रियों को कटघरे में खड़ा करते हुए विज्ञप्तियां जारी की जा रही हैं। अगर स्थानीय स्तर पर विज्ञप्ति नहीं जारी की जाती हैं तो यही माना जायेगा कि जिले में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिये और स्थानीय स्तर पर किसी से किसी तरह का दुराव पैदा न हो के चलते ही केंद्र और प्रदेश के नेताओं को कोसा जाता है ताकि जनता के बीच में उनके नाम चलते रहें और . . .। सिवनी की स्थानीय समस्याओं से अगर सियासतदार इसी तरह मुंह चुराते रहेंगे तो इस तरह से स्थानीय समस्याएं दूर होने से रहीं।

जिले की जनता आसपास के जिलों में जाती होगी तो निश्चित तौर पर उन जिलों की तरक्की देखकर सिवनी के नागरिकों को रश्क होता होगा कि काश सिवनी के सांसद और विधायक इतने कद्दावर होते कि सिवनी जिले की झोली में सौगातें ही सौगातें होतीं। फिलहाल बालाघाट सांसद डॉ.ढाल सिंह बिसेन के द्वारा शुरूआती कार्यकाल में जिले के लिये प्रयास किये जा रहे हैं जिससे लोगों की उम्मीद जाग रहीं हैं।

हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि सिवनी को जो कुछ भी मिल रहा है वह प्रदेश और केंद्र के नीतिगत मामलों की वजह से ही मिल पा रहा है। इसके लिये सांसद विधायक पृथक से किसी तरह का प्रयास नहीं कर रहे हैं। अगर पूर्व में सिवनी जिले के दोनों सांसदों ने प्रयास किया होता तो केंद्र सरकार की मेडिकल कॉलेज़ खोलने की योजना कब की परवान चढ़ जाती, सिवनी में फोरलेन का निर्माण हो चुका होता और तो और बायपास पर एक ट्रामा केयर यूनिट भी बन चुका होता, सिवनी में आकाशवाणी का रिले सेंटर आ चुका होता, प्रदेश की ओर से मिलने वाली सौगातों की झड़ी लगी होती, जिले में रोजगार के साधन होते, शिक्षा और स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएं होतीं, परिवहन के साधनों में इज़ाफा होता पर जब हम अपनी गिरेबान में ही झांँकना नहीं चाहते तो . . .!

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